'विभीषण भला था, बस गलत पार्टी में था', हनुमान को महान डिप्लोमेट बताते हुए बोले एस जयशंकर
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भगवान कृष्ण और हनुमान को सबसे महान राजनयिक बताते हुए कहा कि भारत की सांस्कृतिक समझ और आत्मविश्वास ने दुनिया में देश की छवि को पहले से कहीं अधिक मजबूत बनाया है.
नई दिल्ली: विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने पुणे में एक कार्यक्रम के दौरान भारतीय सभ्यता, कूटनीति और आधुनिक भारत की वैश्विक छवि को एक ही सूत्र में पिरोते हुए महत्वपूर्ण बातें रखीं.
उन्होंने भगवान कृष्ण और हनुमान को इतिहास के सबसे महान डिप्लोमेट बताया और रामायण-महाभारत के उदाहरणों के जरिए समझाया कि भारत की सोच केवल शक्ति नहीं, बल्कि संवाद और रणनीति पर आधारित रही है.
हनुमान और कृष्ण: कूटनीति के आदर्श
जयशंकर ने कहा कि जब उनसे पूछा गया कि दुनिया का सबसे महान राजनयिक कौन है, तो उनका उत्तर भगवान कृष्ण और हनुमान थे. उनके अनुसार, कृष्ण महाभारत में संवाद और रणनीति के प्रतीक हैं, जबकि हनुमान रामायण में सूझबूझ, साहस और मिशन-केंद्रित कूटनीति के उदाहरण हैं. उन्होंने कहा कि हमारी पौराणिक कथाएं केवल धार्मिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक बुद्धिमत्ता से भरी हुई हैं.
विभीषण का उदाहरण और रणनीतिक सोच
विदेश मंत्री ने हनुमान की लंका यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका उद्देश्य केवल सीता माता का पता लगाना नहीं था, बल्कि पूरे हालात को समझना था. हनुमान ने विभीषण की क्षमता को पहचाना और समझा कि वह अच्छे व्यक्ति हैं, बस गलत संगति में हैं. जयशंकर ने कहा कि यही असली कूटनीति है- सही समय पर सही व्यक्ति को पहचानना और उसे सही दिशा देना.
दुनिया में बदली भारत की छवि
जयशंकर ने कहा कि आज दुनिया भारत को पहले से कहीं अधिक सकारात्मक और गंभीरता से देखती है. यह बदलाव केवल आर्थिक ताकत की वजह से नहीं, बल्कि भारत की विश्वसनीयता और व्यवहार से आया है. उन्होंने कहा कि भारत का राष्ट्रीय ब्रांड और अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा दोनों मजबूत हुए हैं, और यह एक ऐसी सच्चाई है जिसे नकारा नहीं जा सकता.
भारतीय समाज की वैश्विक पहचान
विदेश मंत्री के अनुसार, आज भारतीयों को दुनिया में मेहनती, तकनीकी रूप से सक्षम और पारिवारिक मूल्यों से जुड़े लोगों के रूप में देखा जाता है. उन्होंने प्रवासी भारतीयों की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि विदेशों में भारत के प्रति सम्मान बढ़ा है. कारोबार करना आसान हुआ है और जीवन की गुणवत्ता में सुधार आया है, जिससे पुरानी रूढ़ियां धीरे-धीरे टूट रही हैं.
अर्थव्यवस्था, शिक्षा और भविष्य की राह
जयशंकर ने कहा कि भारत की प्रगति केवल सेवा क्षेत्र तक सीमित नहीं रह सकती. मजबूत विनिर्माण, आधुनिक शिक्षा और विविध कौशल विकास जरूरी हैं. उन्होंने शिक्षकों, कलाकारों, शोधकर्ताओं और खिलाड़ियों की समान आवश्यकता पर जोर दिया. साथ ही बताया कि बीते दशक में उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या दोगुनी हुई है, लेकिन आगे और सुधार की जरूरत बनी हुई है.
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