नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की करारी हार के बाद विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक के भीतर नेतृत्व को लेकर सवाल तेज हो गए हैं. कांग्रेस के बेहद खराब प्रदर्शन ने न केवल उसके राजनीतिक प्रभाव को कमजोर किया है, बल्कि हिंदी पट्टी में सीट साझा करने की बातचीत पर भी बड़ा असर डाला है.
कांग्रेस ने बिहार में 61 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन केवल 6 सीटें जीतीं. यह महज 9.8 प्रतिशत की स्ट्राइक रेट है, जो पार्टी की भविष्य की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े करता है. तृणमूल कांग्रेस ने पहली बार खुलकर कांग्रेस की क्षमता पर सवाल उठाए हैं.
टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि कांग्रेस अब भाजपा को रोकने में सक्षम नहीं है और इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व ऐसे दल को मिलना चाहिए जिसका भाजपा को हराने का रिकॉर्ड हो. उनके अनुसार ममता बनर्जी के पास यह योग्यता है क्योंकि उन्होंने पश्चिम बंगाल में लगातार छह चुनावों में भाजपा को रोककर रखा है. टीएमसी के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि अब विपक्ष को नया नेतृत्व चुनना चाहिए ताकि आने वाले चुनावों में रणनीति प्रभावी हो सके.
इसी बीच टीएमसी, आम आदमी पार्टी, शिव सेना यूबीटी और समाजवादी पार्टी जैसे दलों का एक उप समूह लंबे समय से अपनी अलग रणनीति पर काम कर रहा है. इन दलों के पास लोकसभा में 77 सीटें हैं और ये मिलकर इंडिया ब्लॉक के भीतर दबाव समूह बना सकते हैं. 2024 के दिल्ली चुनाव में इन दलों ने कांग्रेस के बजाय आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया था, जो इस समानांतर रणनीति का स्पष्ट संकेत था.
बिहार की हार ऐसे समय आई है जब अगले वर्ष तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम, पुडुचेरी और केरल जैसे राज्यों में महत्वपूर्ण चुनाव होने वाले हैं. उसके बाद 2027 में उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और गोवा में भी चुनाव होंगे. ऐसे में विपक्षी दलों में समन्वय और मजबूत नेतृत्व की जरूरत और भी बढ़ गई है.
माकपा प्रमुख एमए बेबी ने कहा कि हर दल को और पूरे गठबंधन को इस हार पर गंभीर मनन की जरूरत है. उन्होंने माना कि इंडिया ब्लॉक बिहार में भाजपा को हराना चाहता था लेकिन मतदाता राहुल गांधी के 'वोट चोर, गद्दी छोड़' अभियान से प्रभावित नहीं हुए. कई विश्लेषकों का मानना है कि बिहार के नतीजे यह दिखाते हैं कि कांग्रेस की सीट मांगने की क्षमता अब काफी कमजोर हो जाएगी, खासकर उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में.
इसके अलावा सीमांचल क्षेत्र में एआईएमआईएम के 5 सीटें जीतने से यह संकेत मिला है कि मुस्लिम मतदाता भी अब इंडिया ब्लॉक के बाहर विकल्प तलाश रहे हैं. कुल मिलाकर बिहार का फैसला विपक्षी राजनीति की दिशा को बदलने वाला साबित हो सकता है.