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अरावली की 11 दरारों से दिल्ली-NCR तक पहुंच रही थार की धूल, पर्यावरणविदों ने क्या दी है चेतावनी? जानें

अरावली की नई परिभाषा को मंजूरी मिलने के बाद एक्सपर्ट्स ने चेतावनी दी है कि 11 दरारों से थार की धूल दिल्ली एनसीआर तक पहुंच रही है. पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने फैसले का विरोध किया है.

Km Jaya
Edited By: Km Jaya
Aravalli India daily
Courtesy: Pinterest

नई दिल्ली: अरावली पर्वतमाला को लेकर एक बार फिर गंभीर चिंता सामने आई है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली की नई परिभाषा को मंजूरी दिए जाने के बाद पर्यावरण विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने कड़ा विरोध जताया है. एक्सपर्ट्स का दावा है कि अरावली पर्वतमाला में अब तक 11 से अधिक बड़ी दरारें बन चुकी हैं, जिनके कारण थार रेगिस्तान की धूल दिल्ली एनसीआर तक पहुंच रही है.

इससे क्षेत्र में वायु प्रदूषण और पर्यावरणीय संकट लगातार गहराता जा रहा है. अरावली को दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में गिना जाता है. हाल के वर्षों में खनन, निर्माण और मानवीय गतिविधियों के कारण इसका तेजी से क्षरण हुआ है. पर्यावरण कार्यकर्ताओं के अनुसार राजस्थान के अजमेर से झुंझुनूं और हरियाणा के महेंद्रगढ़ तक फैली इन दरारों ने अरावली को कमजोर कर दिया है. 

दिल्ली एनसीआर तक कैसे पहुंच रही धुल?

इन दरारों के जरिए रेगिस्तानी धूल बिना किसी प्राकृतिक अवरोध के दिल्ली एनसीआर तक पहुंच रही है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत नई परिभाषा के अनुसार केवल वही पहाड़ियां अरावली का हिस्सा मानी जाएंगी जिनकी ऊंचाई कम से कम 100 मीटर है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस परिभाषा के लागू होने से लगभग 90 प्रतिशत अरावली क्षेत्र संरक्षण से बाहर हो जाएगा. 

हरियाणा और गुजरात में क्या है स्थिति?

हरियाणा और गुजरात जैसे राज्यों में पहले ही अरावली की पहाड़ियां अपेक्षाकृत कम ऊंची हैं, जिससे वहां का बड़ा हिस्सा संरक्षित दायरे से बाहर हो सकता है. अरावली विरासत जन अभियान से जुड़े संगठनों ने इस फैसले के खिलाफ राज्यसभा और लोकसभा सांसदों तक अपनी बात पहुंचाई है. 

उनका कहना है कि अरावली दिल्ली एनसीआर के लिए प्राकृतिक ढाल का काम करती है और इसे कमजोर करने का मतलब रेगिस्तान को राजधानी तक आमंत्रण देना है. 

केंद्र सरकार ने कोर्ट में क्या कहा?

कार्यकर्ताओं का मानना है कि अगर मौजूदा हालात जारी रहे तो भविष्य में धूल भरी आंधियां और गर्मी का असर और बढ़ेगा. वहीं सरकार का पक्ष इससे अलग है. केंद्र सरकार ने अदालत में कहा है कि अरावली की नई परिभाषा वैज्ञानिक आधार पर तय की गई है. 

सरकार का तर्क है कि अलग अलग राज्यों में अलग परिभाषा होने से नीतिगत भ्रम की स्थिति बनी हुई थी. नई परिभाषा से संरक्षण और विकास के बीच संतुलन स्थापित किया जा सकेगा.

पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने क्या कहा?

गुड़गांव और उदयपुर समेत कई शहरों में पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन किए हैं. उनका कहना है कि ऊंचाई आधारित परिभाषा से खनन और व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे पारिस्थितिक संतुलन को भारी नुकसान पहुंचेगा. कार्यकर्ताओं ने अरावली को पूरी तरह संरक्षित क्षेत्र घोषित करने और सख्त संरक्षण नीति लागू करने की मांग की है.