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शराब और नशे की लत एक मानसिक बीमारी, रिहाई से पहले किया जाए आरोपियों का इलाज: HC

बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि शराब और नशे की लत एक मानसिक बीमारी है, और ऐसे आरोपियों को जमानत देने से पहले उनका मनोवैज्ञानिक इलाज और पुनर्वास जरूरी है.

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Edited By: Kuldeep Sharma
Aurangabad bench of the Bombay High Court
Courtesy: SOCIAL MEDIA

Bombay High Court: बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने हाल ही में दिए एक आदेश में नशे और अपराध के बीच गहरे संबंध की ओर इशारा किया है. अदालत ने कहा कि शराब और ड्रग्स की लत मानसिक बीमारी की श्रेणी में आती है और ऐसे व्यक्तियों को कानूनन और मानवीय दृष्टि से इलाज की आवश्यकता है. कोर्ट ने साफ कहा कि यदि ऐसे लोग बिना उपचार के समाज में लौटते हैं, तो वे फिर से हिंसक या आपराधिक व्यवहार दोहरा सकते हैं

यह टिप्पणी उस वक्त आई जब अदालत प्रामोद धुले नामक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी. धुले पर अपनी पत्नी के उत्पीड़न और हत्या का आरोप है. वह पहले सीआरपीएफ में कार्यरत था, लेकिन शराब की लत और अनुशासनहीनता के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. अदालत ने कहा कि ऐसे व्यक्ति को जमानत देना समाज के लिए खतरा हो सकता है, क्योंकि उसकी मानसिक स्थिति सामान्य नहीं है.

अदालत का स्पष्ट संदेश

बेंच ने कहा कि शराब और ड्रग्स की लत से पीड़ित व्यक्तियों को पहले मानसिक उपचार और पुनर्वास केंद्र भेजा जाना चाहिए. अदालत ने नांदेड़ जेल प्रशासन को निर्देश दिया कि आरोपी का मनोवैज्ञानिक परीक्षण कराया जाए और यदि वह मानसिक रूप से बीमार पाया जाए, तो उसे तब तक पुनर्वास केंद्र में रखा जाए जब तक वह पूरी तरह स्वस्थ न हो जाए. कोर्ट ने कहा कि समाज की सुरक्षा के लिए यह आवश्यक कदम है.

मानसिक बीमारी के रूप में लत को मान्यता

हाईकोर्ट ने Mental Healthcare Act, 2017 का हवाला देते हुए कहा कि शराब या ड्रग्स की लत को कानूनी रूप से मानसिक बीमारी माना गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी इस बात की पुष्टि की है कि नशे की लत एक मानसिक रोग है. अदालत ने कहा कि जब ऐसे लोग नशे में अपराध करते हैं, तो वे 'अप्रतिरोध्य आवेग' (irresistible impulse) की स्थिति में होते हैं, जो उन्हें हिंसक बना देता है और निर्दोषों की जान तक ले सकता है.

समाज में डर और जागरूकता की जरूरत

कोर्ट ने कहा कि नशे के आदी लोग अक्सर गरीब, अशिक्षित और सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं. समाज उन्हें अपराधी की तरह देखता है, जबकि उन्हें इलाज और सहानुभूति की जरूरत होती है. अदालत ने महाराष्ट्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया कि वह नशे की लत और उसके पुनर्वास के प्रति जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करे. कोर्ट ने पुलिस और जेल अधिकारियों को भी निर्देश दिए कि ऐसे मामलों में मेडिकल जांच को सिर्फ औपचारिकता न माना जाए, बल्कि गंभीरता से मानसिक स्वास्थ्य मूल्यांकन किया जाए.