Mathura Mandir And Kabristan Dispute: मथुरा (Mathura) से करीब 60 किलोमीटर दूर शाहपुर गांव में बांके बिहारी मंदिर ( Banke Bihari Mandir) की जमीन को फर्जी तरीके से कब्रिस्तान के नाम दर्ज किए जाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) में शुक्रवार को सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जमीन को बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट के नाम दर्ज किए जाने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि एक महीने के अंदर जमीन को राजस्व विभाग के दस्तावेजों में मंदिर ट्रस्ट के नाम दर्ज किया जाए. तो चलिए आपको बताते हैं हि जमाीन विवाद का ये पूरा मामला है क्या.
मथुरा के पास शाहपुर गांव है. गांव में एक पुराना चबूतरा है. इस चबूतरे के ऊपर मजार बनी हुई है. चबूतरे पर उगी घास और आसपास की झाड़ियां देखकर लगता है कि अब यहां कोई आता-जाता नहीं है. भले ही इस जगह पर कोई आता-जाता ना हो लेकिन चबूतरे के पास हर वक्त दो पुलिसकर्मी तैनात रहते हैं. गांव में रहने वाले हिंदू चबूतरे को बांके बिहारी मंदिर का अवशेष मानते हैं, जिसे मुगल बादशाह औरंगजेब के राज में तोड़ दिया गया था. वहीं मुस्लिम इस जगह कब्रिस्तान बताते हैं.
बात आगे की करें तो मंदिर और मजार के विवाद में एक नाम अहम है और वो है राम अवतार गुर्जर. राम अवतार गुर्जर की याचिका पर ही हाईकोर्ट में सुनवाई हो रही है. राम अवतार का कहना है कि बांके बिहारी मंदिर को हथियाने के लिए 70 साल से साजिश चल रही है. इसके लिए कागजों में हेर-फेर किया गया है. गांव में पहले सिर्फ हिंदू रहते थे, बाद में हरियाणा के मेवात से मुसलमान आकर बस गए.
हाईकोर्ट का फरमान नहीं रहेगा कब्रिस्तान, बांके बिहारी की जमीन पठान ने धोखे से ठगी!
— India Daily Live (@IndiaDLive) September 16, 2023
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राम अवतार बताते हैं, 'बांके बिहारी का मंदिर सदियों पुराना है. इसका रिकॉर्ड भी है. विवाद हुआ, तो 1953 की खतौनी निकलवाई गई. उसमें खसरा नंबर 3217 में .36 डिसमिल या करीब 2.25 बीघा जमीन मंदिर के नाम है. 1962-64 में चकबंदी खत्म हुई, तो नया खसरा नंबर 1081 बना. इसमें भी जमीन बांके बिहारी के नाम ही दर्ज रही.' उनका कहना है कि जमीन पर कब्जा करने की कोशिश 1970 में शुरू हुई थी.
राम अवतार के मुताबिक समाजवादी पार्टी के एक स्थानीय नेता भोला पठान ने लेखपाल के साथ कागजों में हेरा-फेरी कर जमीन हथियाने की कोशिश की. अक्टूबर, 2019 में एक दिन मुस्लिम पक्ष के लोग बुलडोजर लेकर आए और चबूतरे के पास बने ऐतिहासिक कुएं को तोड़ दिया. जमीन के चारों ओर कंटीली तार लगाई जाने लगी. गांव के लोग मौके पर पहुंचे, बहसबाजी हुई, अफसरों को बुलाया गया. फेंसिंग का काम रोक दिया गया. दिसंबर, 2019 में कुछ मुस्लिम वहां अगरबत्ती जला रहे थे, इस पर फिर विवाद हुआ.
राम अवतार कहते हैं कि 15 मार्च, 2020 को चोरी-चुपके चबूतरे पर बना बिहारी जी का सिंहासन तोड़ दिया गया और मजार बना दी गई. खबर हुई तो गांव के लोग इकट्ठा हुए और मजार तोड़ दी गई. पुलिस और प्रशासन के अधिकारी आ गए. पुलिस ने हमें अरेस्ट कर लिया. उसी रात चबूतरे पर फिर मजार बनवा दी गई. मामला बढ़ा तो मजिस्ट्रेट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देकर पुलिस की ड्यूटी लगा दी, तभी से यहां पुलिसवाले तैनात हैं.
राम अवतार के मुताबिक, 'भोला पठान के लेटर पर आए आदेश के आधार पर लेखपाल ने 108/5 को 1081 कर दिया और खतौनी पर चढ़वा दिया. इससे जमीन कब्रिस्तान के नाम पर दर्ज हो गई और किसी को पता भी नहीं चला. 2020 में मामला बढ़ गया, तो अफसरों से शिकायत की गई. 19 मार्च, 2020 को मुख्यमंत्री को लेटर लिखा गया. जिलाधिकारी से मिले तो उन्होंने एक जांच कमेटी बनाई. कमेटी ने रिपोर्ट भी दी, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई. वक्फ बोर्ड से पूछा गया कि क्या ये जमीन आपके यहां दर्ज है, तो उसने भी मना कर दिया.
गांव के लोगों का भी यही कहना है कि आजादी से पहले सरकारी कागजों में ये जमीन बांके बिहारी मंदिर के नाम पर दर्ज है, तो फिर कभी आबादी, कभी पोखर, कभी कब्रिस्तान के नाम कैसे दर्ज हो सकती है. गांव के लोग बताते हैं कि हमने अपने बड़े-बुजुर्गों से सुना था कि यहां बांके बिहारी का मंदिर था. बहुत साल पहले बाढ़ आई थी, उसमें मंदिर का ऊपर का हिस्सा बह गया, लेकिन चबूतरा और सिंहासन बचा था. हमारे सामने यहां पूजा होती थी, पर अब तीन साल से सब बंद है.
फिलहाल अब इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद गांव के लोग खुश हैं. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जमीन को बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट के नाम दर्ज किए जाने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि एक महीने के अंदर जमीन को राजस्व विभाग के दस्तावेजों में मंदिर ट्रस्ट के नाम दर्ज किया जाए.
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