मराठा आरक्षण की मांग को लेकर कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल के नेतृत्व में मुंबई का आजाद मैदान आंदोलन का केंद्र बना हुआ है. आंदोलन की शुरुआत 27 अगस्त से हुई थी, लेकिन 29 अगस्त से यह और तेज हो गया जब जरांगे ने अनिश्चितकालीन उपवास शुरू कर दिया. उनकी मांग है कि मराठा समाज को कुनबी मानकर ओबीसी श्रेणी में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए.
आंदोलनकारियों के सड़कों पर उतरने से दक्षिण मुंबई पूरी तरह जाम हो गई. छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी), फोर्ट, चर्चगेट और मंत्रालय जैसे इलाकों में यातायात बुरी तरह प्रभावित हुआ. डॉ. डी.एन. रोड से लेकर क्रॉफ़र्ड मार्केट तक वाहन संचालन रोक दिया गया, जबकि जे.जे. ब्रिज से डायवर्जन की व्यवस्था की गई.
धोरी तालाब मेट्रो जंक्शन के पास महापालिका मार्ग को दोनों ओर से बंद कर दिया गया, जिससे बीएमसी मुख्यालय और सीएसएमटी तक लोगों का पहुंचना मुश्किल हो गया. वहीं मरीन ड्राइव, बॉम्बे हाईकोर्ट, फ्लोरा फाउंटेन और विधान भवन के आस-पास की सभी सड़कें भी आंदोलनकारियों से भरी पड़ी थीं.
मनोज जरांगे ने एलान किया है कि जब तक मराठा समाज को ओबीसी में शामिल कर 10 प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया जाता, वे पीछे नहीं हटेंगे. उनका दावा है कि सरकारी रिकॉर्ड में पहले से ही 58 लाख मराठा कुनबी के रूप में दर्ज हैं. रविवार को उन्होंने सरकार की देरी के विरोध में पानी भी त्यागने का ऐलान कर दिया. पुलिस के अनुसार, सिर्फ शुक्रवार को ही 45 हजार से ज्यादा लोग करीब 8 हजार गाड़ियों के काफिले के साथ मुंबई पहुंचे थे. भीड़ इतनी बढ़ी कि आजाद मैदान छोटा पड़ गया और लोग सड़क पर बैठ गए.
इस आंदोलन ने महाराष्ट्र की राजनीति में गर्मी बढ़ा दी है. जरांगे ने सरकार द्वारा नियुक्त रिटायर्ड जज संदीप शिंदे से बातचीत को ठुकरा दिया और कहा कि केवल ठोस समाधान ही स्वीकार होगा. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की कैबिनेट कानूनी विकल्प तलाश रही है, जबकि विपक्ष ने सरकार को वर्षों से इस मुद्दे को टालने का जिम्मेदार ठहराया.
इस बीच बीएमसी ने आंदोलन स्थल पर सफाईकर्मी, पानी के टैंकर, मोबाइल टॉयलेट और मेडिकल टीमें तैनात कर दी हैं. जरांगे का कहना है कि यह मराठा समाज की 'अंतिम लड़ाई' है और अब वे पीछे नहीं हटेंगे.