Bangladesh Crisis: बांग्लादेश संकट को लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने तीखा बयान दिया है. अब्दुल्ला ने कहा कि बांग्लादेश में हसीना सरकार के साथ जो हुआ वह हर तानाशाह के लिए एक सबक है. उन्होंने कहा कि हर तानाशाह को जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ेगा. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री रहे अब्दुल्ला ने कहा कि शेख हसीना दुनियाभर में मुसलमानों के उत्पीड़न के खिलाफ खड़ी नहीं हुईं इसलिए उन्हें अपनी जान बचाने के लिए देश छोड़कर भागना पड़ा.
यह हर तानाशाह के लिए एक सबक है
नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रमुख अब्दुल्ला जिन्होंने हाल ही के लोकसभा चुनाव में विपक्ष की जीत को तानाशाही पर जीत बताया था ने कहा, 'छात्रों के एक आंदोलन शुरू किया जिसे कोई नहीं रोक सका, न वहां की सेना न कोई और इसलिए यह एक सबक है. न केवल बांग्लादेश के लिए बल्कि हर एक तानाशाह के लिए.'
मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठनी चाहिए
फारूक अब्दुल्ला जिन्होंने अनुच्छेद 370 के हटाए जाने की पांचवीं वर्षगांठ पर अपने घर के बाहर एक पुलिस का ट्रक खड़ा किया था ने कहा, 'वहां ऐसी भावना थी कि दुनियाभर में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठनी चाहिए. अगर शेख हसीना वहां से न भागतीं तो उनकी हत्या कर दी जाती.'
संकट से जूझ रही नेशनल कॉन्फ्रेंस
बता दें कि जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है तीन बार के मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला की पार्टी संकट से जूझ रही है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता ओमर अब्दुल्ला ने भी मोदी सरकार पर दोहरा रवैया करने का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि मोदी सरकार असमति में उठने वाली आवाजों को दबाने का काम कर रही है. उन्होंने कहा तब जम्मू-कश्मीर में विपक्षी पार्टियों के नेताओं को कैद किया जा रहा था उस समय भाजपा जश्न मना रही थी.
सभी दलों ने जताई बांग्लादेश को समर्थन देने पर सहमति
इसी बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि बांग्लादेश को लेकर हुई सर्वदलीय बैठक में सभी दलों ने बांग्लादेश को पूरा समर्थन देने की बात कही है. उन्होंने कहा कि हम बांग्लादेश के हालात पर पैनी नजर बनाए हुए हैं.
बांग्लादेश में क्यों भड़की हिंसा
फिलहाल बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत में शरण ले रखी है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार वह जल्द ही लंदन के लिए उड़ान भर सकती हैं. गौरतलब है कि बंगाल में नौकरियों में आरक्षण खत्म करने की मांग के चलते शुरू हुए छात्र आंदोलन ने हिंसा का रूप ले लिया और नतीजतन शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.