सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों के 'बुलडोजर मॉडल' को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम ने यह भी कहा है कि बुलडोजर मॉडल को लेकर एक गाइडलाइन जारी करने की जरूरत है. किसी भी आरोप में बस नाम आने की वजह से ही किसी का घर नहीं गिरा देना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन के बढ़ते चलन को लेकर चिंता जताई है.
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विश्वनाथन की बेंच ने केस की सुनवाई करते हुए कहा है कि पक्षकार, सुझावों दें जिसके चलते एक देशव्यापी बुलडोजर एक्शन पर गाइडलाइन तैयार कराई जा सके.
कई राज्यों में हो रहे बुलडोजर एक्शन को लेकर एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से ऐसे एक्शनों को तत्काल रोकने की मांग की थी. सभी राज्यों के पक्षकार, अपने प्रस्ताव, सीनियर अधिवक्ता नचिकेता जोशी को सौंपेंगे. सुझावों को कोर्ट के सामने ये ही पेश करेंगे. बेंच ने कहा, 'हमें इस मुद्दे को देशव्यापी स्तर पर इसे हल करने दीजिए.'
जस्टिस गवई ने कहा, 'कैसे किसी के सिर्फ आरोपी होने की वजह से उसका घर गिराया जा सकता है. यह तब भी नहीं किया जा सकता है, अगर वह दोषी हो तो भी. कोर्ट, किसी अनाधिकृत ढांचे का समर्थन नहीं करता है लेकि कुछ गाइडलाइन इस मामले में जरूरी हैं.'
जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, 'क्यों कोई गाइडलाइन नहीं बनाई जाती. यह सभी राज्यों में लागू होना चाहिए. इसे जल्द करने की जरूरत है.' जस्टिस गवई ने कहा कि अगर कोई निर्माण अवैध है तो भी जो भी उसके ध्वस्तिकरण की प्रक्रिया है, वह विधिसंगत होनी चाहिए.
जस्टिस विश्वनाथ ने कहा कि अगर पिता कानून का उल्लंघन करता है तो इसमें बेटे का क्या दोष है. अगर उसका घर इस आधार पर गिराया जाता है तो ऐसा नहीं होना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट में बुलडोजर एक्शन के खिलाफ साल 2022 में एक याचिका दायर हुई थी. दिल्ली के जहांगीरपुरी में इलाके में कुछ ध्वस्तीकरण हुआ था. इस पर रोक लगी थी लेकिन केस सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था. अधिकारी इसे दंड के तौर पर पेश कर रहे थे. एक याचिका राज्यसभा सांसद बृंदा करात ने भी दायर की थी. सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने इस केस की पैरवी की थी और उन्होंने अनुच्छेद 21 का हवाला देकर राहत मांगी थी. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान कहा था कि जिन मामलों में घर गिराए गए हैं, वे विधि संगत तरीके से गिराए गए हैं.