झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों सफा हो गए हैं. हेमंत सोरेन सरकार की वापसी हो रही है. झारखंड मुक्ति मोर्चा नेतृत्व गठबंधन 81 विधानसभा सीटों में 57 सीटों पर आगे चल रहा है. बीजेपी को करारी हार मिली है. हार के बाद पार्टी के अंदर से आवाज उठने लगे हैं. बटेंगे तो कटेंगे नारा झारखंड विधानसभा चुनाव में काफी सुनने को मिला. बीजेपी के सभी नेताओं ने इस नारे का इस्तेमाल अपनी सभाओं में किया. हालांकि इस नारे से पार्टी को फायदा की जगह नुकसान हुआ है.
राज्य के पुराने चेहरे की स्वीकार्यता अब उतनी नहीं रही. कथित घुसपैठ जैसे मुद्दों की आदिवासियों के बीच पकड़ बनाने में विफलता ने शनिवार को झारखंड में बीजेपी की सत्ता पर कब्जा करने की कोशिश को कमजोर कर दिया. JMM ने 34 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल की या बढ़त बनाई, कांग्रेस 16 में आगे थी, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) पांच में और CPI(ML)(L) ने दो सीटों में से पांच पर जीत हासिल की.
बीजेपी नेताओं के अनुसार हेमंत सोरेन सरकार की मंईयां सम्मान योजना, जिसके तहत वंचित महिलाओं को 1,000 रुपये दिए जाते हैं सत्तारूढ़ गठबंधन के पक्ष में गई और महिला मतदाताओं की महत्वपूर्ण भागीदारी ने इस बात का संकेत दिया. पहले चरण में जिसमें 43 सीटों पर मतदान हुआ, 69% महिलाओं ने मतदान किया.
झारखंड भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी की हार की विस्तृत समीक्षा की जाएगी, लेकिन प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि उसके आदिवासी चेहरे समुदाय के वोट पाने में विफल रहे. नेता ने कहा कि पार्टी अभी भी बाबू लाल मरांडी और अर्जुन मुंडा जैसे पुराने चेहरों को आगे बढ़ा रही है, जो जनता के बीच स्वीकार्यता खो चुके हैं. ऐसा लगता है कि जनता नेतृत्व में बदलाव चाहती है. उन्होंने सवाल उठाया कि राज्य इकाई के अध्यक्ष मरांडी ने आदिवासी निर्वाचन क्षेत्र के बजाय सामान्य सीट धनवार से चुनाव क्यों लड़ा. अगर वह आदिवासियों के बीच इतने लोकप्रिय थे तो उन्होंने सामान्य श्रेणी की सीट से चुनाव क्यों लड़ा? वह आगे भी चल रहे हैं. क्या यह बेहतर होता कि वह आदिवासी मतदाताओं के बीच संदेश देने के लिए एसटी-आरक्षित सीट से चुनाव लड़ते?
मरांडी राज्य के पहले सीएम हैं और इस साल की शुरुआत में खूंटी से चुनाव हारने वाले मुंडा भी पूर्व सीएम हैं. बीजेपी ने मुंडा की पत्नी मीरा को पोटका (एसटी-आरक्षित) से मैदान में उतारा जहां उनका जेएमएम के संजीब सरदार से करीबी मुकाबला है. 21 में से 12 राउंड की गिनती के बाद वह 1,149 वोटों से पीछे चल रही थीं. अपने आदिवासी नेतृत्व को मजबूत करने के लिए बीजेपी ने जेएमएम से पूर्व सीएम चंपई सोरेन और हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन को भी शामिल किया.
एक अन्य भाजपा नेता ने कहा कि आदिवासियों और गैर-आदिवासियों को “हिंदू” के रूप में एकजुट करने के लिए बटेंगे तो कटेंगे, एक हैं तो सुरक्षित हैं, घुसपैठिए”, लव जिहाद और भूमि जिहाद जैसे नारों के साथ अभियान आदिवासी मतदाताओं को उत्साहित करने में विफल रहा. आदिवासी क्षेत्रों में कथित घुसपैठ और आदिवासी आबादी में कमी के बारे में भाजपा की कहानी असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा द्वारा गढ़ी गई थी जो पार्टी के झारखंड चुनाव सह-प्रभारी थे.