Parliament Zero Hour: भारतीय संसद में ‘शून्य काल’ एक ऐसी अनौपचारिक प्रक्रिया है, जो सांसदों को तात्कालिक और जनहित से जुड़े मुद्दों को तुरंत उठाने की अनुमति देती है. इसकी शुरुआत 1962 में हुई थी, और तब से यह लोकसभा और राज्यसभा दोनों में एक प्रभावी मंच के रूप में काम करता है.
लोकसभा में यह प्रश्नकाल के बाद दोपहर 12 बजे शुरू होता है, जबकि राज्यसभा में यह आवश्यक कागजी कार्यवाही के बाद सुबह 11 बजे से शुरू होता है. इसकी अवधि 30 min तक रहती है, जिसमें हर सांसद को 2-3 min तक अपनी बात रखने का समय दिया जाता है. यह समय सांसदों को उन मुद्दों को उठाने का मौका देता है, जिन्हें नियमों के तहत पहले से नोटिस देना संभव नहीं होता.
सांसदों को उसी दिन सुबह 10 बजे तक लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति को लिखित सूचना देनी होती है, जिसमें उन्हें अपने मुद्दे का विषय स्पष्ट करना होता है. इसके बाद अध्यक्ष/सभापति उस दिन के लिए उठाए जाने वाले मुद्दों का चयन करते हैं. आमतौर पर लोकसभा में प्रतिदिन 20 मुद्दों को अनुमति दी जाती है.
शून्य काल भारतीय लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण विशेषता है. यह सरकार को जनता से जुड़े मुद्दों पर तत्काल प्रतिक्रिया देने के लिए प्रेरित करता है, भले ही मंत्रियों को इस समय उत्तर देना अनिवार्य न हो. यह व्यवस्था सरकार की जवाबदेही बढ़ाने और लोकतंत्र को सशक्त बनाने में सहायक होती है. इसमें आतंकी घटनाएं, प्राकृतिक आपदा, प्रशासनिक लापरवाही या किसी नीति पर असहमति जैसे तात्कालिक मुद्दे रखे जाते हैं. शून्य काल एक ऐसा मंच है जो जनप्रतिनिधियों को जनता की आवाज संसद तक पहुंचाने में मदद करता है. इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए समय प्रबंधन और नियमन को और बेहतर बनाने की आवश्यकता है.
हालांकि, शून्य काल पूरी तरह से नियमबद्ध नहीं है, जिससे इसके दुरुपयोग की संभावना बनी रहती है. कई बार विवादास्पद मुद्दों की वजह से संसद की कार्यवाही बाधित होती है. साथ ही, सीमित समय में सभी सांसदों को अपनी बात कहने का मौका मिलना मुश्किल होता है.