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India Daily

शाम को 7 बजते ही सायरन की आवाज और टीवी-फोन बंद, वजह जानकर तारीफ किए बिना नहीं रह पाएंगे

कर्नाटक के हलगा गांव में बोर्ड्स से पहले पढ़ाई को लेकर नई पहल शुरू हुई है. हर शाम 7 बजे पंचायत दफ्तर से सायरन बजते ही गांव वाले 2 घंटे के लिए टीवी और मोबाइल बंद कर देते हैं.

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Edited By: Reepu Kumari
Village Education Initiative
Courtesy: GEMINI

हलगा गांव में इन दिनों पढ़ाई का माहौल किसी त्योहार से कम नहीं दिखता. बस फर्क इतना है कि यहां जश्न शोर का नहीं, सन्नाटे का है. शाम 7 बजे जैसे ही सायरन की आवाज गूंजती है, घरों में रखे टीवी की स्क्रीन काली हो जाती है और मोबाइल फोन भी साइलेंट और बंद मोड में चले जाते हैं. गांव वाले खुद डिजिटल दुनिया से ब्रेक ले लेते हैं, ताकि बच्चों की बोर्ड परीक्षा की तैयारी बिना रुकावट चल सके. इस कदम की चर्चा अब आसपास के इलाकों तक पहुंच चुकी है. .

यह अभियान पूरी तरह गांव की अपनी सोच और सहमति से शुरू किया गया है. मकसद साफ है-बच्चों को पढ़ाई के लिए बेहतर माहौल देना. 7 से 9 बजे के बीच गांव की गलियां शांत रहती हैं, घरों में किताबों की सरसराहट और परिवार की बातचीत सुनाई देती है. बच्चे SSLC जैसे अहम बोर्ड एग्जाम की तैयारी में ज्यादा फोकस कर पा रहे हैं. वहीं, घर के बड़े भी इसी दौरान परिवार को समय दे रहे हैं. यह छोटा गांव अब बड़ी मिसाल बनता नजर आ रहा है. .

पढ़ाई का नया टाइम-टेबल, गांव की सहमति से लागू

हलगा गांव में यह पहल पंचायत और गांव वालों की आपसी समझ से शुरू हुई. सायरन डिजिटल डिवाइस बंद करने का संकेत देता है. गांव के लोग इसे नियम नहीं, जिम्मेदारी मानकर मानते हैं. इससे बच्चों को पढ़ाई के लिए शांत और ध्यान वाला माहौल मिल रहा है. यह फैसला दिखाता है कि जब गांव एक साथ सोचता है, तो असर पूरे सिस्टम से बड़ा होता है. .

7 से 9 के बीच सिर्फ किताबें, सीरियल्स नहीं

गांव की महिलाएं भी इस मुहिम का हिस्सा हैं. टीवी सीरियल्स की जगह वे घर के काम निपटा रही हैं. बच्चे मोबाइल स्क्रॉल करने की बजाय पढ़ाई में जुट जाते हैं. 2 घंटे का यह डिजिटल ब्रेक बच्चों के फोकस को पहले से बेहतर बना रहा है. स्क्रीन टाइम की आदत कम होने से पढ़ाई की रफ्तार तेज हुई है. गांव की दिनचर्या में यह बदलाव अब साफ महसूस होता है. .

SSLC बोर्ड्स से पहले तनाव कम, ध्यान ज्यादा

यह अभियान खास तौर पर SSLC बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे बच्चों के लिए मददगार साबित हो रहा है. घर के बड़े भी बच्चों को इस समय परेशान नहीं करते. 2 घंटे की शांति से पढ़ाई का प्रेशर हल्का और तैयारी मजबूत हो रही है. छात्रों का कहना है कि बिना स्क्रीन टाइम के पढ़ना अब ज्यादा आसान लगता है. .

महाराष्ट्र मॉडल से मिली प्रेरणा, कर्नाटक में अनोखा असर

हलगा गांव ने यह आइडिया महाराष्ट्र में चल चुके नो-स्क्रीन अभियानों से लिया. उद्देश्य बच्चों को डिजिटल लत से दूर रखना है. लोगों का सपोर्ट बढ़ता गया और यह मुहिम मजबूत बन गई. अब यह गांव पड़ोसी गांवों के लिए भी प्रेरणा बन रहा है. सोशल मीडिया की लत घटाने का यह तरीका जमीन पर असरदार दिख रहा है. .

छोटी पहल, लेकिन बड़ा संदेश

गांव वालों का कहना है कि यह कदम सिर्फ 2 घंटे टीवी-फोन बंद करने का नहीं, बल्कि बच्चों के भविष्य को बेहतर दिशा देने का है. लोग मानते हैं कि स्क्रीन टाइम कम होगा, तो पढ़ाई और परिवार दोनों को फायदा मिलेगा. यह गांव साबित कर रहा है कि बदलाव बड़े शहरों से नहीं, छोटी सोच से भी शुरू हो सकता है. .