Manipur Violence: मणिपुर सरकार ने बुधवार को इंफाल घाटी के सात जिलों के 19 पुलिस स्टेशनों के अधिकार क्षेत्र को छोड़कर पूरे राज्य में AFSPA को अगले छह महीने के लिए बढ़ा दिया. जिन इलाकों में AFSPA नहीं लगाया गया है, वो मैतई बहुल इलाके हैं. मणिपुर हिंसा में मारे गए 175 लोगों में से 80 प्रतिशत लोगों की मौत इन्हीं इलाकों में हुई है.
पिछले कुछ दिनों में हिंसा के मामले कमने के बाद एएफएसपीए को घाटी के जिलों से धीरे-धीरे हटा लिया गया है. जहां मैतेई समुदाय का वर्चस्व है. राज्य में म्यांमार से कंट्रोल कई विद्रोही समूह हैं, जो मणिपुर को भारत से अलग करने की वकालत करते हैं. राज्य में 3 मई को बहुसंख्यक मैतेई और जनजातीय कुकी समूदाय के लोगों के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद 175 लोग मारे गए हैं.
1981 से AFSPA मणिपुर में लागू है. AFSPA 1958 से तत्कालीन केंद्र शासित प्रदेश मणिपुर के नागा-बहुल क्षेत्रों में भी अस्तित्व में है. हालांकि 2004 में इम्फाल नगर पालिका क्षेत्र से अधिनियम के प्रावधानों को वापस ले लिया गया था. अप्रैल 2022 में छह जिलों के 15 पुलिस थाना क्षेत्रों से AFSPA हटा दिया गया था. अब तक मणिपुर के सात घाटी जिलों में 19 पुलिस स्टेशन सीमाओं को AFSPA के तहत 'अशांत क्षेत्र' अधिसूचना के दायरे से हटा दिया गया है.
मैतेई-कुकी के बीच मेन झगड़े की वजह जॉब और एजुकेशन में मिलने वाला रिजर्वेशन है. इसके साथ जमीन की भी लड़ाई है. मणिपुर का 90 फीसदी भूभाग पहाड़ी है जहां कुकी बसते हैं. वहां गैर जनजाति को जमीन खरीदने की इजाजत नहीं है. बाकी 10 फीसदी भूभाग पर मैतेई और दूसरे समूदाय के लोग रहते हैं. प्रीवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज एक्ट के तहत कोई भी यहां जमीन नहीं खरीद सकता. कुकी लोगों को चिंता है कि मैतेई को शेड्यूल ट्राइब का दर्जा न मिल जाए. अगर ऐसा होता है तो मैतेई पहाड़ी एरिया में जाकर जमीन खरीद सकते हैं.
केंद्र सरकार अफ्स्पा का इस्तेमाल अशांत क्षेत्रों में करती आई है. इसके तहत सशस्त्र बालों को विशेष शक्तियां दी गई हैं. इस कानून में आवश्यकता होने पर तलाशी लेने, गिरफ्तार करने और गोली चलाने की शक्तियां देता है. सुरक्षाबलों के पास बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने की भी ताकत होती है.