menu-icon
India Daily

'प्रिय मम्मी-पापा, आपको जब चिट्ठी मिलेगी तब मैं स्वर्ग में...', कारगिल के हीरो कैप्टन विजयंत थापर की कहानी

Kargil War: 25 साल पहले पाकिस्तानियों के मंसूबों को भारत के नौजवानों ने अपना गर्म खून बहाकर ठंडा किया था. वह ऐसा युद्ध था जिसके बाद पाकिस्तान ने कभी युद्ध छेड़ने की हिम्मत नहीं की. इस युद्ध में कई ऐसे जवान अफसर थे जिन्होंने कुछ महीने ही सेना में नौकरी की थी और वे देश के लिए शहीद हो गए. आज हम ऐसे ही एक वीर सपूत विजयंत थापर उर्फ रॉबिन की बात कर रहे हैं जिन्होंने देश की रक्षा के लिए भरी जवानी में कुर्बानी दे दी.

auth-image
Nilesh Mishra
Vijayant Thapar
Courtesy: IDL

साल 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध में जमकर खून बहा था. भारत की ओर शहादत देने वालों में कई वीर सपूत ऐसे थे जिनकी उम्र बहुत कम थी. कई अधिकारी ऐसे थे जिनकी पहली पोस्टिंग थी, कई ऐसे थी जिनकी शादी नहीं हुई थी तो कुछ ऐसे भी थे जिनकी चिट्ठियां घर पहुंचने से पहले ही वे शहीद हो गई. विक्रम बत्रा से लेकर कैप्टन विजंयत थापर तक और मनोज पांडेय से लेकर सौरभ कालिया तक, ये ऐसे नाम हैं जो हमेशा के लिए भारत की यादों में अमर हो गए. भले ही उम्र कम थी लेकिन वह इन युवा अफसरों और सैनिकों का जज्बा ही था कि पाकिस्तान तमाम तैयारियों के बावजूद मुंह की खाने को मजबूर हुआ. भारत के इन रणबाकुरों ने दिखाया कि इस देश की मिट्टी में वो ताकत है जो कम उम्र के जवानों को भी देश की रक्षा के लिए जान गंवाने की हिम्मत देती है.

ऐसे ही एक वीर सपूत थे कैप्टन विजयंत थापर. कारगिल के युद्ध से ठीक पहले सेना का कमीशन पाने वाले विजंयत थापर आर्मी अफसर के बेटे थे. दशकों तक सेना की नौकरी करने के बावजूद जो मौका उनके पिता कर्नल वी एन थापर (रिटायर्ड) को नहीं मिला, वह उनके बेटे विजयंत उर्फ रॉबिन को मिला. खुद कर्नल थापर अपने बेटे के बारे में कहते हैं कि देश के लिए मर मिटने का सौभाग्य सबको नहीं मिलता है, अपने बेटे को खोने का दुख जरूर है लेकिन उसकी शहादत पर मुझे फक्र है, ना है. सिर्फ 22 साल के रॉबिन की वीरता की कहानी कह किसी को हैरान करती है. आइए जानते हैं कि 22 साल के इस लड़के ने पाकिस्तान को कैसे नाकों चने चबवा दिए.

खून में वीरता, बाप-दादाओं से मिला जोश

साल 1976 की 26 दिसंबर को वीएन थापर के इस बेटे का जन्म हुआ था. तीन पीढ़ियों से सेना में नौकरी कर रहा थापर परिवार जैसे पहले से ही तय कर चुका था कि चौथी पीढ़ी भी देश की सेवा इसी माध्यम से करेगी. बचपन से ही रॉबिन अपने बाप-दादा से सेना के किस्से सुनते हुए बड़े हुए. 1998 में पहले ही प्रयास में विजयंत उर्फ रॉबिन ने CDS की परीक्षा पास की. इंटरव्यू पास करके कमीशन हासिल किया और सेना में लेफ्टिनेंट बन गए. सेना में कमीशन मिला तो 2 राजपुताना राइफल्स रेजीमेंट में लेफ्टिनेंट के पद पर तैनाती मिली. सेना में शामिल हुए 6 महीने ही हुए थे कि कारगिल का युद्ध शुरू हो गया. 

