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भोजपुरी के 'शेक्सपियर' और 'अनगढ़ हीरा' कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की कहानी

Bhikhari Thakur: भोजपुरी को एक अलग पहचान देने वाले लोगों में भिखारी ठाकुर को प्रमुख रूप से माना जाता है. 

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Suraj Tiwari
Bhikhari Thakur

हाइलाइट्स

  • बिदेशिया लोकनाटक से पलायन के दर्द को किया बयां
  • मन नहीं लगा तो छोड़ दिया पैसा कमाने का अच्छा काम
  • ओपन थिएटर का माना जाता है जनक
  • एक फ्रेम में रखना मुश्किल
  • लौंडा नाच के माध्यम से किया मंचन
  • बिना पढ़े लिख दी 29 किताबें

Bhikhari Thakur: पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के साथ दुनिया के कई देशों में भोजपुरी बोली और समझी जाती है. इसको जानने और समझने वाले लोगों की संख्या 20 करोड़ के करीब है. भोजपुरी ने अपने बोली, गीतों-गानों और नाटकों से लोगों के बीच में अलग पहचान बनाई. इसी भोजपुरी को एक अलग पहचान देने वाले लोगों में भिखारी ठाकुर को प्रमुख रूप से माना जाता है.

बिदेशिया लोकनाटक से पलायन के दर्द को किया बयां 

भारत में जब अंग्रेजों का शासन था. उस समय पूर्वांचल के लोगों का खूब पलायन अन्य देशों में किया जा रहा था. जिसको लेकर 'बटोहिया' गाना लोगों के बीच काफी प्रचलित हुआ था. लोग भारत की आजादी को लेकर दूर देशों में बैठ कर भी अपने देश का गुणगान किए जा रहे थे. वहीं भिखारी ठाकुर उस समय 'बिदेशिया' लोकगीत और नाटक के माध्यम से लोगों में जागरूकता लाने का काम कर रहे थे.

मन नहीं लगा तो छोड़ दिया पैसा कमाने का अच्छा काम

भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर को बिहार के छपरा (सारण) जिले के कुतुबपुर (दियारा) गांव में एक नाई (हजाम) परिवार में हुआ था. उन्होंने अपने शुरुआती दिनों में जीविकोपार्जन के लिए अपना गांव छोड़ खड़गपुर चले गए और वहां अपने पुश्तैनी नाई का काम करने लगे. जहां उन्होंने पैसा तो खूब कमाया लेकिन उनको अपने काम से संतुष्टि नहीं मिली. आखिरकार वो अपने गांव आकर एक नाटक करने वालों की मंडली बनाई और यहीं पर रामलीला करने लगे.

ओपन थिएटर का माना जाता है जनक

जब उन्होंने नाटक करना शुरू किया उस दौरान कोई मंच नहीं होता था तो भिखारी ठाकुर किसी पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर ढोलक, झाल और मजीरा के साथ लोगों का मनोरंजन करने लगे. धीरे-धीरे उन्होंने नाटकों में अपने आप को दिखाया. उन्होंने रामलीला के अलावा अन्य सामाजिक मुद्दे पर नाटक करते थे. इस दौरान उनकी मंडली भी होती थी. इसी वजह से उनको भारत में ओपन थिएटर का जनक भी माना जाता है.

एक फ्रेम में रखना मुश्किल

भिखारी ठाकुर बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे. वो भोजपुरी के कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता भी थे. कुल मिलाकर भिखारी ठाकुर को किसी एक फ्रेम में नहीं रखा जा सकता. इसी वजह से भिखारी ठाकुर को मशहूर अंग्रेजी कवि विलियम शैक्सपियर से तुलना करते हुए 'भोजपुरी का शैक्सपियर' कहा जाता है. वहीं महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का 'अनगढ़ हीरा' कहा था.

लौंडा नाच के माध्यम से किया मंचन

भारत में लौंडा नाच का प्रचलन आज के समय में काफी प्रचलित हो चुका है. इसकी शुरुआत करने वाले में भिखारी ठाकुर को भी माना जाता है. लौंडा नाच वो होता है जिसमें लड़के लड़की के कपड़े पहन कर नाटक करते हैं. वहीं आज के बॉलीवुड में काफी देखने को मिलता है. 

बिना पढ़े लिख दी 29 किताबें

भिखारी ठाकुर ने अपने समय में फैली कुरितियों के खिलाफ नाटक और गीतों के माध्यम से समाज को आइना दिखाने का भी काम किया. उनकी प्रतिभा इस बात से लगाई जा सकती है कि वो कभी स्कूल नहीं गए थे. फिर भी उन्होंने 29 किताबें लिखी. उन्होंने लोकगीतों पर आधारित ये किताबें कैथी लिपि में लिखी थी. जो आज के समय मरणासन्न स्थिति में पहुंच गई है. उनके प्रचलित लोकनाटक इस प्रकार हैं. 
. बिदेशिया
. भाई-बिरोध
. बेटी-बियोग या बेटि-बेचवा
. कलयुग प्रेम
. गबर घिचोर
. गंगा स्नान (अस्नान)
. बिधवा-बिलाप
. पुत्रबध
. ननद-भौजाई
. बहरा बहार,
. कलियुग-प्रेम,
. राधेश्याम-बहार,
. बिरहा-बहार,
. नकल भांड अ नेटुआ के