कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने कथित MUDA भूमि घोटाला मामले में उनके खिलाफ अभियोजन की मंजूरी देने के राज्यपाल थावर चंद गहलोत के फैसले को चुनौती दी थी. न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की पीठ ने फैसला सुनाया कि 'राज्यपाल स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं और गहलोत ने पूरी तरह से अपने दिमाग का इस्तेमाल किया. इसलिए,जहां तक आदेश (मुख्यमंत्री पर मुकदमा चलाने का) का सवाल है, राज्यपाल के कार्यों में कोई गलती नहीं है.'
सिद्धारमैया ने तर्क दिया कि राज्यपाल का कदम अवैध है क्योंकि वह राज्य मंत्रिमंडल की मंजूरी के बिना कोई कार्रवाई नहीं कर सकते. उनके वकील सिंघवी ने पहले कहा था कि मुख्यमंत्री ने भूमि अनुदान के बारे में कहीं भी कोई निर्णय या सिफारिश नहीं की है, चाहे वह अवैध हो या अन्यथा. कथित घोटाला मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) द्वारा भूमि आवंटन में अनियमितताओं से जुड़ा है.
आरोप हैं कि सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती को मुआवजे के तौर पर आवंटित की गई भूमि, बदले में दी गई भूमि के मूल्य से कहीं ज़्यादा है. सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के नाम पर है. बीजेपी इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री और उनकी सरकार पर लगातार हमलावर है और उन्होंने सीएम सिद्धारमैया पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इस्तीफा की मांग की है.
राज्यपाल ने 17 अगस्त को मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अपनी सहमति दे दी थी. कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने 17 अगस्त को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ जमीन से जुड़े भ्रष्टाचार मामले में केस चलाने की आधिकारिक अनुमति दी थी. सिद्धारमैया पर मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) की जमीन के मुआवजे के लिए फर्जी दस्तावेज लगाने का आरोप है.
26 जुलाई को राज्यपाल ने नोटिस जारी कर CM से 7 दिन में जवाब मांगा था. 1 अगस्त को कर्नाटक सरकार ने राज्यपाल को नोटिस वापस लेने की सलाह दी और उन पर संवैधानिक शक्तियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया. MUDA घोटाले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, उनकी पत्नी, साले और कुछ अधिकारियों के खिलाफ शिकायत की गई है. एक्टिविस्ट टी. जे. अब्राहम, प्रदीप और स्नेहमयी कृष्णा का आरोप है कि CM ने MUDA अधिकारियों के साथ मिलकर महंगी साइट्स को धोखाधड़ी से हासिल करने के लिए फर्जी दस्तावेज लगाए.