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क्या है राइसिन जहर जिसको बनाकर आतंकियों के थे तबाही मचाने के मंसूबे? कुछ मिलीग्राम ले सकता है किसी की भी जान

गुजरात ATS ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें एक डॉक्टर भी शामिल था, जो राइसिन नामक घातक विष का उत्पादन करने की कोशिश कर रहे थे. राइसिन एक ऐसा जहर है जिसका कुछ मिलीग्राम ही जानलेवा साबित हो सकता हैं.

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Edited By: Kuldeep Sharma
Ricin india daily
Courtesy: social media

नई दिल्ली: गुजरात एंटी-टेररिस्ट स्क्वॉड ने हाल ही में तीन लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें एक डॉक्टर भी शामिल था, जो राइसिन बनाने की कोशिश कर रहा था. राइसिन एक अत्यंत खतरनाक जहर है, जिसे कास्टर बीन्स से निकाला जाता है. 

यदि यह शरीर में पहुंच जाए, तो यह प्रोटीन संश्लेषण को रोककर अंगों की विफलता और मौत तक का कारण बन सकता है. कानून व्यवस्था के लिए चुनौती यह है कि जहर को बनाना अपेक्षाकृत आसान है और इसकी घातक मात्रा बहुत कम होती है.

राइसिन क्या है?

राइसिन मुख्य रूप से कास्टर बीन्स से निकाला जाने वाला प्रोटीन है. भारत, ब्राजील और चीन में यह औद्योगिक उत्पादन के लिए उगाया जाता है. इसमें लगभग 1% से 5% राइसिन होता है. एआई IMS के डॉ. वाई.के. गुप्ता के अनुसार, केवल 1 मिलीग्राम राइसिन किसी वयस्क को मार सकता है. यह विष शरीर में पहुंचते ही कोशिकाओं के रिबोसोम से जुड़ जाता है और प्रोटीन संश्लेषण को रोक देता है, जिससे मल्टी-ऑर्गन फेल्योर और मौत हो सकती है.

राइसिन के सेवन के प्रभाव

राइसिन का सेवन उल्टी, दस्त, रक्तस्राव, कम रक्तचाप, मिर्गी जैसी समस्याएं और अंगों की विफलता का कारण बन सकता है. यदि इसे इंजेक्शन या सांस के माध्यम से लिया जाए तो श्वसन तंत्र में दिक्कत, छाती में संकुचन और कई अंगों की विफलता हो सकती है. बच्चों द्वारा कास्टर बीन्स गलती से खाने पर विष निकले तो गंभीर परिणाम हो सकते हैं, लेकिन कास्टर ऑयल से यह खतरा नहीं होता.

राइसिन के इलाज और उपचार

राइसिन का कोई एंटी वेनम या विशेष उपचार नहीं है. उपचार केवल लक्षणों पर आधारित होता है. शुरुआती समय में उल्टी करवा कर विष को शरीर से बाहर निकाला जा सकता है, या पेट धोकर हटाया जा सकता है. परंतु अधिकांश मामलों में रोगी अस्पताल पहुंचने तक विष अवशोषित हो चुका होता है और केवल लक्षणों का प्रबंधन किया जा सकता है.

राइसिन का इतिहास और हथियारिकरण

उच्च विषाक्तता और उपलब्धता के कारण राइसिन का सैन्य प्रयोग पर ध्यान रहा है. प्रथम विश्व युद्ध में अमेरिका ने इसका अध्ययन किया, और द्वितीय विश्व युद्ध में सीमित हथियारिकरण हुआ. 1980 में इराक ने इसे इनहेलेबल एजेंट के रूप में विकसित करने की कोशिश की. राइसिन को केमिकल वेपन्स कन्वेंशन के तहत Schedule 1 टॉक्सिन माना गया है, जिसमें सरीन गैस और मस्टर्ड गैस जैसी खतरनाक एजेंट्स शामिल हैं.

क्रिमिनल और आतंकवादी उपयोग

अतीत में कई लोग राइसिन को घर पर अलग करने या खत के माध्यम से भेजने की कोशिश कर चुके हैं. सबसे प्रसिद्ध मामला 1978 में लंदन में बल्गेरियाई पत्रकार गोरगी मार्कोव की हत्या है, जिसे राइसिन के माध्यम से अंजाम दिया गया था. हाल ही में गुजरात में पकड़े गए आरोपी भी इसी प्रकार के खतरनाक आतंकवादी षड्यंत्र में शामिल थे.

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