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हरियाणा में बीजेपी के सामने कड़ी चुनौती; खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी, गैर-जाट वोटों को साधने की योजना

हरियाणा के आगामी चुनाव महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि कांग्रेस दस साल बाद बीजेपी से सत्ता वापस लेने का लक्ष्य लेकर चल रही है. हाल ही में लोकसभा में मिली सफलताओं से उत्साहित कांग्रेस ने हुड्डा और शैलजा के नेतृत्व में पूरे जोर-शोर से अभियान शुरू कर दिया है. बीजेपी ने सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए खट्टर को हटाकर सैनी को उतारा है, लेकिन उसे उम्मीद है कि विपक्ष का बिखरा हुआ वोट नियंत्रण बनाए रखने में मदद करेगा. अमित शाह ने पहले ही भाजपा का अभियान शुरू कर दिया है.

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Edited By: India Daily Live
Haryana Assembly Elections 2024
Courtesy: Social Media

हरियाणा में होने वाले चुनाव पर सबकी निगाहें रहेंगी, जहां कांग्रेस एक दशक से सत्ता से बाहर चल रही बीजेपी को सत्ता से बाहर करने की कोशिश करेगी. वहीं बीजेपी तीसरी बार राज्य की सत्ता पर काबिज होना चाहेगी. हरियाणा बीजेपी का गढ़ रहा है. बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले नौकरियों, कीमतों और कानून-व्यवस्था के इर्द-गिर्द मजबूत सत्ता विरोधी लहर के संकेत देखे और मुख्यमंत्री एमएल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया. 

हालांकि कांग्रेस ने लोकसभा के चुनाव में राज्य की 10 सीटों में से 5 पर जीत हासिल की. 2014 में एक और 2019 में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था. लड़ाई की तात्कालिक पृष्ठभूमि ही वह कारण है, जिसके चलते कांग्रेस अपनी संभावनाओं को लेकर उत्साहित है. मोदी लहर के बाद केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बमुश्किल कुछ महीनों बाद एक दशक लंबी सत्ता विरोधी लहर के कारण कांग्रेस के विधानसभा हारने के बाद, राज्य केंद्रीय परिदृश्य से अलग हो गया है. पुलवामा के बाद हुए 2019 के लोकसभा चुनावों में राज्य ने बमुश्किल बीजेपी के लिए भारी मतदान किया था. हालांकि विधानसभा में बीजेपी को झटका लगा. बीजेपी 40 सीटों पर ही समीट गई. सरकार बनाने के लिए जेजेपी के साथ गठबंधन करना पड़ा.

अंदरूनी कलह को मिटा पाएगी कांग्रेस?  

इस बार, कांग्रेस लोकसभा की आधी सीटें जीतकर चुनाव में उतरी. 2024 के बाद मुख्य प्रतिद्वंद्वी अपने फायदे के लिए कारकों को समायोजित करने की कोशिश कर रहे हैं. भूपेंद्र हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस पूरे राज्य में लगातार अभियान चला रही है, जिसे दीपेंद्र हुड्डा की राज्यव्यापी यात्रा और वरिष्ठ सांसद और दलित चेहरा कुमारी शैलजा द्वारा शहरी सीटों पर केंद्रित एक अलग यात्रा ने और मजबूत किया है. राज्य में कांग्रेस एक विभाजित घर है, लेकिन अंदरूनी सूत्रों का मानना ​​है कि यह पार्टी के लिए मतदाताओं को एकजुट करने के रास्ते में नहीं आएगा.

 गैर-जाट वोटों पर बीजेपी की नजर

दूसरी ओर बीजेपी 2014 में हरियाणा की राजनीति में 35 कौम का चुनाव' के नाम से आए नए बदलाव पर भरोसा कर रही है जो प्रमुख जाट समुदाय के खिलाफ ध्रुवीकरण की रणनीति का संकेत है. इसने 2014 के विधानसभा चुनावों और फिर 2019 में अच्छा प्रदर्शन किया और इसके निशान यादव और पंजाबी समुदाय पर इसके निरंतर प्रभाव और शहरी केंद्रों में इसकी ताकत में पाए जा सकते हैं. खट्टर की जगह ओबीसी नायब सैनी को लाने के पीछे का विचार भी इसी योजना के हिस्से के रूप में तैयार किया गया है.

अग्निवीर कितना बड़ा मुद्दा? 

हालांकि, कांग्रेस और हुड्डा ने दावा किया है कि बीजेपी की चाल बेकार साबित होगी और राज्य नौकरियों, कीमतों, कानून और व्यवस्था और शासन पर भाजपा की विफलता के खिलाफ एकजुट है. पार्टी का आत्मविश्वास AAP या किसी अन्य पार्टी के साथ गठबंधन करने से इनकार करने से स्पष्ट है, जबकि यह सब्सिडी वाले LPG जैसे घरेलू खर्चों में कटौती करने के लोकलुभावन वादे कर रही है. अग्निवीर कांग्रेस की नाराजगी का एक और स्रोत है. आखिरकार, बीजेपी बहुकोणीय मुकाबले और जेजेपी, आईएनएलडी और आप की मौजूदगी पर निर्भर है, जो सत्ता विरोधी वोटों को विभाजित कर सकती है. लेकिन हुड्डा ने कहा कि लोकसभा चुनावों ने साबित कर दिया है कि हरियाणा विधानसभा में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होगा और तीसरे खिलाड़ी के लिए कोई जगह नहीं है. 2019 के विपरीत जब दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व में आईएनएलडी से अलग हुए दल ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया था.

बीजेपी बूथ स्तर तक अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने की तैयारी कर रही है और 4 जून को लोकसभा के नतीजों के तुरंत बाद ही तैयारी शुरू कर दी थी. गृह मंत्री अमित शाह दो बार राज्य का दौरा कर चुके हैं और पार्टी अभियान की शुरुआत भी कर चुके हैं.