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दरवाजे बंद हो गए हैं... फिर भी भाजपा ने क्यों कराई नीतीश की वापसी, यहां जानिए बिहार संग्राम की पूरी Inside Story

यहां बड़ा सवाल ये है कि राजनीतिक गलियारों में बार-बार कूदने के बाद भाजपा उन्हें एनडीए में वापस लेने के लिए आखिर तैयार क्यों हो गई? मीडिया रिपोर्ट्स में इसको लेकर कुछ कारण सामने आए हैं. 

Naresh Chaudhary
Edited By: Naresh Chaudhary
Bihar Political Crises, BJP, NDA, Nitish Kumar, India Alliance

हाइलाइट्स

  • पंजाब, हरियाणा और पश्चिम बंगाल के बाद बिहार में I.N.D.I.A गठबंधन को झटका
  • बिहार में भाजपा ने खेला 'सोच और धारणा' का खेल, किसी भी हाल में BJP का ही फायदा

Bihar Political Crises: बिहार के सियासी घटनाक्रम ने एक ओर सभी को चौंकाया तो कई बड़े नाम इसे देखकर सन्न भी हैं. इनमें सबसे पहले नाम आता है लालू परिवार का. उधर नीतीश कुमार के भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए से हाथ मिलाने के बाद पुरानी बातें भी उखड़ कर सामने आ रही हैं. करीब एक साल पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक रैली के दौरान कहा था कि जेडीयू नेता नीतीश कुमार के लिए भाजपा के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए हैं. और अब लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पहले सभी राजनीतिक दलों को हिलाकर रख देने वाले घटनाक्रम के बीच आठ बार के सीएम नीतीश कुमार ने फिर से भाजपा से दामन थाम लिया है. एक दशक में यह उनका पांचवां फ्लिप-फ्लॉप है. 

सूत्रों के मुताबिक बिहार में भाजपा विधायकों ने नीतीश कुमार को समर्थन दे दिया है. पार्टी विधायकों ने आज पटना में एक बैठक भी की, इससे कुछ देर पहले नीतीश कुमार ने राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर से मुलाकात की और अपना इस्तीफा सौंप दिया. हालांकि यहां बड़ा सवाल ये है कि राजनीतिक गलियारों में बार-बार कूदने के बाद भाजपा उन्हें एनडीए में वापस लेने के लिए आखिर तैयार क्यों हो गई? मीडिया रिपोर्ट्स में इसको लेकर कुछ कारण सामने आए हैं. 

पंजाब और पश्चिम बंगाल के बाद बिहार में I.N.D.I.A गठबंधन को झटका

नीतीश कुमार विपक्ष के I.N.D.I.A गठबंधन के प्रमुख चेहरों में से एक रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा से मुकाबला करने के लिए संयुक्त मोर्चा बनाने में सबसे आगे थे. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि यह नीतीश कुमार ही थे, जिन्होंने I.N.D.I.A गठबंधन की बैठकें बुलाई थीं और विपक्षी गुट उनसे अंत तक भाजपा से लड़ने की उम्मीद कर रहा था. लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पहले इस स्तर पर उलटफेर से I.N.D.I.A गठबंधन को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है. इस घटनाक्रम से भाजपा के उस कथन को भी बल मिला है, जिसमें कहा जाता था कि विपक्षी I.N.D.I.A गठबंधन एक अस्थिर गुट है. 

भाजपा के लिए फ्लिप-फ्लॉप का मतलब बिहार में एक बड़ा फायदा भी है, क्योंकि राज्य में 40 लोकसभा सीटें हैं और अब तक इसे I.N.D.I.A  गठबंधन के प्रमुख गढ़ के रूप में देखा जा रहा था. पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस, पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच सीट शेयरिंग को लेकर पहले से ही तनावपूर्ण स्थिति है. अब बिहार में राजद-जदयू गठबंधन का अंत होने I.N.D.I.A गठबंधन के लिए ज्यादा परेशानी की बात होगी. 

क्या कहता है बिहार का समीकरण

पिछले एक दशक में नीतीश कुमार लगातार असफलताओं के बावजूद मुख्यमंत्री पद पर बने रहने में सफल रहे हैं. उनकी लोकप्रियता और उनकी पार्टी के चुनावी प्रदर्शन में भी लगातार गिरावट देखी गई है. नीतीश कुमार के लिए बिहार में कई उपनामों का भी इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि सुशासन बाबू, विकास पुरुष आदि. अब इस घटनाक्रम के बाद उनको 'पलटू कुमार' ने नाम से विपक्षी पुकार रहे हैं. 

साल 2010 के बिहार चुनाव में 115 सीटों से लेकर 2015 में 71 और 2020 में सिर्फ 43 सीटों तक सिमट जाना बिहार में जेडीयू की घटती ताकत को दिखाता है. इसका मतलब साफ है कि नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर होने के बावजूद उनकी पार्टी विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी है. चाहे राजद हो या भाजपा नीतीश कुमार की स्वायत्तता में गिरावट आई है, क्योंकि उनके सहयोगी के पास सीटों की संख्या ज्यादा है. भाजपा जानती है कि भले ही नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद बरकरार रखने दिया जाए, लेकिन बिहार सरकार के फैसलों में उसका जदयू से ज्यादा नियंत्रण है. इस तरह यह कदम भाजपा के लिए फायदे का सौदा है. 

बिहार में भाजपा ने खेला 'सोच और धारणा' का खेल

पिछले एक दशक में नीतीश कुमार की असफलताओं ने उनकी सार्वजनिक छवि पर प्रतिकूल असर डाला है. भाजपा जानती है कि धारणा के खेल में उन्हें बहुत कम नुकसान होगा, क्योंकि मध्य प्रदेश या महाराष्ट्र के विपरीत, यह सत्ताधारी पार्टी के विधायकों का एक वर्ग नहीं है जो पाला बदल रहा है. उन राज्यों में भाजपा पर सरकारों को गिराने के लिए विद्रोह की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था. यहां नीतीश कुमार के बार-बार सहयोगी बदलने से भाजपा को खलनायक के रूप में नहीं देखा जाएगा.

जैसा अनुमान था कि भाजपा नेता यह समझाने के लिए अपने "जंगल राज" बयान पर वापस चले गए हैं कि वे नीतीश कुमार के साथ फिर से जुड़ने के लिए तैयार क्यों हैं. जंगल राज एक शब्द है, जिसका इस्तेमाल भाजपा की ओर से लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले राजद के भ्रष्टाचार और अपराध-युक्त कार्यकाल को संदर्भित करने के लिए किया जाता है.

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अजय आलोक ने न्यूज एजेंसी एएनआई को बताया कि हम बिहार में सबसे बड़ी पार्टी हैं. हम सतर्क हैं और घटनाक्रम पर करीब से नजर रख रहे हैं. हम बिहार में बदलती राजनीतिक स्थिति से वाकिफ हैं. जब अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन की बात आएगी तो हम एक कदम भी पीछे नहीं हटेंगे. हम बिहार को ऐसे ही जंगल राज' के हाथ में नहीं छोड़ सकते.

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