Bhool Chuk Maaf Review: राजकुमार राव और वामिका गब्बी की 'भूल चूक माफ' आखिरकार 23 मई, 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. यह फिल्म पहले 9 मई को रिलीज होने वाली थी, लेकिन भारत-पाकिस्तान तनाव के कारण इसे पोस्टपोन कर दिया गया था. करण शर्मा की डायरेक्टेड यह रोमांटिक कॉमेडी दर्शकों को हंसी और भावनाओं की एक अनोखी सैर कराती है. दिनेश विजान के प्रोडक्शन हाउस मैडॉक फिल्म्स और अमेजन एमजीएम स्टूडियोज द्वारा निर्मित, यह फिल्म वाराणसी की जीवंत पृष्ठभूमि में एक टाइम-लूप कहानी पेश करती है.
'भूल चूक माफ़' रंजन (राजकुमार राव) की कहानी है, जो एक छोटे शहर का रोमांटिक युवक है. वह अपनी मंगेतर तितली (वामिका गब्बी) से शादी करने के लिए सरकारी नौकरी हासिल करता है. लेकिन, भगवान शिव से किया गया एक वादा भूलने की वजह से रंजन एक टाइम-लूप में फंस जाता है, जहां वह बार-बार अपनी हल्दी समारोह को जीता है. यह अनोखा कॉन्सेप्ट हंसी, रोमांस और भावनाओं का तड़का लगाता है. कहानी सरल लेकिन रोचक है, जो दर्शकों को बांधे रखती है.
राजकुमार राव एक बार फिर अपनी शानदार कॉमिक टाइमिंग और भावनात्मक गहराई से दर्शकों का दिल जीत लेते हैं. रंजन के किरदार में उनकी मासूमियत और हास्य प्रभावशाली है. वामिका गब्बी तितली के रूप में खूबसूरत और स्वाभाविक लगी हैं, हालांकि उनके किरदार को और गहराई मिल सकती थी. संजय मिश्रा, सीमा पाहवा, ज़ाकिर हुसैन और रघुबीर यादव जैसे सहायक कलाकारों ने कहानी में जान डाल दी. संजय मिश्रा का हास्य और सीमा पाहवा की गर्मजोशी दर्शकों को खूब गुदगुदाती है.
करण शर्मा की डायरेक्टेड इस फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है. उन्होंने टाइम-लूप जैसे जटिल कॉन्सेप्ट को सरल और मनोरंजक तरीके से पेश किया. सुदीप चटर्जी की सिनेमैटोग्राफी वाराणसी की गलियों को जीवंत बनाती है. तनिष्क बागची का संगीत और इरशाद कामिल के गीत कहानी के मूड को बढ़ाते हैं, खासकर 'चोर बजारी फिर से' गाना जो दर्शकों को थिरकने पर मजबूर करता है. हालांकि, स्क्रिप्ट में कुछ जगहों पर और चुस्ती की जरूरत थी, क्योंकि हास्य कभी-कभी जबरदस्ती लगता है.
सोशल मीडिया पर फिल्म को लेकर उत्साह देखने को मिल रहा है. एक यूजर ने एक्स पर लिखा, 'भूल चूक माफ एक मजेदार और भावनात्मक रोलरकोस्टर है. राजकुमार राव हमेशा की तरह शानदार हैं, और वामिका ने भी कमाल किया. मैडॉक की एक और हिट!' समीक्षकों ने भी फिल्म की तारीफ की, खासकर कोइमोई ने ट्रेलर को 'हंसी का तूफान' बताया. हालांकि, कुछ समीक्षकों का मानना है कि हास्य को और निखारा जा सकता था.