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चुनावी सर्वे में BJP की '400 पार' कैंपेन पर ग्रहण? यूपी, हरियाणा, राजस्थान की इन सीटों पर फंस सकता है पेंच

Lok Sabha Elections 2024: पीएम मोदी ने इस बार '400 पार' का नारा दिया है, लेकिन कुछ राज्यों की कुछ सीटों पर भाजपा को मिल रही कड़ी चुनौती के बाद इस कैंपेन पर ग्रहण लगता दिख रहा है. पूर्वी उत्तर प्रदेश की 4, हरियाणा की 5, राजस्थान की 6 सीटों पर पेंच फंसता दिख रहा है.

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India Daily Live

Lok Sabha Elections 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'अबकी बार 400 पार' का नारा दिया है, लेकिन उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान की कुछ सीटों पर पेंच फंसता दिख रहा है. चुनावी सर्वे में दावा किया गया है कि राजस्थान, हरियाणा में 2019 में मिली सफलता दोहराना मुश्किल दिख रहा है. 2019 में हरियाणा की सभी 10 सीटों और राजस्थान की 25 में से 24 पर भाजपा जबकि एक सीट पर सहयोगी आरएलपी ने जीत दर्ज की थी. उत्तर प्रदेश की जिन लोकसभा सीटों पर पेंच फंसता दिख रहा है, उनमें पूर्वांचल की 4 सीटें हैं. इसके अलावा, पश्चिमी यूपी में भी भाजपा को बीएसपी से कड़ी टक्कर मिलती दिख रही है.

2019 में सपा, बसपा और आरएलडी ने एक साथ मिलकर उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ा था. नतीजों में बसपा को 10 और सपा को 5 सीटें मिली थीं. इस बार दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं, जबकि आरएलडी भाजपा के साथ है. बसपा अकेले ताल ठोंक रही है, तो सपा ने कांग्रेस से हाथ मिलाया है. ऐसे में मामला थोड़ा पेंचीदा हो गया है. पूर्वी यूपी की आजमगढ़, घोसी, चंदौली और बस्ती में भाजपा को कड़ी टक्कर मिलती दिख रही है. 

आजमगढ़: आजमगढ़ को सपा का गढ़ माना जाता है. हालांकि, भाजपा ने उपचुनाव में सपा के इस गढ़ में घुसपैठ कर विजय हासिल की थी. दरअसल, 2019 के आम चुनाव के बाद सपा और बसपा अलग हो गई. उपचुनाव में सपा के प्रत्याशी के सामने बसपा ने भी कैंडिडेट उतार दिया. हुआ ये कि बसपा कैंडिडेट को अच्छे खासे वोट मिले, जिससे भाजपा कैंडिडेट की जीत हो गई. अब 2024 के चुनाव में भी बसपा ने यहां से प्रत्याशी उतारा है, लेकिन कहा जा रहा है कि इससे सपा को नहीं, बल्कि भाजपा को नुकसान हो सकता है. 

भाजपा ने एक बार फिर दिनेशलाल यादव को प्रत्याशी बनाया है, लेकिन बीएसपी ने यहां से भीम राजभर को उतार दिया है. आजमगढ़ में राजभर समुदाय के वोटर्स की संख्या अच्छी है. कहा जा रहा है कि मायावती की ओर से उतारे गए भीम राजभर को उनके समुदाय के वोट जाएंगे. हालांकि, इससे मायावती को कोई फायदा नहीं होने वाला है, क्योंकि इस सीट पर यादव और मुस्लिम वोटर्स की संख्या करीब 50 फीसदी है. ऐसे में अगर राजभर वोट बीएसपी की ओर जाता है, तो फिर भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती है. 

घोसी: बसपा ने यहां से बालकृष्ण चौहान को प्रत्याशी बनाया है, जबकि NDA ने सुभासपा कैंडिडेट अरविंद राजभर को उतारा है. इस संसदीय सीट पर चौहान वोटर्स की संख्या करीब 2 लाख है. 2019 के आम चुनाव के बाद इस सीट पर भी उपचुनाव हुए थे, जिसमें भाजपा ने सपा कैंडिडेट को तोड़कर पार्टी में शामिल कराया और चुनावी मैदान में उतार दिया. हालांकि भाजपा कैंडिडेट दारा सिंह चौहान को हार का सामना करना पड़ा था. अब NDA की ओर से अरविंद राजभर को उतारा गया है. NDA मानकर चल रही थी कि चौहान वोटर्स अरविंद राजभर का सपोर्ट करेंगे, लेकिन बीएसपी के बालकृष्ण चौहान के मैदान में उतरने से ऐसा होता दिख नहीं रहा है. 

