Dungarpur Medical College: राजस्थान के डूंगरपुर जिले के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज के फर्स्ट ईयर के MBBS स्टूडेंट को डायलिसिस करवाना पड़ा. उसके सीनियर्स ने उसे भीषण गर्मी में 300 से ज़्यादा पुश-अप करने के लिए मजबूर किया, जिससे उसकी किडनी पर बुरा असर पड़ा. इस मामले में सेकंड ईयर के 7 छात्रों के खिलाफ़ FIR दर्ज की गई है और उन्हें कॉलेज मैनेजमेंट ने सस्पेंड कर दिया है.
रैगिंग की ये क्रूर घटना 15 मई को हुई थी, लेकिन कॉलेज प्रशासन ने मंगलवार को नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) से एक मैसेज मिलने के बाद आरोपी छात्रों के खिलाफ़ कार्रवाई की. पीड़ित ने NMC के एंटी-रैगिंग सेल में शिकायत दर्ज कराई थी.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर बालामुरुगनवेलु एस ने बताया कि 20 जून को हमें NMC से एक ईमेल मिला, जिसमें छात्र की ओर से रैगिंग की शिकायत की गई थी. इसे 22 जून को एंटी-रैगिंग कमेटी को भेजा गया, जिसने मामले की जांच की और पुष्टि की कि घटना हुई थी. उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों और एंटी-रैगिंग कमेटी की सिफ़ारिशों के आधार पर, हमने 7 आरोपी छात्रों के खिलाफ़ कार्रवाई की. पुलिस ने सभी आरोपी छात्रों के खिलाफ FIR भी दर्ज की है.
पीड़ित छात्र की शिकायत के अनुसार, सभी सातों आरोपियों ने फर्स्ट ईयर के छात्र को कॉलेज परिसर से डेढ़ किलोमीटर दूर पहाड़ी स्थान पर ले गए, जहां उन्होंने उसे चिलचिलाती गर्मी में पुश-अप्स करने को कहा. इसके बाद पीड़ित छात्र की तबीयत भयानक रूप से बिगड़ गई. उसे 7 दिनों तक अहमदाबाद के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया और 4 बार डायलिसिस करवाना पड़ा.
प्रिंसिपल की शिकायत के आधार पर आरोपियों पर IPC की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिसमें 143 (अवैध रूप से एकत्र होना), 147 (दंगा करना), 149 (सामान्य उद्देश्य के लिए किया गया अपराध), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 341 (गलत तरीके से रोकना) और 352 (गंभीर उकसावे के अलावा हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) शामिल है. सभी आरोपियोंको अगले आदेश तक सभी शैक्षणिक गतिविधियों से भी सस्पेंड कर दिया गया है. डूंगरपुर सदर थाने के SHO गिरधारी सिंह ने बताया कि पुलिस ने पीड़ित और 7 आरोपी छात्रों के बयान दर्ज किए हैं.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, आरोपियों में MBBS सेकेंड ईयर के देवेंद्र मीणा, अंकित यादव, रविंद्र कुलरिया, सुरजीत, विष्णेंद्र धायल, सिद्धार्थ परिहार और अमन रागेरा शामिल है, जबकि पीड़ित छात्र की पहचान हर्षित खन्ना के रूप में हुई है. पीड़ित छात्र हर्षित खन्ना के मुताबिक, मेरे अलावा करीब 50 अन्य छात्रों की रैगिंग की गई है. लेकिन मेरे अलावा किसी अन्य पीड़ित ने सीनियर्स के खिलाफ शिकायत नहीं की. हर्षित का दावा है कि अन्य पीड़ित छात्र सीनियर्स से डरे हुए हैं, लिहाजा उन्होंने शिकायत नहीं की है.
पिछले कुछ सालों में कॉलेजों-स्कूलों में छात्रों के साथ रैगिंग की शिकायत के बाद यूजीसी ने इसकी रोकथाम के लिए कड़े कानून बनाए थे.
पहले जान लीजिए क्या-क्या रैगिंग के दायरे में आएगा?
अगर किसी छात्र या छात्रा के पहनावे, उसके रंगरूप को लेकर टिप्पणी की जाती है, उसे परेशान किया जाता है, तो ये भी रैगिंग की श्रेणी में आएगा.
फ्रेशर स्टूडेंट को क्षेत्रीयता, लैंग्वेज या कास्ट के आधार पर परेशान करना भी रैगिंग की श्रेणी में आएगा. इसके अलावा, उसके फैमिली बैक ग्राउंड को लेकर परेशान करना भी इसी कैटेगरी में आएगा.
नए छात्रों को सीनियर्स की ओर से अजीब टास्क देना भी इसी कैटेगरी में आएगा. अगर कोई सीनियर किसी फ्रेशर को उसके धर्म के आधार पर मजाक से अपमानित करता है, उसके स्वाभिमान को नुकसान पहुंचाता है, तो भी उसे रैगिंग का दोषी पाया जाएगा.
UGC के मुताबिक, कॉलेज की ओऱ से मदद नहीं मिलने पर छात्र यूजीसी के पास जा सकता है. दोषी छात्रों के खिलाफ रैगिंग रेग्यूलेशन एक्ट के तहत कार्रवाई होगी. यूजीसी के मुताबिक, रैगिंग के शिकार छात्र के दोषी सीनियर्स सजा तो भुगतेंगे ही, साथ ही उस कॉलेज पर भी कार्रवाई होगी, जिस कॉलेज में ऐसा मामला सामने आएगा.
UGC के अलावा राज्य सरकारों की ओर से भी इस पर लगाम लगाने के लिए कानून बनाए गए हैं. उदाहरण के तौर पर त्रिपुरा में दोषियों को 4, महाराष्ट्र में 2, उत्तर प्रदेश में 2, छत्तीसगढ़ में 5 साल तक के जेल की सजा का प्रावधान है. साथ ही दोषियों के खिलाफ जुर्माने का भी प्रावधान रखा गया है.
2009 में हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में एक छात्र की रैगिंग के बाद मौत हो गई थी. छात्र धर्मशाला के राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के लिए आया था. एडमिशन के बाद सीनियर्स ने उसकी रैगिंग की थी और इस दौरान उसे प्रताड़ित किया गया था. छात्र की मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए रैगिंग के खिलाफ कानून बनाने के लिए एक उपसमिति का गठन किया था. उपसमिति ने अपनी रिपोर्ट में एजुकेशन सिस्टम में रैगिंग को बड़ा दाग बताया था.
ग्रीस में 7वीं और 8वीं शताब्दी में स्पोटर्स कम्यूनिटी में प्लेयर्स ने स्पोर्ट्स स्पीरिट को मजबूत करने के लिए इसकी शुरुआत की थी. इसके बाद मिलिट्री और फिर स्कूल-कॉलेजों में इसका चलन हो गया.