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'बाबा नहीं अंधविश्वास की भेंट चढ़े 121 लोग', जानें अंध श्रद्धा पर किस राज्य में है कौन-सा कानून

Indian Laws on Superstition: भारतीय समाज में सदियों से चली आ रही परंपराओं और रीति-रिवाजों का गहरा प्रभाव है. हालांकि, कई बार इनमें अंधविश्वास भी शामिल हो जाते हैं, जो न केवल समाज में कुरीतियों को जन्म देते हैं बल्कि लोगों के जीवन और सुरक्षा के लिए भी खतरा बन जाते हैं. इन्हीं कुरीतियों से निपटने के लिए कुछ भारतीय राज्यों ने अंधविश्वास विरोधी कानून बनाए हैं. आइए, हम इन कानूनों पर एक नजर डालें.

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Edited By: India Daily Live
Superstition Laws in India
Courtesy: IDL

Indian Laws on Superstition: भारतीय समाज की जड़ों में सदियों पुरानी परंपराएं और रीति-रिवाज गहरे पैठे हुए हैं. वहीं, कई बार इनमें अंधविश्वास भी शामिल हो जाते हैं, जो न केवल समाज में कुरीतियों को जन्म देते हैं बल्कि लोगों के जीवन और सुरक्षा के लिए भी खतरा बन जाते हैं. यूपी के हाथरस में मंगलवार को भगदड़ भी शायद उसी का एक उदाहरण था, जहां बाबा के पैरों की धूल लेने के लिए मची भगदड़ में 121 लोगों की मौत हो गई.

पुलिस ने भी बाबा को नहीं बनाया आरोपी

सोशल मीडिया पर लोग इस घटना को अंधविश्वास से जोड़ कर देख रहे हैं और कह रहे हैं कि ये 121 लोग बाबा की वजह से नहीं अंधविश्वास की भेंट चढ़े हैं. शायद यही वजह है जिसके चलते यूपी पुलिस ने अपनी एफआईआर में आयोजकों का नाम तो लिखा है पर बाबा को आरोपी नहीं बनाया है.

इस घटना ने अंधविश्वास को लेकर एक बार भी से घंटी बजाई है. देश में पहले महिलाओं को डायन बताकर प्रताड़ित करना, तांत्रिक क्रियाओं के नाम पर लोगों को लूटना और मानव बलि जैसी अमानवीय प्रथाएं अंधविश्वास की ही देन हैं. इन कुरीतियों से निपटने के लिए कुछ भारतीय राज्यों ने अपने स्तर पर अंधविश्वास विरोधी कानून बनाए हैं. 

नहीं है कोई केंद्रीय कानून, राज्यों की पहल से कुछ लगाम

हालांकि केंद्रीय स्तर पर इसको लेकर कोई कानून नहीं है, आइए एक नजर हम राज्यों की तरफ से लागू किए गए इन कानूनों पर डालते हैं और उनकी भूमिका पर भी नजर डालते हैं-

केंद्रीय कानून का अभाव: भारत में अभी तक कोई केंद्रीय कानून नहीं है जो विशेष रूप से अंधविश्वास को रोकने का काम करता हो. भारतीय दंड संहिता (IPC) की कुछ धाराएं अप्रत्यक्ष रूप से प्रासंगिक हो सकती हैं, मसलन जहरखेरा या काला जादू करने के नाम पर लोगों को प्रताड़ित करना दंडनीय है. लेकिन, व्यापक रूप से अंधविश्वास को परिभाषित करने और उससे जुड़े अपराधों से सख्ती से निपटने के लिए एक केंद्रीय कानून की आवश्यकता महसूस की जाती है.

राज्य स्तरीय पहल: इस कमी को कुछ हद तक दूर करने के लिए कई राज्यों ने अपने स्तर पर अंधविश्वास विरोधी कानून बनाए हैं. ये कानून मुख्य रूप से उन विशिष्ट कुरीतियों को रोकने का लक्ष्य रखते हैं जो उस राज्य में अधिक प्रचलित हैं.

किस राज्य में कैसा है कानून

  • बिहार (1999): "बिहार डायन (दाईं) प्रथा निवारण अधिनियम" पारित करने वाला पहला राज्य बना. यह कानून किसी महिला को डायन घोषित करने और प्रताड़ित करने के कृत्य को अपराध बनाता है.
  • झारखंड (2001), छत्तीसगढ़ (2005), ओडिशा (2013), राजस्थान (इसी तरह का कानून मौजूद) जैसे अन्य राज्यों ने भी इसी तर्ज पर कानून बनाए.
  • मानव बलि और अमानवीय कृत्यों पर रोक: महाराष्ट्र (2013) में "महाराष्ट्र मानव बलि और अन्य अमानवीय, दुष्ट और तांत्रिक क्रियाकलाप और जादू टोना निवारण अधिनियम" पारित कर महाराष्ट्र ने 2013 में एक कदम आगे बढ़ाया. यह कानून मानव बलि, काला जादू, और अन्य अमानवीय कार्यों को रोकने के लिए बनाया गया है.
  • अंधविश्वास के व्यापक दायरे को रोकने की कोशिश: हाल ही में (2020) कर्नाटक ने एक कानून अधिसूचित किया जिसमें अंधविश्वास से जुड़े करीब एक दर्जन से अधिक कृत्यों, जैसे ज्योतिष के नाम पर लोगों को गुमराह करना या तांत्रिक क्रियाओं के लिए अमानवीय या अस्वाभाविक चीजों की मांग करना, को गैर-जमानी अपराध घोषित किया गया है.

इन कानून की भी अपनी सीमाएं! 

ये कानून सराहनीय कदम हैं, लेकिन उनकी सीमाएं भी हैं जिसके चलते हाथरस की भगदड़ जैसी घटनाएं होती है. इस समस्या को दूर करने के लिए क्या किया जा सकता है, इस पर एक नजर डालते हैं.

परिभाषा की कमी:  व्यापक रूप से अंधविश्वास को परिभाषित करने में स्पष्टता की कमी हो सकती है. उदाहरण के लिए, क्या ज्योतिष या शुभ-अशुभ के संकेतों पर भरोसा करना भी अंधविश्वास की श्रेणी में आता है? इस तरह की पेचीदगियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता है.

कानून अकेले काफी नहीं: कानून अकेले अंधविश्वास को जड़ से मिटाने के लिए काफी नहीं हैं. सामाजिक जागरूकता और शिक्षा का भी महत्वपूर्ण स्थान है.

शिक्षा और जागरूकता का अभियान: स्कूली पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने और अंधविश्वास के खतरों के बारे में जागरूकता फैलाने वाली सामग्री को शामिल किया जाना चाहिए. मीडिया को भी अपनी भूमिका निभानी होगी और तर्कसंगत सोच को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों का निर्माण करना चाहिए.

कानून के प्रभावी लागू करने की जरूरत: साथ ही, बनाए गए कानूनों का प्रभावी लागू करने भी आवश्यक है. कई मामलों में पुलिस या प्रशासन स्तर पर ही लापरवाही के चलते अंधविश्वास से जुड़े अपराधों पर सख्त कार्रवाई नहीं हो पाती.

अंधविश्वास विरोधी कानून एक पॉजिटिव कदम हैं, लेकिन उन्हें सामाजिक सुधारों और शिक्षा के साथ मिलकर ही देखा जाना चाहिए. तभी हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर पाएंगे जहां तर्क और विज्ञान का बोलबाला हो और अंधविश्वास जैसी कुरीतियां हाशिए पर चली जाएं.