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India Daily

Waqf Act 2025: 'वक्फ इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं...', केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा

Waqf Act 2025: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि वक्फ कानून में हाल के संशोधनों ने उन समस्याओं का समाधान कर दिया है, जिन्हें ब्रिटिश और अन्य भारतीय सरकारें सुलझाने में असफल रही थीं.

Ritu Sharma
Edited By: Ritu Sharma
Waqf Law
Courtesy: social media

Waqf Act 2025: वक्फ कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जारी सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने साफ किया है कि वक्फ इस्लाम का कोई अनिवार्य हिस्सा नहीं, बल्कि यह केवल एक प्रकार का दान है. केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में यह दलील दी कि 'वक्फ इस्लामी अवधारणा जरूर है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. यह सिर्फ दान है, जैसा कि हर धर्म में होता है.'

बता दें कि मेहता ने जोर देते हुए कहा कि वक्फ की अवधारणा पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष है और इसको लेकर 'कानून के जरिये जमीनें छीनी जा रही हैं' जैसी बातें सिर्फ झूठे आख्यान हैं. उन्होंने आगे कहा कि ''दान की परंपरा ईसाई, हिंदू, सिख हर धर्म में है. वक्फ को सिर्फ इस्लाम से जोड़ना ठीक नहीं है.''

'वक्फ-बाय-यूजर' का कोई मौलिक अधिकार नहीं

वहीं केंद्र ने 'वक्फ-बाय-यूजर' यानी दीर्घकालिक धार्मिक उपयोग के आधार पर संपत्ति को वक्फ घोषित करना, इस सिद्धांत को भी खारिज किया. मेहता ने कहा कि ''सरकारी जमीन पर किसी का अधिकार नहीं होता... सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि अगर संपत्ति सरकारी है और उसे वक्फ घोषित कर दिया गया है तो सरकार उसे वापस ले सकती है.''

केंद्र ने सीमित मुद्दों पर सुनवाई की मांग की

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि सुनवाई को तीन मुद्दों तक सीमित किया जाए-

  • वक्फ-बाय-यूजर की वैधता
  • वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति
  • वक्फ संपत्तियों में सरकारी जमीन की पहचान

96 लाख प्रतिनिधित्व और 36 JPC बैठकें - मेहता

इसको लेकर मेहता ने कहा कि ''हम 1923 से चली आ रही व्यवस्थागत खामी को खत्म कर रहे हैं. सभी पक्षों की राय ली गई है. हमें 96 लाख लोगों से फीडबैक मिला और JPC की 36 बैठकें हुईं. कुछ याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय की आवाज नहीं हैं.''

SC ने कहा - कानूनों को संवैधानिक माना जाता है

इसके अलावा, चीफ जज बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि ''हर कानून को संवैधानिकता की धारणा के तहत देखा जाता है. जब तक कोई साफ-साफ असंवैधानिकता न दिखे, अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती.''