अब से 3 दिन बाद लोकसभा के पहले चरण के चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे. इसी बीच आज चर्चा एक ऐसे नेता की जिसने अपने दौर की कद्दावर नेता और देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से बगावत कर ली थी. यहां बात हो रही है जॉर्ज फर्नांडिस की जिनके नेतृत्व में देश की सबसे बड़ी रेल हड़ताल हुई थी.
20 दिनों तक चली इस हड़ताल ने कांग्रेस सरकार की नींव हिलाकर रख दी थी. यह हड़ताल आवश्यकता आधारित न्यूनतम वेतन, भोजन जैसी सामाजिक सुरक्षा, नौकरियों की औपचारिकता, हर रोज केवल 8 घंटे काम, बढ़ती महंगाई से छुटकारा और अधिकारों के लिए की गई थी.
इसी हड़ताल ने रखी थी इमरजेंसी की नींव
इस हड़ताल के बाद भारत की राजनीति की दिशा ही बदल गई थी. कहा जाता है कि इसी आंदोलन ने देश में इमरजेंसी की नींव रखी थी. हालांकि इस हड़ताल को बाद में कुचल दिया गया था. इस रेल हड़ताल को तोड़ने के लिए इंदिरा गांधी सरकार ने उस समय 2 हजार करोड़ रुपए खर्च किए थे.
सोच समाजवादी फिर भाजपा का क्यों थामा दामन
समाजवादी सोच रखने वाले जॉर्ज ने राजनीतिक जीवन के अंतिम चरण में भाजपा का दामन थाम लिया था. आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया? दरअसल जॉर्ज ताउम्र कांग्रेस का विरोध करते रहे. वह हमेशा कहते थे कि वे लोगों के साथ हैं और सत्ता व सरकार के विरोधी हैं लेकिन शायद अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम दिनों में वह तमाम उम्र किए अपने संघर्ष से तंग आ चुके थे. यह बात 90 के दशक की है. उस समय कांग्रेस कमजोर होनी शुरू हो गई थी और भाजपा मजबूती से उभरकर आ रही थी.
फर्नांडिस भी अब चाहते थे कि तमाम उम्र संघर करने के बाद अब उन्हें एक अच्छा मुकाम हासिल हो शायद इसी वजह से उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया था.
देश को डाइनामाइट से दहलाने की बनाई थी योजना
जॉर्ज फर्नांडिस का नाम बड़ोदा डायनामाइट केस में भी आया था. दरअसल इमरजेंसी के दौरान देश में ऐसा माहौल था कि कोई भी अखबार सरकार के खिलाफ कुछ भी प्रकाशित करने को राजी नहीं था. न कोई जुलूस निकाल सकता था न किसी सभा को संबोधित कर सकता था.
ऐसे में जॉर्ज के सामने जनता को सरकार के खिलाफ जगाने की चुनौती थी. वे पूरी दुनिया को बताना चाहते थे कि देश में इमरजेंसी का विरोध हो रहा है. इसके लिए उन्हें पूरे भारत को डायनामाइट से दहलाने की योजना बनाई थी लेकिन उनकी यह योजना सफल नहीं हो सकी थी.