China loan to poor countries: विकासशील देशों पर चीन का वित्तीय दबाव बढ़ता जा रहा है, क्योंकि 2025 में इन देशों को चीन को रिकॉर्ड 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान करना होगा. इसमें से 22 बिलियन डॉलर दुनिया के 75 सबसे गरीब और कमजोर देशों से आएंगे. यह स्थिति वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक गंभीर चुनौती बन रही है. आइए, इस मुद्दे की गहराई में जाएं.
सिडनी के लोवी इंस्टीट्यूट की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, "विकासशील देश चीन को दिए जाने वाले कर्ज की अदायगी और ब्याज लागत की एक बड़ी लहर से जूझ रहे हैं. विकासशील देशों से चीन को ऋण सेवा प्रवाह 2025 में कुल 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर होगा और इस दशक के बाकी समय में भी यह उच्च स्तर पर बना रहेगा.' इस ऋण का अधिकांश हिस्सा 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' (BRI) के तहत लिया गया था.
रिपोर्ट में हुए कई खुलासे
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 'चीनी सरकारी ऋणदाताओं के दबाव के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय निजी ऋणदाताओं को बढ़ती हुई चुकौती के कारण विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर भारी वित्तीय दबाव पड़ रहा है.' इसका परिणाम यह है कि स्वास्थ्य, शिक्षा, गरीबी उन्मूलन और जलवायु अनुकूलन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश प्रभावित हो रहा है.
चीन का बदलता चेहरा
2000 के दशक की शुरुआत में चीन एक छोटा ऋणदाता था, लेकिन 2010 के मध्य तक यह विकासशील देशों के लिए सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋण प्रदाता बन गया. 2016 में BRI के चरम पर, चीन ने 50 बिलियन डॉलर से अधिक के नए ऋण दिए, जो सभी पश्चिमी ऋणदाताओं के संयुक्त योगदान से अधिक था. कम आय वाले देशों में चीन का प्रभाव विशेष रूप से बढ़ा, जहां 2005 में इसका हिस्सा 5% से कम था, जो 2015 तक 40% से अधिक हो गया. हालांकि, 2019 में नए ऋण 18 बिलियन डॉलर तक गिर गए, और कोविड महामारी ने इसे और कम कर दिया.
प्रभावित देश और उनकी चुनौतियां
चीन के सबसे बड़े ऋण प्राप्तकर्ताओं में पाकिस्तान, कजाकिस्तान, मंगोलिया, अर्जेंटीना, ब्राजील, कांगो डीआर और इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं. ये देश या तो चीन के पड़ोसी हैं या महत्वपूर्ण खनिज और बैटरी धातु निर्यातक हैं. रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि "वह देश जो कभी विकासशील दुनिया के लिए नए वित्त का सबसे बड़ा स्रोत था, अब विकासशील देशों के ऋण सेवा भुगतान के लिए दुनिया का सबसे बड़ा एकल गंतव्य बन गया है.'
भविष्य की चिंताएं
BRI का चरम 2010 के मध्य में था, और 2020 के मध्य में पुनर्भुगतान का दौर शुरू हुआ. अब, यह स्पष्ट है कि इस दशक में चीन एक बैंकर की बजाय ऋण संग्रहकर्ता की भूमिका में अधिक दिखेगा. यह स्थिति विकासशील देशों के लिए नई चुनौतियां ला सकती है, क्योंकि कर्ज का बोझ उनकी प्रगति को बाधित कर रहा है..