menu-icon
India Daily

टेक्समती को पछाड़कर अमेरिका के बाजारों में छाया भारत का बासमती चावल, बौखलाए ट्रंप ने दी टैरिफ की चेतावनी

भारतीय बासमती ने चार दशक पुराने अमेरिकी प्रयोग टेक्समती को पीछे छोड़ते हुए अमेरिकी बाजार में अपनी मजबूत पकड़ बनाई है. इसी बढ़त के बीच डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतीय चावल पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की चेतावनी दी है.

auth-image
Edited By: Sagar Bhardwaj
Indias Basmati rice dominates US markets surpassing Texmati donald Trump warns of tariffs
Courtesy: freepik

भारत की बासमती चावल की सुगंध और गुणवत्ता ने दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई है, लेकिन अमेरिका ने 1980 के दशक में इसे चुनौती देने के लिए टेक्समती नाम का इसका कॉपी चावल तैयार किया था लेकिन यह चावल कई वर्षों के प्रयासों के बावजूद हाइब्रिड भारतीय बासमती की लोकप्रियता को कभी नहीं पछाड़ पाया. आज हालात ऐसे हैं कि अमेरिकी किसान दबाव में हैं और इसी पृष्ठभूमि में डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतीय चावल पर अतिरिक्त टैरिफ की चेतावनी देकर नया विवाद खड़ा कर दिया है.

कैसे तैयार किया गया था टेक्समती

टेक्सास की एक कंपनी ने अमेरिकी लंबे दाने वाले चावल को बासमती से मिलाकर टेक्समती चावल की नई किस्म तैयार की थी. इसका उद्देश्य चावल की ऐसी खुशबूदार किस्म का निर्माण करना था जो अमेरिकी परिस्थितियों में उग सके. हालांकि, स्वाद, सुगंध और पकने पर दाने की लंबाई में यह मूल बासमती की बराबरी नहीं कर पाया और उपभोक्ता धीरे-धीरे फिर भारतीय बासमती की ओर लौट आए.

बासमती को लेकर हुआ था जबरदस्त विवाद

1997 में राइस्‍टेक को बासमती जैसी विशेषताओं पर एक व्यापक पेटेंट मिला, जिसे भारत और कई संगठनों ने चुनौती दी. लंबे विवाद के बाद पेटेंट में कई संशोधन हुए और "बासमती" शब्द हटाना पड़ा. इस घटना ने साबित किया कि असली बासमती केवल भारत के हिमालयी क्षेत्रों की मिट्टी और पानी से ही संभव है.

क्यों नहीं टिक पाए अमेरिकी हाइब्रिड

बासमती पकने पर अपनी लंबाई दोगुनी कर लेता है और हल्की-फुल्की बनावट बनाए रखता है. इसमें मौजूद प्राकृतिक सुगंध अमेरिकी हाइब्रिड से कई गुना अधिक है. वहीं, भारत में छह से बारह महीने की एजिंग प्रक्रिया चावल को और बेहतर बनाती है. यही वजह है कि अमेरिकी बाजार में 85% से अधिक मांग भारतीय बासमती की ही रहती है.

अमेरिकी किसानों की तकलीफ और ट्रम्प की चेतावनी

बासमती की बढ़ती लोकप्रियता ने अमेरिकी किसानों पर दबाव बढ़ाया है. कई मिल मालिकों ने शिकायत की कि विदेशी चावल उनकी हिस्सेदारी कम कर रहा है. इसी के बाद ट्रम्प ने भारतीय चावल पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की चेतावनी दी. उन्होंने किसानों के लिए 12 अरब डॉलर की सहायता योजना भी घोषित की.

भारत पर कितना असर पड़ेगा

विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिकी टैरिफ का भारत पर सीमित प्रभाव रहेगा, क्योंकि अमेरिका भारत के कुल चावल निर्यात का सिर्फ 3% हिस्सा है. भारत के मुख्य बाजार खाड़ी देश हैं और अफ्रीकी बाजार तेजी से बढ़ रहे हैं. इसलिए कीमतें बढ़ने पर अमेरिकी उपभोक्ताओं को अधिक प्रभावित होना पड़ेगा, न कि भारतीय निर्यातकों को.