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India Daily

तमिलनाडु की डीएमके सरकार घिरी, मंदिरों की बदहाली और नेताओं के एंटी-हिंदू बयान पर घमासान

तमिलनाडु की डीएमके सरकार मंदिरों की बदहाल स्थिति, जमीनों पर कब्ज़े और आर्थिक अनियमितताओं को लेकर विपक्ष और हिंदू संगठनों के निशाने पर है. श्रद्धालुओं को बुनियादी सुविधाओं की कमी और अव्यवस्थित प्रबंधन से भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. वहीं पार्टी नेताओं के विवादित बयानों ने धार्मिक भावनाओं को और भड़काकर राजनीतिक माहौल को और गरमा दिया है.

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Edited By: Kuldeep Sharma
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Courtesy: web

तमिलनाडु में डीएमके सरकार के मंदिर प्रबंधन और हिंदू धर्म पर दिए गए विवादित बयानों की आलोचना थमने का नाम नहीं ले रही है. एचआर एंड सीई (हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ बंदोबस्त) विभाग के अधीन आने वाले 44,000 से ज्यादा मंदिरों की स्थिति चिंताजनक बताई जा रही है. वहीं उप मुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन और पार्टी नेता ए. राजा जैसे नेताओं के विवादित वक्तव्यों ने माहौल और गरमा दिया है.

तमिलनाडु के 44,121 मंदिरों में से कई सौ साल पुराने हैं, लेकिन उनकी स्थिति लगातार बिगड़ रही है. त्रिची के पलक्काराई स्थित शताब्दी पुराने सेल्व विनायगर मंदिर का उदाहरण सामने आया है, जहां पिछले 30 वर्षों से न तो कोई मरम्मत हुई और न ही कुंभाभिषेकम (पुनः अभिषेक समारोह). बावजूद इसके मंदिरों के पास 4.78 लाख एकड़ जमीन और 22,600 से अधिक इमारतों जैसी अपार संपत्ति है. लेकिन जुलाई 2022 से मार्च 2023 तक किराये से महज 117.63 करोड़ रुपये की ही आय दर्ज हुई. यह अंतर पारदर्शिता और कुशल प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़ा करता है.

जमीनों पर कब्ज़ा और वित्तीय अनियमितताएं

कई ऐतिहासिक मंदिरों की जमीनों पर अवैध कब्ज़े की शिकायतें भी बढ़ रही हैं. तिरुनेलवेली स्थित श्री वरगुण पांडेश्वरर और श्री नेल्लैअपर मंदिरों की हजारों एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा हो चुका है. आरोप है कि कुछ सरकारी विभाग भी इस अतिक्रमण में शामिल हैं. मंदिरों की संपत्ति का दुरुपयोग, पुजारियों को बेहद कम वेतन और वित्तीय दस्तावेज़ों में पारदर्शिता न होना लगातार सवालों के घेरे में हैं. सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी पोन मणिकवेल ने खुलासा किया कि तंजावुर के पुल्लमंगई मंदिर में पुजारियों को केवल 300 रुपये मासिक वेतन मिलता है. वहीं कैग ने भी एचआर एंड सीई विभाग को राजस्व बर्बादी और संपत्ति संबंधी विवरण छिपाने के लिए कठघरे में खड़ा किया है.

श्रद्धालुओं की मुश्किलें और व्यवस्थागत खामियां

मंदिरों की उपेक्षा का सीधा असर श्रद्धालुओं पर पड़ रहा है. कई मंदिरों में पीने के पानी, शौचालय और छांव जैसी बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं. त्योहारों और विशेष अवसरों पर अव्यवस्थित भीड़ प्रबंधन से हालात बिगड़ जाते हैं. तिरुवन्नामलाई और तिरुचेंदूर जैसे प्रमुख तीर्थ स्थलों पर श्रद्धालुओं के बेहोश होने और प्रसाद के लिए घंटों लाइन में लगने की घटनाएं सामने आती रहती हैं. तिरुवन्नामलाई के एक रिक्शा चालक ने आरोप लगाया कि जहां दर्शन की सरकारी दर 50 रुपये तक है, वहीं कुछ लोग 1,000 रुपये वसूलकर तेज़ी से प्रवेश दिलाते हैं. उनका कहना था कि सरकार यदि ऐसे वीआईपी दर्शन को वैध बनाकर नियमित शुल्क तय करे तो आय मंदिरों के विकास में लगाई जा सकती है.

डीएमके नेताओं के विवादित बयान और विरोध

प्रशासनिक लापरवाहियों के बीच डीएमके नेताओं के बयानों ने हिंदू समाज को और आहत किया है. उप मुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की तुलना डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों से करते हुए इसे "समाप्त करने" की बात कही. वहीं, पार्टी के डिप्टी जनरल सेक्रेटरी और सांसद ए. राजा ने हिंदू धर्म को वैश्विक खतरा बताते हुए इसे जाति और आर्थिक असमानता का कारण बताया. मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भी संस्कृत मंत्रोच्चार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि उन्हें समझने पर लोग "कांपने लगेंगे." इन बयानों ने धार्मिक समूहों और साधु-संन्यासियों को भी नाराज़ कर दिया है.

राजनीतिक असर और बढ़ता दबाव

इन विवादों के चलते राज्य भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. हिंदू संगठनों और विपक्षी दलों ने डीएमके सरकार पर हिंदू संस्कृति को कमजोर करने और मंदिरों की पवित्रता नष्ट करने का आरोप लगाया है. इस कारण मंदिर प्रशासन और धार्मिक संवेदनशीलता तमिलनाडु की राजनीति में बड़ा मुद्दा बन गए हैं. जैसे-जैसे विरोध तेज हो रहा है, डीएमके सरकार पर न केवल मंदिर प्रबंधन में सुधार का दबाव बढ़ रहा है, बल्कि यह भी चुनौती है कि वह हिंदू आस्थाओं को लेकर अपनी छवि कैसे सुधारती है.