जम्मू की एक विशेष TADA अदालत ने 36 साल पुराने रुबैया सईद अपहरण मामले में सोमवार को गिरफ्तार किए गए शफात अहमद शांगलू को मंगलवार को रिहा कर दिया.
केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने उसकी कस्टडी मांगते हुए दलील दी थी कि वह JKLF से जुड़ा रहा है और अपहरण साजिश का हिस्सा था, लेकिन अदालत ने हिरासत देने से इनकार कर दिया. शांगलू ने रिहाई के बाद खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि अदालत ने उसके साथ न्याय किया है.
शफात अहमद शांगलू को सोमवार को CBI और जम्मू-कश्मीर पुलिस की संयुक्त टीम ने श्रीनगर के निशात इलाके में स्थित उसके घर से गिरफ्तार किया था. लेकिन अगले ही दिन अदालत ने CBI की कस्टडी याचिका खारिज करते हुए उसे रिहा कर दिया. विस्तृत आदेश अभी सार्वजनिक नहीं हुआ है, लेकिन अदालत का निर्णय CBI के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है.
रिहाई के बाद शांगलू ने कहा कि उसका अपहरण मामले से कोई संबंध नहीं था. उसके वकील सुहैल डार ने दावा किया कि अदालत का फैसला साबित करता है कि उसके खिलाफ आगे कोई जांच की आवश्यकता नहीं है. शांगलू पर 10 लाख रुपये का इनाम घोषित था और उसे JKLF नेता यासीन मलिक का करीबी माना जाता था.
CBI के अनुसार शांगलू JKLF का सक्रिय सदस्य था और उसने संगठन की वित्तीय गतिविधियों को संभाला था. एजेंसी का कहना था कि वह 1989 में रची गई साजिश का हिस्सा था, जिसमें तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद का अपहरण किया गया था. हालांकि अदालत ने CBI की दलीलों पर अभी कोई टिप्पणी नहीं की है.
8 दिसंबर 1989 को रुबैया को श्रीनगर के लाल डेड अस्पताल के पास से अगवा किया गया था. पांच दिन बाद वी.पी. सिंह सरकार ने पांच आतंकियों की रिहाई के बदले उन्हें सुरक्षित छुड़ाया. बाद में CBI ने जांच संभाली और रुबैया ने यासीन मलिक और चार अन्य को पहचान लिया. मलिक वर्तमान में तिहाड़ जेल में है और आतंकी फंडिंग केस में सजा काट रहा है.
विशेष TADA अदालत पहले ही यासीन मलिक और नौ अन्य के खिलाफ आरोप तय कर चुकी है. वहीं शांगलू को वर्षों से फरार माना जाता था. उसकी गिरफ्तारी को CBI महत्वपूर्ण मान रही थी, लेकिन अदालत के ताजा फैसले ने मामले की दिशा बदल दी है. फैसला सामने आने के बाद यह मामला एक बार फिर राजनीतिक और कानूनी बहस का विषय बन गया है.