आज के भागदौड़ भरे जीवन में सुकून पाने के लिए लोग प्रकृति के बीच समय गुजारना चाहते है. वे आधुनिक तकनीक से मुक्त होकर शांति की खोज कर रहे हैं. बढ़ती आबादी और शोर के कारण भारत में शायद ही ऐसा कोई जगह बची हो जो आधुनिक न हुई हो लेकिन हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताएंगे जो तेजी से बढ़ती दुनिया के साथ न बढ़कर अपने आप को शोर-शराबे और भागमभाग से अलग किए हुआ है. इसीलिए इस जगह के बारे में कहा जाता है कि यहां कलयुग आज तक आया ही नहीं है.
हम बात कर रहें है यूपी के वृंदावन के टटिया गांव की जो आज के समय में सभी धार्मिक, पर्यटन स्थलों और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है. यह गांव अभी भी अपने आप को तकनीकी प्रगति से दूर रखकर पवित्रता, दिव्यता और आध्यात्मिकता का गढ़ बना हुआ है. यहां के लोगो की मान्यता है कि यहां ठाकुर जी विराजमान हैं. यहां आने वाले लोगो को शांति सुकून का अहसास होता है. आइए जानते हैं कि ऐसा क्या है इस टटिया गांव में.
कलयुग से हमारा मतलब मशीनों के युग से है. यहां के लोग अपने आप को मशीनों से दूर बनाए हुए हैं. यहां पर बिजली और मशीन जैसी चीजों का का उपयोग ही नहीं किया जाता है. यहां मोबाइल फोन से लेकर पंखे और बल्ब भी आपको नहीं दिखेंगे.
टटिया गांव स्वामी हरिदास संप्रदाय से जुड़ा है. यहां पर साधु-संत संसार की मोह-माया से खुद को विरक्त रखने आते हैं और खुद को बिहारी जी के ध्यान में लीन रखते हैं. वृदांवन में मौजूद यह गांव सभी धार्मिक और पर्यटन स्थलों का आकर्षण का केंद्र है. यह स्थान विशुद्ध प्राकृतिक और सौंदर्य से भरपूर है, जो तकनीकी प्रगति से पूरी तरह अछूता है. टटिया गांव वास्तव में कई सौ वर्षों से खुद को पीछे लेकर चल रहा है. यह पवित्रता, दिव्यता और आध्यात्मिकता का स्थान है. यह अब तक हिंदू धर्म के ईश्वर के सिद्धांत के सर्वव्यापी होने का सबसे अच्छा उदाहरण है.
जब सातवें आचार्य स्वामी ललित किशोर देव ने निधिवन को छोड़ने का फैसला किया, तब वे चाहते थे कि किसी शांत जगह पर बैठकर ध्यान लगा सके. गोकुलचंद और श्याम जी चौबे ने शिकारियों और तीमारदारों से जगह सुरक्षित करने का फैसला किया. उन्होंने बांस के डंडे का इस्तेमाल कर पूरे इलाके को घेर लिया. स्थानीय बोली में बांस के छड़ियों को टटिया कहा जाता है. इस तरह इस स्थान का नाम टटिया पड़ा.
इस जगह की खास बात यह है कि यहां आज भी किसी आधुनिक उपकरण का उपयोग नहीं किया गया है. टटिया गांव में आपको पंखा, बल्ब जैसी चीजें नहीं मिलेंगी. यहां बिहारी जी को पुराने जमाने वाली डोरी वाली पंखा से हवा दिया जाता है. ऐसा माना जाता है कि यहां का हर पेड़ देवताओं को समर्पित है. यहां पर नीम, पीपल और कदंब के पेड़ सबसे ज्यादा है. सभी पेड़ पौधे बेहद खास हैं.
माना जाता है कि यहां के पत्तों पर भी राधा नाम उभरा हुआ दिखता है. यहां की एक बात सुन कर आपको हैरत होगी कि भक्त लोग आरती नहीं करते. इसके बजाय टटिया गांव में लोग एक साथ बैठकर राधा कृष्ण को खुश करने के लिए भजन करते हैं. भजन के दौरान वे बिहारी जी और राधा के होने का अहसास महसूस करते हैं. यहां के साधु-संतो काी जीवनशैली देखकर आप हैरान हो जाएंगे. यहां के साधु-संत आज भी कुंए का पानी पीते हैं और यहां की सबसे खास बात यह है कि साधु संत किसी भी तरह का दान नहीं लेते और न ही आप को यहां कहीं दान-पेटी दिखेगी.