Political Files: जगजीवन राम, जिन्हें देश "बाबूजी" के नाम से सम्मानपूर्वक संबोधित करता था, भारत के एक ऐसे वरिष्ठ नेता थे, जिन्हें 1970 के दशक में प्रधानमंत्री बनने की प्रबल संभावना थी. उनकी राजनीतिक यात्रा लंबी और सम्मानजनक रही थी. 1936 से लगातार 50 साल तक सांसद रहने का रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज है. उन्होंने आजादी के बाद नेहरू मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री के तौर पर कार्य किया और बाद में संचार मंत्री भी रहे.
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान रक्षा मंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने अहम भूमिका निभाई. आपातकाल के विरोध में उन्होंने इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी से नाता तोड़ लिया. 1977 में जनता पार्टी की जीत के बाद उप-प्रधानमंत्री बने. जगजीवन राम को देश का अगला प्रधानमंत्री बनने का प्रबल दावेदार माना जा रहा था. उनके दलित नेता के रूप में जनाधार को देखते हुए ये उम्मीद काफी मजबूत थी.
1977 का साल उनके लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ. आपातकाल के विरोध के बाद हुए आम चुनावों में इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी हार गई और जनता पार्टी की गठबंधन सरकार बनी. इस सरकार में जगजीवन राम को उप-प्रधानमंत्री का पद दिया गया. उनकी देशव्यापी लोकप्रियता और दलित नेता के रूप में मजबूत छवि को देखते हुए उन्हें अगला प्रधानमंत्री बनने का प्रबल दावेदार माना जा रहा था.
लेकिन 1978 में एक अप्रत्याशित घटना ने उनके इस सपने को झकझोर कर रख दिया. उनके बेटे सुरेश राम से जुड़ा एक कथित सेक्स स्कैंडल सामने आया. दिल्ली से प्रकाशित होने वाली एक पत्रिका में उनके बेटे सुरेश राम की आपत्तिजनक तस्वीरें छापी गईं. ये तस्वीरें उस समय देश के लिए एक बड़ा झटका थीं, शायद पहला बड़ा राजनीतिक सेक्स स्कैंडल. इस घटना से देश में खलबली मच गई. विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को भुनाते हुए जगजीवन राम पर जमकर निशाना साधा.
जिस मैग्जीन में जगजीवन राम के बेट सुरेश राम की ये तस्वीरें छपी थी उसका नाम सूर्या इंडिया था और इसकी संपादक मेनका गांधी थी. मैग्जीन की शुरुआत अमरदीप कौर आनंद ने की थी जो कि इंदिरा गांधी की छोटी बहू मेनका गांधी की मां थी. माना जाता है कि तत्कालीन कांग्रेस नेत्री मेनका गांधी के कहने पर ही ये आपत्तिजनक तस्वीरें मैग्जीन में छापी गई थी जो कि आपातकाल के बाद कांग्रेस से बागी हुए जगजीवन राम को कमजोर करने के इरादे से पब्लिश की गई थी.
इतना ही नहीं ये तस्वीरें मेनका गांधी तक पहुंचाने में कांग्रेस के अखबार नेशनल हेराल्ड के प्रधान संपादक और सूर्या पत्रिका के कंसल्टिंग एडिटर खुशवंत सिंह को अहम रोल माना जाता है. हालांकि जब खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा लिखी तो उन्होंने साफ किया कि वो तस्वीरें छापने के खिलाफ थे क्योंकि वो सूचना कम और पोर्न ज्यादा लग रहा था.
भले ही बाद में सुरेश राम ने उस महिला से शादी कर ली, लेकिन इस पूरे प्रकरण ने जगजीवन राम की सत्यनिष्ठ और साफ छवि को गहरा धक्का पहुंचाया. विपक्ष ने इस मुद्दे को भुनाते हुए उन्हें निरंतर निशाना बनाया और ये प्रचार उनके प्रधानमंत्री बनने की राह में सबसे बड़ी बाधा बन गया.
जगजीवन राम के समर्थकों का मानना है कि उनके बेटे का यह विवाद एक सुनियोजित साजिश थी जिसका असली मकसद उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोकना था. इस बात के पुख्ता सबूत तो नहीं मिलते, लेकिन इतना तो तय है कि इस घटना ने उनके राजनीतिक करियर पर गहरा प्रभाव छोड़ा और देश के एक सम्मानित नेता का प्रधानमंत्री बनने का सपना अधूरा रह गया.
1979 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार गिर गई. अब प्रधानमंत्री पद के लिए फिर से रस्साकशी शुरू हुई. जगजीवन राम एक बार फिर से दावेदार थे, लेकिन इस बार भी किस्मत उनके साथ नहीं रही. इंदिरा गांधी ने चौधरी चरण सिंह को समर्थन दे दिया, जिससे वह प्रधानमंत्री बने. हालांकि, चौधरी चरण सिंह की सरकार भी ज्यादा समय ना चल सकी.
1980 में हुए आम चुनावों में जनता पार्टी ने आखिरी बार जगजीवन राम को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर दांव लगाया. लेकिन जनता के बीच वापसी करने आईं इंदिरा गांधी की लहर के आगे जनता पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा. ये चुनाव जगजीवन राम के प्रधानमंत्री बनने की आखिरी उम्मीद थी. इस हार के साथ ही उनका ये अधूरा सपना हमेशा के लिए अधूरा रह गया.