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न्याय का मंदिर खुद कटघरे में... जानें क्यों यूपी की महिला जज ने लगाई इच्छा मृत्यु की गुहार

यूपी में तैनात एक युवा महिला न्यायिक अधिकारी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक खुला पत्र लिखते हुए देश के सिस्टम की हकीकत से पर्दा उठाया है. महिला जज का कहना है कि उसके साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामले में वह खुद ही अपने लिए न्याय हासिल नहीं कर पा रही है.

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Antriksh Singh
Chief Justice of India

Judge Letter To CJI: यूपी में तैनात एक युवा महिला न्यायिक अधिकारी ने छह महीने पहले अपने ही वरिष्ठ अधिकारी द्वारा यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक खुला पत्र लिखा है. पत्र में उन्होंने न्याय मिलने की उम्मीद खत्म होने के चलते अपनी जान लेने की अनुमति मांगी है.

न्याय के लिए दर-दर भटकना

दो पन्नों के इस पत्र में उन्होंने लिखा है: "मैंने न्यायिक सेवा में बहुत उत्साह के साथ प्रवेश किया था, इस विश्वास के साथ कि मैं आम लोगों को न्याय दूंगी. लेकिन मुझे क्या पता था कि मैं खुद न्याय के लिए दर-दर भटकती रहूंगी. अपनी छोटी सी सेवा में मुझे खुले कोर्ट में मंच पर ही गाली-गलौज सुननी पड़ी है."

यौन उत्पीड़न का सामना

पत्र में आगे लिखा है: "मुझे यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है. मेरे साथ बदसलूकी की गई है. मुझे एक बेकार चीज की तरह महसूस होता है. मैंने एक न्यायाधीश बनने के लिए पढ़ाई की थी, दूसरों को न्याय देने के बारे में सोचा था, लेकिन हाय, मेरा अपना ही हाल बेहाल है."

आवाज नहीं सुनी गई

उन्होंने कहा: "मैंने अपनी शिकायत दर्ज करवाई, लेकिन मेरी आवाज नहीं सुनी गई. मैं सिर्फ निष्पक्ष जांच चाहती थी." पत्र में उन्होंने ये भी बताया कि उन्हें रात में अपने वरिष्ठ से मिलने के लिए कहा गया था. उन्होंने आत्महत्या का भी प्रयास किया था, लेकिन वह असफल रहा.

जीने की कोई इच्छा नहीं

सीजेआई को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है: "मेरे पास अब जीने की कोई इच्छा नहीं है. पिछले डेढ़ साल से मैं एक चलती-फिरती लाश बनकर रह गई हूं. इस बेजान शरीर को ढोने का अब कोई मतलब नहीं है. मेरी जिंदगी में अब कोई उद्देश्य नहीं बचा है. कृपया मुझे सम्मानजनक तरीके से मेरी जिंदगी खत्म करने की अनुमति दें. मेरी जिंदगी को इसी तरह समाप्त कर दें."

सभी महिलाओं को दी ये सलाह

उन्होंने भारत की कामकाजी महिलाओं से "व्यवस्था से लड़ने" का प्रयास नहीं करने की अपील की है. उन्होंने कहा है, "अगर किसी महिला को लगता है कि वह व्यवस्था से लड़ सकती है, तो मैं आपको बता दूं, मैं नहीं कर पाई. और मैं एक जज हूं. मैं अपने लिए भी निष्पक्ष जांच नहीं करा सकी. न्याय की बात तो दूर. मैं सभी महिलाओं को सलाह देती हूं कि वे खुद को एक खिलौना या बेजान वस्तु बनाना सीख लें."

फिलहाल इस मसले पर पत्र लिखने वाली महिला न्यायाधीश और उनके वरिष्ठ अधिकारी से प्रतिक्रियाएं प्राप्त नहीं हो सकी हैं.