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Axiom-4 Mission: ISS के 400 किमी ऑर्बिट तक पहुंचने में 28 घंटे क्यों लगते हैं? जानें यहां

Axiom-4 Mission: भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अपने Axiom-4 मिशन की तैयारी कर रहे हैं, जो आज 25 जून को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए लॉन्च होने वाला है. प्रक्षेपण फ्लोरिडा में नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर के लॉन्च कॉम्प्लेक्स 39ए से 2:31 AM EDT (12:01 PM IST) पर होने वाला है

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Edited By: Shilpa Srivastava
Axiom-4 Mission

Axiom-4 Mission: भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अपने एक्सिओम-4 मिशन के लिए रवाना हो चुके हैं. यह प्रक्षेपण फ्लोरिडा में नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर के लॉन्च कॉम्प्लेक्स 39ए से 2:31 AM EDT (12:01 PM IST) पर हुआ. नासा का प्लान 26 जून को सुबह 7 बजे EDT (4:30 PM IST) पर एक्सिओम-4 मिशन के ड्रैगन अंतरिक्ष यान को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के हार्मोनी मॉड्यूल के साथ डॉक करने की है. एक्सिओम-4 मिशन को पृथ्वी से ISS तक की दूरी तय करने के लिए लगभग 28.5 से 29 घंटे की जरूरत है, बावजूद इसके कि पृथ्वी की सतह से अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की कक्षीय ऊंचाई लगभग 400 किमी है.

शुभांशु शुक्ला के एक्सियम-4 मिशन के तहत जब स्पेसX ड्रैगन कैप्सूल इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की तरफ रवाना हुआ तो अब लोगों के मन में सवाल यह उठता है कि जब ISS धरती से सिर्फ 400 किमी की ऊंचाई पर है, तो वहां पहुंचने में 28 घंटे क्यों लगते हैं? हालांकि, इसका जवाब साधारण नहीं है, बल्कि ऑर्बिट यांत्रिकी यानी ऑर्बिटल मैकेनिक्स और सटीक समय निर्धारण से जुड़ा है. 

स्पेसX ड्रैगन मिशन: 400 किमी की दूरी, 28 घंटे का सफर क्यों

बता दें कि Falcon 9 रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया ड्रैगन कैप्सूल शुरुआत में ISS से नीची ऑर्बिट में होता है. वहां से उसे धीरे-धीरे ऑर्बिट ऊंचाई बढ़ाते हुए और अपनी दिशा सुधारते हुए ISS की ऑर्बिट से मेल बैठाना होता है.

यह प्रोसेस एक नहीं बल्कि कई स्टेज में होता है जिसमें प्रोपल्शन बर्न के जरिए कैप्सूल की रफ्तार और दिशा बदली जाती है जिससे वह ISS के साथ सुरक्षित तरीके से जुड़ सके. ISS लगभग 28,000 किमी/घंटा की रफ्तार से पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है, इसलिए उससे टकराव से बचने और सटीक डॉकिंग के लिए यह एडजस्टमेंट जरूरी होता है.

फेजिंग और ऑर्बिटल सिंक्रोनाइजेशन: 

ISS हर 90 मिनट में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी कर लेता है. जब लॉन्च होता है, तब ISS लॉन्च साइट के ठीक ऊपर नहीं होता. इसलिए ड्रैगन कैप्सूल को पृथ्वी की कई बार परिक्रमा करनी पड़ती है जिससे वह ISS के साथ फेज में आ सके.