जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्रशासन ने कुलपति के पदनाम को 'कुलपति' से बदलकर 'कुलगुरु' करने का फैसला किया है, जिसे विश्वविद्यालय के सभी आधिकारिक शैक्षणिक दस्तावेजों, जिसमें डिग्री प्रमाणपत्र भी शामिल हैं, में लागू किया जाएगा. हालांकि, इस निर्णय की जेएनयू छात्रसंघ (JNUSU) ने कड़ी आलोचना की है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, बुधवार (4 जून) को जारी एक बयान में जेएनयू छात्रसंघ ने प्रशासन पर “कार्रवाई के बजाय दिखावे” में लिप्त होने का आरोप लगाया और लैंगिक न्याय के मुद्दों पर तत्काल सुधारों की मांग की.
JNUSU की आलोचना: दिखावा या सुधार?
छात्रसंघ ने बयान में कहा, “हम आपकी लैंगिक तटस्थता की दिशा में पदनाम बदलने की जल्दबाजी को समझते हैं. लेकिन केवल प्रतीकात्मक कदम लैंगिक न्याय सुनिश्चित नहीं कर सकते; इसके लिए संस्थागत सुधारों की आवश्यकता है.” JNUSU ने कुलपति पर “राजनीतिक और वैचारिक प्रवृत्ति” का अनुसरण करने का आरोप लगाया, जिसमें सुधारों के बजाय नाम बदलने पर जोर दिया जा रहा है. उन्होंने इसे मोदी सरकार की कार्यशैली से जोड़ा, जिसे उन्होंने “गेम चेंजर होने का दावा करते हुए नेम चेंजर” की तरह काम करने वाला बताया.
छात्रसंघ ने प्रशासन की “संवाद में अरुचि” की भी आलोचना की, विशेष रूप से जेएनयू प्रवेश परीक्षा पर चर्चा के लिए बार-बार किए गए अनुरोधों को नजरअंदाज करने का उल्लेख किया. “हम संवाद में विश्वास करते हैं जो आपने नहीं अपनाया,” छात्रसंघ ने आरोप लगाया.
'कुलगुरु' नामकरण का कारण
विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने अप्रैल में हुई बैठक में इस बदलाव को मंजूरी दी थी. फिलहाल, परीक्षा नियंत्रक ने इसे लागू करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. विश्वविद्यालय अधिकारियों ने 'कुलगुरु' को लैंगिक तटस्थ और सांस्कृतिक रूप से सार्थक शब्द बताया, जो आधुनिक शैक्षणिक और सामाजिक मानदंडों के अनुरूप है. यह कदम राजस्थान और मध्य प्रदेश सरकारों द्वारा किए गए समान परिवर्तनों की तर्ज पर है.
जानिए क्या हैं JNUSU की मांगें?
जेएनयू छात्रसंघ ने चार प्रमुख मांगें उठाईं है.
1) लैंगिक संवेदीकरण समिति (GSCASH) की तत्काल बहाली, जो उनके अनुसार वर्तमान आंतरिक शिकायत समिति (ICC) से अधिक लोकतांत्रिक और पीड़ित-अनुकूल थी.
2) पीएचडी प्रवेश में वंचित अंकों की बहाली, जो हाशिए पर रहने वाले और महिला छात्रों के लिए समान अवसर प्रदान करती थी. 3) लैंगिक तटस्थ शौचालयों और हॉस्टलों का निर्माण करना शामिल है.
4) सुप्रीम कोर्ट के NALSA फैसले के अनुरूप ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए आरक्षण लागू करना होता है.