Manmohan Singh LPG Model: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था में ऐतिहासिक था, खासकर उनके द्वारा लागू किए गए LPG (Liberalization, Privatization, and Globalization) मॉडल के कारण. 1991 में जब मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे, तब देश गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था.
मनमोहन सिंह के समय विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 5.80 अरब डॉलर था, जो महज 15 दिनों के आयात के लिए ही था. इस स्थिति में, भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और यूरोपीय देशों से ऋण प्राप्त करने के लिए शर्तें स्वीकार कीं, जिसमें विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने की अनुमति देना था.
उदारीकरण (Liberalization)
इसमें सरकारी हस्तक्षेप को कम किया गया और बाजार आधारित व्यवस्था को बढ़ावा दिया गया. इससे व्यापार और उद्योग को मुक्त किया गया और सरकारी नियंत्रण को घटाया गया.
निजीकरण (Privatization)
इसमें सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी को घटाया गया और प्राइवेट कंपनियों को स्वामित्व में हिस्सेदारी दी गई. इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप कई सरकारी कंपनियों में निजी निवेश हुआ.
वैश्वीकरण (Globalization)
विदेशी कंपनियों को भारतीय बाजार में प्रवेश करने की अनुमति दी गई, जिससे न केवल भारतीय कंपनियों को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा, बल्कि भारत भी वैश्विक व्यापार से जुड़ा.
इस आर्थिक उदारीकरण का परिणाम यह हुआ कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने एक नई दिशा पकड़ी. बैंकों को अधिक स्वतंत्रता मिली, जिससे वे अपने कर्ज और ब्याज दरों को तय कर सकते थे. नए निजी बैंकों के लिए नियमों को सरल बनाया गया, जिससे बैंकिंग क्षेत्र में विस्तार हुआ.
लाइसेंस राज समाप्त
इसके अलावा 'लाइसेंस राज' को समाप्त करने के बाद भारत में कारोबार करने के नियम आसान हुए. सरकार ने अधिकांश उद्योगों से लाइसेंस अनिवार्यता हटा दी, जिससे व्यापारियों और उद्योगपतियों को नया अवसर मिला.
ऐसे भारत बना आर्थिक महाशक्ति
मनमोहन सिंह का LPG मॉडल ने भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट से उबारकर उसे वैश्विक मंच पर एक सशक्त खिलाड़ी बना दिया. यदि यह मॉडल लागू न किया जाता, तो भारत की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर रहती और उसे अंतर्राष्ट्रीय ऋण पर निर्भर रहना पड़ता. आज जो भारत एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरा है, उसका आधार मनमोहन सिंह का यह साहसिक कदम माना जाता है.