दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के टिकट पर किस्मत आजमा चुके प्रसिद्ध शिक्षक अवध ओझा ने राजनीति से पूरी तरह दूरी बनाने का फैसला कर लिया है. चुनावी अनुभव ने उन्हें एहसास कराया कि यह दुनिया उनके लिए नहीं बनी. ओझा का कहना है कि अब वे पहले से ज्यादा खुश हैं, क्योंकि पार्टी लाइन और दबावों से मुक्त होकर वे अपने विचार खुलकर रख सकते हैं.
अवध ओझा ने एक पॉडकास्ट में बताया कि चुनाव लड़ने के बाद उन्हें महसूस हुआ कि राजनीति उनके स्वभाव से मेल नहीं खाती. उनके अनुसार, जिम्मेदारियों का बोझ और सीमाएं उनके व्यक्तित्व के खिलाफ थीं. इसलिए उन्होंने फैसला किया कि अब वे राजनीति के किसी भी क्षेत्र में सक्रिय नहीं रहेंगे. इस निर्णय के बाद वे खुद को बेहद हल्का और संतुष्ट महसूस कर रहे हैं.
ओझा ने साफ कहा कि पार्टी लाइन के भीतर रहकर बोलने की आज़ादी सीमित हो जाती है. उन्हें कई बार यह महसूस हुआ कि अपनी सोच को खुलकर रखना संभव नहीं है. अब राजनीति छोड़ने के बाद वे बिना किसी बंधन के बात कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि अब कोई यह नहीं बताएगा कि क्या कहना है और क्या नहीं कहना, जिससे वे खुद को ज्यादा स्वतंत्र पाते हैं.
2025 के पटपड़गंज चुनाव में ओझा को 28,072 वोटों के अंतर से हार मिली थी. बीजेपी प्रत्याशी रविंदर सिंह नेगी ने 74,060 वोट हासिल किए, जबकि ओझा 45,988 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे. कांग्रेस के अनिल कुमार काफी पीछे रहे. इस हार ने ओझा को चुनावी राजनीति की कठोरता और वास्तविकता से परिचित कराया.
ओझा ने बताया कि बचपन से उनके मन में राजनीति को लेकर एक आकर्षण था. उन्होंने कहा कि चाहते थे कि कभी चुनाव लड़ें और जनता का प्रतिनिधित्व करें. हालांकि, मैदान में उतरकर उन्हें समझ आया कि राजनीति सिर्फ उत्साह नहीं, बल्कि भारी दबाव और समझौते भी मांगती है. यह अनुभव उनके लिए आंखें खोलने वाला साबित हुआ.
अवध ओझा कोचिंग की दुनिया में पहले से ही लोकप्रिय नाम रहे हैं. यूपी के गोंडा में जन्मे ओझा IAS बनने के सपने के साथ दिल्ली आए थे, लेकिन सफलता न मिलने पर उन्होंने पढ़ाना शुरू किया. उनका पढ़ाने का तरीका छात्रों के बीच बेहद पसंद किया गया और वे जल्द ही अपने क्षेत्र में स्थापित हो गए. सोशल मीडिया पर भी उनका प्रभाव काफी बड़ा है, जो अब भी बरकरार है.