चंदौली: 2019 में भाजपा के प्रत्याशी को मामूली अंतर से जीत मिली थी. इस बार बसपा ने सत्येंद्र मौर्य को उतारा है, जबकि भाजपा ने महेंद्रनाथ पांडेय पर ही दांव जताया है. बसपा के सत्येंद्र मौर्य के मैदान में उतरने के बाद महेंद्रनाथ पांडेय के लिए चुनौती कड़ी हो गई है. चंदौली सीट पर मौर्य वोटर्स का खासा प्रभाव माना जाता है. ऐसे में सपा ने वीरेंद्र सिंह को टिकट देकर महेंद्रनाथ पांडेय की चुनौती और बढ़ा दी है. माना जाता है कि राजपूत वोटर्स के बीच राजपूत कैंडिडेट को ही समर्थन मिलता है. वहीं, यादव वोटर्स भी यहां अच्छी तादात में हैं. ऐसे में अगर सपा कैंडिडेट को यादव, मुस्लिम के साथ राजपूत वोटर्स का सपोर्ट मिलता है, तो फिर भाजपा कैंडिडेट के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकतीं हैं. 

बस्ती: इस सीट पर ब्राह्मण वोटर्स की संख्या अच्छी खासी है. भाजपा ने यहां से हरीश द्विवेदी को एक बार फिर मैदान में उतारा है. सपा ने राम प्रसाद चौधरी को उतारा है, जिन्हें द्विवेदी ने 2019 में हराया था. लेकिन बसपा ने यहां दयाशंकर मिश्रा को टिकट देकर भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है. दयाशंकर, पहले भाजपा के ही नेता रहे हैं. अगर, ब्राह्मणों का वोट बंटता है, तो फिर भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती है. 

अब बात हरियाणा और राजस्थान के उन सीटों की, जहां फंस सकता है पेंच

एक सर्वे में सामने आया है कि भाजपा को हरियाणा की 5 और राजस्थान की 6 सीटों पर कड़ी टक्कर मिल सकती है. सर्वे के मुताबिक, हरियाणा की रोहतक, सोनीपत, सिरसा, हिसार औऱ करनाल पर भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है,जबकि राजस्थान की बाड़मेर, चूरू, नागौर, टोंक, दौसा और करौली पर पेंच फंस सकता है. 

हरियाणा की सिरसा सीट पर भाजपा ने पूर्व राहुल गांधी के सहयोगी रहे और दलित नेता अशोक तंवर को अपना उम्मीदवार बनाया है. गुरुवार को सिरसा में भाजपा प्रत्याशी तंवर की गाड़ी पर पथराव और लाठियों से हमला करने का वीडियो वायरल हुआ. जबकि तंवर ने कहा कि वह कार में नहीं थे.

हरियाणा में भाजपा को हरियाणा की करीब एक तिहाई जाट वोटर्स से विरोध का सामना करना पड़ रहा है. जाटों के गुस्से का अंदाजा उनके नेता बीरेंद्र सिंह और उनके बेटे बृजेंद्र सिंह के पार्टी से बाहर होने से लगाया जा सकता है. लेकिन इससे भी बड़ा कारण अग्निपथ योजना है. 

पिछले विधानसभा चुनाव में, जाटों का समर्थन न मिलने की स्थिति में भाजपा ने अन्य पिछड़ा वर्ग या ओबीसी वोटों पर दांव खेला, लेकिन कामयाब नहीं हो पाई. शायद, इसीलिए भाजपा ने नायब सिंह को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया है, जो खुद ओबीसी नेता हैं. 

'तुरुप के इक्के' नरेंद्र मोदी के सहारे भाजपा? 

कहा जा रहा है कि भाजपा इन सीटों पर अपने तुरुप के इक्के नरेंद्र मोदी के सहारे फतह हासिल करने की जुगत में है. शायद इसका इशारा भी पार्टी की ओर से मिल गया है, क्योंकि गुरुवार को पीएम मोदी ने राजस्थान में करौली का दौरा किया, जो एक आरक्षित सीट है. भाजपा पहली बार एक जाटव प्रत्याशी को मैदान में उतारा है. ये इसलिए ताकि कांग्रेस से जाटव वोटर्स को दूर किया जा सके. 

चूरू में पार्टी के मौजूदा सांसद राहुल कस्वां टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस में चले गये थे. वहीं, बाड़मेर में पार्टी ने जिस शख्स को मैदान में उतारा है, उससे राजपूत नाराज नजर आ रहे हैं. सीनियर नेता सतीश पूनिया के मुताबिक, चिंताएं हैं, लेकिन भाजपा इन सीटों पर जीत दर्ज करती दिख रही है. जैसे-जैसे चुनाव करीब आते हैं, ये सभी चिंताएं खत्म हो जाती हैं और लोग भाजपा को वोट देने के लिए एक साथ आएंगे. मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूं.

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