बांग्लादेश सुलग रहा है. वहां लोकतंत्र खत्म हो चुका है और अब शासन सेना के हाथ में है. अंतरिम सरकार का गठन हो रहा है लेकिन वहां की लोकतांत्रिक सरकार अब अस्तित्व में नहीं है. राष्ट्रपति संसद भंग कर चुके हैं. शेख हसीना को 45 मिनट के अंदर आनन-फानन में देश छोड़कर भागना पड़ा, नहीं तो उनके साथ प्रदर्शनकारी कुछ भी कर सकते थे. पहले उन्होंने भारत से शरण मांगा, अब विदेश में वे संभावनाएं तलाश रही हैं.
दिल्ली के पास उन्हें बेहद सुरक्षित जगह रखा गया है. शेख हसीना, अभी कुछ दिन दिल्ली में ही रहेंगी. अभी यह अनिश्चितता बनी हुई है कि शेख हसीना, भारत में रहेंगी, या किसी अन्य देश में शरण लेंगी.
शेख हसीना के 15 साल का कार्यकाल अब अतीत है. जगह-जगह दंगे भड़के हैं, हिंदू मंदिर तोड़े जा रहे हैं, हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है. हिंडन एयबेस पर उनकी लैडिंग सोमवार शाम को हुई थी, तब से लेकर अब तक, बांग्लादेश के हालात बेहद बदल गए हैं. आरक्षण को लेकर शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन, कब सत्ता परिवर्तन की लड़ाई बन गया, किसी को पता ही नहीं चला.
शेख हसीना की बहन शेख रिहाना, यूनाइटेड किंगडम की नागरिक हैं. ऐसी खबरें सामने आ रही हैं कि शेख हसीना, लंदन में ही शरण ले सकती हैं. ब्रिटिश मीडिया में अभी ऐसी चर्चा नहीं हो रही है. ब्रिटिश सरकार की पॉलिसी यह इशारा करती है कि शेख हसीना को राजनीतिक शरण नहीं मिल सकती है. ब्रिटेन के प्रवासी कानूनों में ऐसे प्रावधान नहीं हैं, जिनमें अस्थाई रिफ्यूजी को शरण दिया जाए.
यूके सरकार का कहना है जिन्हें अंतरराष्ट्रीय संरक्षण की जरूरत है, उन्हें पहले वहां शरण मांगनी चाहिए, जहां वे पहुंचे हैं. यही बचने का सही तरीका है. शेख हसीना के मामले में भी यही पॉलिसी मानी जाएगी. वैसे शेख हसीना के परिवार का भारत से शरण लेने का इतिहास रहा है. वे भारत में सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं लेकिन वे अपने लिए यूरोप की राह देख रही हैं.
ऐसा पहली बार नहीं है, जब शेख हसीना ने भारत में शरण ली हो. अपने बच्चे, पति और बहन के साथ साल 1975 में भी शेख हसीना भारत आ चुकी हैं. परिवार में भीषण नरसंहार देखने के बाद शेख हसीना को वहां से भागना पड़ा था. उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी गई थी. वे दिल्ली के पंडारा रोड में रहती थीं, वे 6 साल भारत में रहीं. साल 1975 से लेकर 1981 तक, उन्होंने भारत में रहकर अपनी जिंदगी बिताई.
शेख हसीना अब क्यों भारत रहना नहीं चाहती हैं, इसकी भी वजह अलग है. जब शेख हसीना ने साल 1975 में भारत में शरण ली थी, तब ढाका में उनके परिवार का सम्मान बहुत था. लोग उन्हें पसंद करते थे, पिता की हत्या के बाद सहानुभूति भी थी. लोगों को लग रहा था कि इन्हीं के परिवार ने देश को आजादी दिलाई है इसलिए वे शेख हसीना के प्रति बेहद समर्पित थे. अब हालात बदल गए हैं. शेख हसीना के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं. उन्हे लोग तानाशाह कह रहे हैं, जिसे लोगों की आवाज को दबाने आता है. उनके खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. उन्होंने सत्ता में रहने के दौरान विरोधियों का जमकर दमन किया था.
बांग्लादेश ने सबसे पहले भारत को प्राथमिकता इसलिए दी क्योंकि उन्हें पता है कि भारत का रुख उनके प्रति हमेशा उदार रहा है. शेख हसीना, अपनी सेक्युलर सरकार के लिए जानी जाती हैं, वे हिंदुओं की सुरक्षा का मुद्दा प्रमुखता से उठाती रही हैं, इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ भी वे फैसला भारत के हक में करती थीं. भारत ने बांग्लादेश को आजादी दिलाई है, ऐसे में उनका स्वाभाविक प्रेम भारत की ओर था. यह जरा भी चौंकाने वाला नहीं है.
भारत भी शेख हसीना को राजनीतिक संरक्षण और शरण देने में डर रहा है. अगर ब्रिटिश सरकार, शरण देने से मना करती है तो भारत भी हिचक सकता है. शेख हसीना के वीजा को अमेरिका ने भी रद्द कर दिया है, भले ही उनका बेटा, वहीं रहता है. आइए जानते हैं भारत हिचक क्यों रहा है.
- बांग्लादेश में भारत विरोधी लहर है. ऐसा संकेत जा सकता है कि बांग्लादेश के संकट में भारत की दिलचस्पी है. यह भी संदेश जाएगा कि शेख हसीना को भारत ही बैकअप दे रहा था.
- अगर शेख हसीना भारत में रहती हैं, तब भी यह संदेश देना होगा कि भारत के संबंध वहां की जनता के साथ हैं, किसी नेता के साथ नहीं. नई सरकार से भारत को संबंध नए सिरे से तैयार करने होंगे.
- शेख हसीना का समर्थन करने से भारत की पूर्वी सीमा पर हंगामा भड़क सकता है. भारत और बांग्लादेश, दोनों 4,096 किलोमीटर की सीमा शेयर करते हैं. भारत ने सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षा बढ़ा दी है.
- बांग्लादेश के इस्लामिक संगठन, शेख हसीना को बाहर करने में सबसे मजबूती से खड़े रहे हैं. वे इसे बांग्लादेश की राजनीति में भारत की दखल मान लेंगे.
- जमात-ए-इस्लामी की छात्र शाखा, कोटा सिस्टम के विरोध में ही हिंसक प्रदर्शन कर रही है. इस्लामी छात्र शिबिर बांग्लादेश के अलग-अलग विश्वविद्यालों में बैठ गए हैं. ऐसे में भारत के साथ रिश्तों को ये खराब सकते हैं.
- जमात-ए-इस्लामी संगठन भारत से नफरत करता है. अगर भारत ने शेख हसीना को शरण दी तो यह नफरत और बढ़ सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब साल 2021 में बांग्लादेश गए थे, तब भी उनके खिलाफ इसी संस्था ने नारेबाजी की थी.
- हिफाजत-ए-इस्लाम जैसे संगठन भारत पर दबाव बना सकते हैं. वे हिंदुओं का उत्पीड़न शुरू कर सकते हैं. उन्हें शरण देते वक्त भारत को इन सब पहलुओं पर गौर करना होगा.
शेख हसीना, जहां भी जाना चाहती हैं, भारत उनकी मदद करने के लिए तैयार है. भारत का कहना है कि शेख हसीना की मदद हर हाल में की जाएगी. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लोकसभा और राज्यसभा में भी कहा है कि बेहद शॉर्ट नोटिस पर भारत ने उन्हें शरण दी है. उन्हें सुरक्षित जगह आश्रय दिया गया है. वे कहां जाएंगी, इसे लेकर कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है.