menu-icon
India Daily

'दशकों से चल रहे मुकदमे...,'CJI बीआर गवई ने कहा, भारतीय न्याय व्यवस्था को 'सुधार की सख्त जरूरत'

भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने हैदराबाद के पास आयोजित एनएएलएसएआर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के दीक्षांत समारोह में देश की न्यायिक व्यवस्था की खामियों को लेकर गंभीर चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा कि भारत का कानूनी तंत्र दशकों तक चलने वाले मुकदमों, विचाराधीन कैदियों की पीड़ा और न्याय में देरी जैसी समस्याओं से जूझ रहा है. उन्होंने भरोसा जताया है कि आने वाली पीढ़ी की कानूनी प्रतिभा इन चुनौतियों का समाधान खोज सकती है.

auth-image
Edited By: Kuldeep Sharma
Bhushan Ramkrishna Gavai
Courtesy: web

न्यायपालिका की धीमी प्रक्रिया और विचाराधीन कैदियों की दशा को लेकर मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने बड़ी बात कही है. तेलंगाना के मेडचल स्थित जस्टिस सिटी में एनएएलएसएआर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के दीक्षांत समारोह में बोलते हुए उन्होंने भारतीय न्याय व्यवस्था की खामियों की खुलकर चर्चा की और युवाओं से इसे ठीक करने की अपील की.

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने साफ शब्दों में कहा कि भारत की न्यायिक व्यवस्था "गंभीर सुधार" की मांग कर रही है. उन्होंने कहा, “हमारी न्याय प्रणाली में कई मूलभूत समस्याएं हैं जो दशकों से बनी हुई हैं और अब इन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. हमें जल्द से जल्द इसमें बदलाव लाना होगा.”.

मुकदमों में देरी बड़ी समस्या

उन्होंने बताया कि मुकदमों के फैसले में हो रही देरी एक ऐसी समस्या है जो न्याय को निष्प्रभावी बना रही है. उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में आरोपी वर्षों तक जेल में विचाराधीन रहते हैं और अंततः जब उन्हें निर्दोष करार दिया जाता है, तब तक उनका जीवन बर्बाद हो चुका होता है. उन्होंने इसे “व्यवस्था की विफलता और मानवाधिकारों का हनन” बताया.

दीक्षांत समारोह में युवाओं को दिया संदेश

सीजेआई गवई एनएएलएसएआर लॉ यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में उपस्थित कानून के छात्रों को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे नैतिक मूल्यों के साथ काम करें और ऐसे मेंटर चुनें जो ईमानदार हों, न कि सिर्फ प्रभावशाली. उन्होंने कहा, “कानून की पढ़ाई केवल करियर नहीं, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है. जो युवा आज दीक्षांत ले रहे हैं, वही कल न्याय प्रणाली को दिशा देंगे.” गवई ने इस दौरान छात्रों को सलाह दी कि अगर वे विदेश में पढ़ाई करना चाहें, तो छात्रवृत्ति के माध्यम से करें ताकि परिवार पर आर्थिक बोझ न पड़े. उन्होंने कहा कि पढ़ाई का असली मकसद ज्ञान अर्जन और समाज की सेवा होनी चाहिए.

विचाराधीन कैदियों की पीड़ा को बताया 'मानव त्रासदी'

मुख्य न्यायाधीश ने लंबे समय तक जेल में बंद विचाराधीन कैदियों के हालात को लेकर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि देश में हजारों लोग ऐसे हैं जो सालों से जेल में बंद हैं, जबकि उनके मामले का अब तक कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है. उन्होंने कहा, “हमने ऐसे कई उदाहरण देखे हैं, जहां वर्षों बाद किसी को निर्दोष पाया गया, लेकिन तब तक उनकी ज़िंदगी का बहुमूल्य समय खत्म हो चुका था.” सीजेआई ने इसे न्याय व्यवस्था की कमजोरी बताते हुए कहा कि यह समस्या न केवल कानूनी है, बल्कि मानवीय भी है, और इसे जल्द दूर किया जाना चाहिए.

भविष्य को लेकर जताई उम्मीद

हालांकि सीजेआई गवई ने न्यायिक प्रणाली में खामियों को लेकर स्पष्ट आलोचना की, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि वह भारत के युवाओं और नई पीढ़ी के कानूनविदों से आशान्वित हैं. उन्होंने कहा, “भविष्य की चुनौतियां बड़ी हैं, लेकिन भारत की युवा प्रतिभा अगर ईमानदारी और संकल्प के साथ काम करे, तो इन समस्याओं का समाधान संभव है.” उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले वर्षों में भारत की न्यायिक प्रणाली में सकारात्मक बदलाव आएंगे, बशर्ते कि हम समय रहते इन चुनौतियों को पहचानें और उनका समाधान करें.