menu-icon
India Daily

Mahakumbh 2025: नागा बनने के 3 खतरनाक स्टेज; खींच ली जाती है नस, ये सब इतना आसान नहीं

आम दिनों में लापता और महाकुंभ में लाखों नागा साधुओं का दिखना भी किसी रहस्य से कम नहीं है, लेकिन यहां हम नागा बनने के 3 खतरनाक स्टेज के बारे में बता रहे हैं. जिससे सभी नागा साधुओं को गुजरना होता है.

auth-image
Edited By: Kamal Kumar Mishra
Naga Sadhu
Courtesy: x

Mahakumbh 2025: महाकुंभ में दिखने वाले नागा भले ही आपको एक साधु नजर आते हों, लेकिन वो बनना इतना आसान नहीं है. नागा बनने के तीन बेहद कठिन प्रक्रिया से गुजरना होता है. सामान्यतः, नागा बनने की उम्र 17 से 19 वर्ष होती है और इस पूरी प्रक्रिया के तीन मुख्य चरण होते हैं. महापुरुष, अवधूत और दिगंबर. इसके अलावा, एक प्रारंभिक परख अवधि भी होती है, जिसमें उम्मीदवार की परीक्षा ली जाती है.

पहले चरण में इच्छुक व्यक्ति को अखाड़े में आवेदन करने पर उसे परखने के लिए घरवालों से जानकारी ली जाती है. इसके बाद उसका क्रिमिनल रिकॉर्ड चेक किया जाता है. अगर वह इस प्रक्रिया में खरा उतरता है, तो उसे एक गुरु बनाना पड़ता है और कुछ वर्षों तक सेवा करनी होती है. इस दौरान, उसे अपने शरीर की इच्छाओं पर नियंत्रण, घर-परिवार की यादों से दूर रहने और साधना में लगने की परीक्षा दी जाती है. यदि वह इस परीक्षा में असफल होता है, तो उसे वापस भेज दिया जाता है.

पहले चरण में दी जाती है महापुरुष की उपाधि

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर धनंजय चोपड़ा अपनी किताब 'भारत में कुंभ' में बताते हैं कि महापुरुष बनने के बाद, उम्मीदवार को संन्यास जीवन की प्रतिज्ञा दी जाती है और पंच संस्कार की प्रक्रिया के तहत शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश को गुरु मानकर उसे भगवा वस्त्र, नारियल, रुद्राक्ष और अन्य आभूषण दिए जाते हैं. इसके बाद गुरु शिष्य की चोटी काटकर उसे महापुरुष की उपाधि देते हैं.

नागा बनने का दूसरा चरण

दूसरे चरण में, जिसे अवधूत कहा जाता है, महापुरुष को नदी में स्नान कराकर पुराने कपड़े त्यागने और नए कपड़े धारण करने का आदेश दिया जाता है. इसके बाद, उसे पिंडदान की प्रक्रिया से गुजरना होता है, जिसमें उसे 17 पिंडदान करने होते हैं - 16 अपने पूर्वजों के और 17वां स्वयं का. इस प्रक्रिया के बाद वह सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है और अवधूत के रूप में नये जीवन की शुरुआत करता है.

पुरुषों की खींच ली जाती है नस

तीसरे और अंतिम चरण में, जिसे दिगंबर कहा जाता है, महापुरुष को 24 घंटे उपवास रखना होता है और उसके बाद उसकी जननांग की नस खींची जाती है, जिससे वह नपुंसक बन जाता है. इसके बाद वह शाही स्नान के दौरान नागा साधु के रूप में प्रतिष्ठित होता है. इस पूरी प्रक्रिया में कई कठिन संस्कार होते हैं, जिन्हें एक बड़ा साधु ही पूरा कर सकता है. कुंभ मेला में विभिन्न स्थानों पर इन नागा साधुओं को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है जैसे प्रयाग में नागा, उज्जैन में खूनी नागा, हरिद्वार में बर्फानी नागा और नासिक में खिचड़िया नागा.