S Jaishankar Speech: नई दिल्ली में राज्यसभा में बुधवार को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर चर्चा के दौरान विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने पाकिस्तान और आतंकवाद पर सख्त रुख अपनाते हुए कई महत्वपूर्ण बातें रखीं. विदेश मंत्री ने बताया कि इस मामले को अब संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध समिति के सामने रखा जाएगा. साथ ही उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच 22 अप्रैल से 16 जून के बीच कोई भी बातचीत नहीं हुई, जिससे पाकिस्तान द्वारा फैलाए गए भ्रामक प्रचार का खंडन होता है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने पाकिस्तान को दो टूक चेतावनी दी कि जब तक वह आतंकवाद को पूरी तरह नहीं छोड़ता, तब तक सिंधु जल संधि निलंबित रहेगी. इसके अलावा उन्होंने आतंकवाद को वैश्विक मंचों पर उठाने में भारत की सफलता और ऑपरेशन सिंदूर की रणनीति का भी जिक्र किया.
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— SansadTV (@sansad_tv) July 30, 2025
मैं उन्हें कहना चाहता हूँ वो कान खोलकर सुन लें कि 22 अप्रैल से 16 जून तक राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी के बीच एक भी फोन कॉल नहीं हुआ। - @DrSJaishankar राज्यसभा में ऑपरेशन सिन्दूर पर चर्चा के दौरान विदेश मंत्री@MEAIndia pic.twitter.com/08kO85S4dw
जयशंकर ने कहा कि खून और पानी साथ नहीं बह सकते. यह बयान पाकिस्तान के प्रति भारत की बदलती नीति का संकेत माना जा रहा है. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की निगरानी समिति ने पहली बार ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ यानी TRF को अपनी रिपोर्ट में नामित किया है. वही संगठन जिसने 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले को अंजाम दिया.
जयशंकर ने बताया कि कई देशों ने भारत से संपर्क कर मध्यस्थता की कोशिश की, लेकिन भारत ने स्पष्ट कहा कि पाकिस्तान के साथ कोई भी मुद्दा केवल द्विपक्षीय रूप से ही सुलझाया जाएगा. भारत ने यह भी कहा कि पाकिस्तान के आतंकी हमलों का जवाब जरूर मिलेगा और अगर पाकिस्तान को रोकना है तो वह औपचारिक रूप से DGMO के माध्यम से बात करे.
विदेश मंत्री ने बताया कि 9 मई को अमेरिका की उपराष्ट्रपति वेंस ने प्रधानमंत्री मोदी को फोन कर पाकिस्तान की संभावित कार्रवाई की चेतावनी दी थी. इस पर प्रधानमंत्री ने जवाब दिया कि अगर हमला हुआ, तो भारत उसका जवाब जरूर देगा. इसके बाद भारतीय कार्रवाई में पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली और एयरबेस को निष्क्रिय कर दिया गया. जयशंकर ने जोर देकर कहा कि भारत ने इस ऑपरेशन में किसी भी देश के दबाव में काम नहीं किया और यह केवल सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा के लिए था.