Supreme court: पिछले हफ्ते दिल्ली में हुई भारी बारिश के कारण सड़कों पर जलभराव और अफ़रा-तफ़री मच गई. जिसने एक बार फिर राजधानी की कमजोरी को उजागर कर दिया. भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने हाल ही में एक सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि अगर दो घंटे भी बारिश हो जाए तो शहर थम सा जाता है, जबकि उनके एक सहयोगी ने केरल की एक घटना पर टिप्पणी की कि अगर यात्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर 12 घंटे तक जाम में फंसे रहें तो उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए.
ये टिप्पणियां त्रिशूर जिले में पलियाक्करा टोल प्लाजा पर हाल ही में हुई सुनवाई के दौरान की गईं, जिसे केरल उच्च न्यायालय ने एनएच-544 के एडापल्ली-मन्नुथी खंड की खराब स्थिति के कारण टोल वसूली बंद करने का आदेश दिया था. इस आदेश को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने चुनौती दी थी.
12 घंटे जाम के बाद टोल क्यों देना चाहिए?
सर्वोच्च न्यायालय ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है, लेकिन मुख्य न्यायाधीश गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ द्वारा की गई टिप्पणियों से यात्रियों की हताशा स्पष्ट हो गई. सुनवाई के दौरान, पीठ ने केरल में राजमार्ग पर लगे 12 घंटे के जाम की एक अखबार की रिपोर्ट का हवाला दिया और आश्चर्य जताया कि सड़क के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचने में 12 घंटे लगने के बाद टोल क्यों देना चाहिए. एनएचएआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसे "ईश्वरीय कृपा" बताया. उन्होंने कहा कि एक ट्रक पलट गया था.
न्यायमूर्ति चंद्रन ने सड़क की खराब हालत की ओर इशारा करते हुए जवाब दिया कि ट्रक अपने आप नहीं पलटा वह एक गड्ढे में गिरने के बाद पलटा था. अपने बचाव में मेहता ने कहा कि जहां अंडरपास का निर्माण हो रहा है, वहां सर्विस रोड वैकल्पिक मार्ग प्रदान करते हैं, लेकिन मानसून के कारण निर्माण कार्य प्रभावित हुआ है.
इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने संबंधित 65 किलोमीटर लंबे रास्ते के लिए टोल शुल्क के बारे में पूछताछ की. जब उन्हें बताया गया कि यह 150 रुपये है, तो उन्होंने पूछा कि अगर किसी व्यक्ति को उस सड़क को तय करने में 12 घंटे लगते हैं, जो बिना ट्रैफ़िक के सिर्फ एक घंटे में तय हो जाती, तो उसे 150 रुपये टोल क्यों देना चाहिए.
सॉलिसिटर जनरल ने फिर एक पुराने फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि टोल वापस करने के बजाय, शुल्क को आनुपातिक रूप से कम किया जाना चाहिए. जस्टिस चंद्रन ने कहा कि 12 घंटे के लिए, एनएचएआई को यात्री को मुआवज़ा देना चाहिए. अदालत ने कहा, "यदि यातायात नहीं होगा तो इस हिस्से को तय करने में अधिकतम एक घंटा लगेगा. यदि यातायात होगा तो अधिकतम तीन घंटे लगेंगे. 12 घंटे के लिए आनुपातिक कटौती का कोई सवाल ही नहीं है."