बीते कुछ सालों में विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के इशारे पर विरोधी नेताओं के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाई की जा रही है. हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं को ईडी ने गिरफ्तार भी किया है. कई अन्य नेता भी ईडी के निशाने पर रहे हैं. कई ऐसे नेता भी रहे हैं जिनके सत्ता पक्ष के साथ चले जाने के बाद उनके खिलाफ चल रहे केस अचानक सुस्त दिखने लगे. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि पिछले 10 सालों से केंद्र की सत्ता पर काबिज नरेंद्र मोदी की सरकार में ईडी ने कितनी कार्रवाई की है. साथ ही, यह भी समझना चाहिए कि उससे पहले के 10 साल में UPA-1 और UPA-2 के दौरान यह ईडी कितनी सक्रिय हुआ करती थी.
अगर 2014 के पहले के 9 साल से तुलना की जाए तो ईडी की छापेमारी 86 गुना बढ़ गई है. वहीं, गिरफ्तारी और प्रॉपर्टी जब्त करने के मामले में 25 गुना बढ़ोतरी हुई है. बता दें कि मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट 2020 में बना था लेकिन इसके नियम 2005 में लागू हुए. कांग्रेस की अगुवाई में बनी UPA सरकार में ED ने PMLA कानून के तहत कुल 1797 मामलों में जांच की. वहीं, 2014 से 2024 के बीच मोदी सरकार के दौरान ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के कुल 5155 केस में जांच शुरू की.
UPA के कार्यकाल में दर्ज किए गए केसों में सिर्फ 102 मामलों में चार्जशीट दाखिल हो सकी. हालांकि, नरेंद्र मोदी की सरकार में इसमें कई गुना बढ़ोतरी हुई है और 1281 केस में चार्जशीट दायर की गई है. प्रतिशत में देखें तो यूपीए सरकार में जहां 6 प्रतिशत केस में चार्जशीट दायर हुई वहीं एनडीए सरकार में 25 प्रतिशत केस में चार्जशी दायर हुई.
UPA सरकार में सिर्फ 84 छापे मारे गए और 29 लोग गिरफ्तार हुए. वहीं, मोदी सरकार में 7,264 छापे मारे गए और 755 गिरफ्तारियां हुईं. यूपीए सरकार के दौरान कुल 5086 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई जबकि मोदी सरकार में कुल 1,21,618 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई. यूपीए सरकार में ईडी एक भी मामले में सजा नहीं दिला पाई जबकि मोदी सरकार में कुल 63 दोषियों को सजा दी गई है.