उनके पिता वीएन थापर बताते हैं कि उस वक्त वह आगरा में पोस्टिंग पर थे इसलिए बातचीत कम हो पाती थी. उन्हें भी नहीं पता था कि उनका बेटा कारगिल की जंग में शामिल है. तोलोलिंग की पहाड़ियों पर होने वाली जंग काफी मुश्किल थी. पहले 18 ग्रेनेडियर्स को इसका टारगेट मिला. इस टीम ने कोशिश की, दो दर्जन से ज्यादा जवान शहीद हो गए. दुश्मन ऊंचाई पर थे इसलिए भारतीय फौज को ज्यादा नुकसान हो रहा था. इसके बाद तोलोलिंग फतह का काम 2-राजपुताना राइफल्स को मिला.

विजयंत थापर को इस टीम को लीड करना था. नए खून वाले विजयंत ने 11-12 जून की रात दुश्मनों पर हमला बोला. पाकिस्तान के कई बंकर तबाह हुए. कई पाकिस्तानी मारे गए. कुछ भारतीय जवान भी शहीद हुए. हालांकि, 13 जून को विजयंत थापर की अगुवाई वाली इस टीम ने तोलोलिंग पर तिरंगा फहरा दिया.

तुरंत मिल गया दूसरा टारगेट

पहले मिशन की सफलता ने न सिर्फ विजयंत के हौसले बुलंद किए बल्कि सेना के अधिकारियों को भी उन पर भरोसा हो गया. विजयंत की टीम को अगला टारगेट मिला कि उन्हें नॉल एंड नोल हिल और थ्री पिंपल्स से दुश्मनों को पीछे हटाना है. एकदम सीधी चढ़ाई, एक तरफ गहरी खाई और चट्टानों की आड़ लेकर बनाए गए बंकरों की वजह से यह काम बेहद मुश्किल था. चांदनी रात में दुश्मन द्वारा देखे जाने का डर था फिर भी विजयंत ने फैसला किया कि 28 जून की रात में ही हमला बोला जाएगा. उनकी टीम ताबड़तोड़ हमले करते हुए आगे बढ़ी और पास तक पहुंच गई.

विजयंत के कमांडेंट कर्नल रवींद्र नाथ ने उन्हें पीछे हटने को कहा लेकिन विजयंत अब इसके मूड में नहीं थे. विजयंत ने साफ कहा कि अब दुश्मन को मारे बिना तो पीछे नहीं हटना है. विजयंत दुश्मन की पोस्ट के 15 मीटर पास तक पहुंच गए. वह अपनी पोजीशन ले ही रहे थे कि एक गोली उनके सिर के पार निकल गई. भले ही विजयंत थापर शहीद हो गए लेकिन उनकी टीम ने वहां भी मैदान मार लिया. इस शहादत के लिए विजयंत थापर को वीर चक्र से सम्मानित किया गया.

रुलाती है रॉबिन की चिट्ठी

अपनी शहादत से ठीक पहले विजयंत थापर ने एक चिट्ठी लिखी थी. अपने मम्मी-पापा को लिखी इस चिट्ठी में ही उन्होंने बता दिया था कि वह शहीद होने जा रहे हैं. चिट्ठी में विजयंत लिखते हैं, 'जब तक आपको यह चिट्ठी मिलेगी, मैं दूर आसमान से आप लोगों को देख रहा होऊंगा. कोई शिकायत या अफसोस नहीं है. अगर अगले जन्म में भी इंसान के रूप में पैदा हु तो मैं भारतीय सेना में फिर से भर्ती हो जाऊंगा और अपने देश के लिए लड़ूंगा. हो सके तो आप उस जगह को जरूर  देखना, जहां आपके कल के लिए भारतीय सेना लड़ रही है.'

इस चिट्ठी का असर यह हुआ कि आज भी अपने बेटे की शहादत के मौके पर कर्नल थापर उस जगह हर साल जाते हैं, जिसके लिए उनके बेटे ने जान दे दी. विजयंत ने अपनी चिट्ठी में आगे लिखा, 'मुझे उम्मीद है कि मेरी फीटो मेरी यूनिट के मंदिर में करनी माता के साथ रखी जाएगी. कश्मीर में रुखसाना को हर महीने 50 रुपये भेजते रहना. मम्मी आप मेरी दोस्त से आप मिलना, मैं उससे बहुत प्यार करता हूं. अब समय आ गया है जब मैं अपने साथियों के पास जाऊं. बेस्ट ऑफ लक टू यू ऑल. लिव लाइफ, किंग साइज.'