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हुस्न के बाजार के लिए बदनाम पाकिस्तान की 'हीरामंडी' में अब क्या होता है? क्या आज भी...

आज हम आपको बताते हैं कि आजादी से पहले वाला हीरामंडी अब कैसा दिखता है और अब यहां पर क्या होता है. लेकिन उससे पहले आप हीरामंडी की कहानी जान लीजिए.

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नई दिल्ली: भंसाली की हीरामंडी 1 मई को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो चुकी है. रिलीज के बाद से हर तरफ इसी के चर्चे हो रहे हैं. भंसाली ने इस सीरीज के आउटफिट, डॉयलॉग, सीन, सेट, म्यूजिक हर चीज पर बारिकी से काम किया है. अगर आप इस सीरीज को ध्यान से देखें तो आपको इसमें कई चीजें ऐसी है जो आपको पसंद आने वाली है. हीरामंडी की कहानी जिसके जरिए संजय लीला भंसाली ने लाहौर की उन तवायफों का सच उजागर करने की कोशिश की है जिनका काम सिर्फ हुस्न का धंधा नहीं बल्कि देश की आजादी के लिए भी था.

आज हम आपको बताते हैं कि आजादी से पहले वाला हीरामंडी अब कैसा दिखता है और अब यहां पर क्या होता है. लेकिन उससे पहले आप हीरामंडी की कहानी जान लीजिए. हीरामंडी की कहानी साल 1910-1940 के दौर की है जब भारत में ब्रिटिश राज के ख़िलाफ़ स्वतंत्रता आंदोलन के लिए सिर्फ क्रांतिकारियों ने नहीं बल्कि तवायफों ने भी आवाज उठाई थी. Heeramandi की कहानी लाहौर में बसने वाली एक तवायफ़ 'मलिका जान' और उनके कोठे के इर्द गिर्द घूमती है.

अब आपके मन में सवाल होगा कि उस दौर का शाही मोहल्ला जो कि हीरामंडी में बदल गया था लेकिन आजादी के बाद और देश के बंटवारें के बाद हीरामंडी के क्या हाल हैं. दरअसल, हीरामंडी जहां शाही नवाबों को अदब और तहजीब सीखने के लिए भेजा जाता था. धीरे-धीरे जब शाहीयों का यहां से राज गया तो सिखों ने राज किया और उन्होंनें इस अदब के मोहल्ले को हीरामंडी बना दिया जहां पर फूड ग्रेन्स(अनाज) का व्यापार शुरू हुआ. धीरे-धीरे यहां बड़े-बड़े व्यापारी आकर व्यापार करने लगे. इसके साथ ही यह पंजाब का सबसे बड़ा अनाज मंडी बना.

इसके बाद सिखों के बाद जब अंग्रेजों की हुकूमत आई तो उन्होंने हीरामंडी को जिस्मफिरोशी का बाजार बना दिया और देखते ही देखते ये इलाका पूरी तरह से 'रेड लाइट एरिया' बन गया. ये दुनिया की बड़ी 'रेड लाइट एरिया' में से एक है.