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Sawan Vrat Udyapan: सावन के आखिरी सोमवार को पूरे फल के लिए इस विधि से करें उद्यापन, नहीं तो अधूरा रह जाएगा व्रत

4 अगस्त को सावन सोमवार व्रत का उद्यापन करना जरूरी है, ताकि व्रत का पूर्ण फल प्राप्त हो सके. विशेष पूजा, सामग्री और विधि से शिव-पार्वती की पूजा कर व्रत का समापन करें. उद्यापन के बाद दान करना भी शुभ माना जाता है.

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Edited By: Km Jaya
Shiv Puja Vidhi
Courtesy: Social Media

सावन का पवित्र महीना इस वर्ष 11 जुलाई 2025 को शुरू हुआ था और 9 अगस्त को समाप्त होगा. इस दौरान शिवभक्तों ने विशेष श्रद्धा के साथ सोमवार व्रत रखे, ताकि भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त की जा सके. सावन के अंतिम सोमवार का व्रत 4 अगस्त को पड़ेगा, और इसी दिन उद्यापन करना अत्यंत आवश्यक है. धार्मिक मान्यता है कि व्रतों का पूरा फल तभी प्राप्त होता है जब उनका विधिवत उद्यापन किया जाए.

क्या होता है उद्यापन?

उद्यापन का अर्थ है व्रत के संकल्प की पूर्णता. व्रती जब अपने व्रतों की श्रृंखला समाप्त करता है, तब अंतिम व्रत पर विशेष पूजा करके उसका समापन करता है. यदि आपने कोई विशेष संकल्प जैसे सोलह सोमवार व्रत लिया है, तो 16वें सोमवार को उद्यापन करें लेकिन यदि आपने सावन के चारों सोमवारों का व्रत श्रद्धापूर्वक किया है और कोई विशेष संकल्प नहीं लिया, तो 4 अगस्त को उद्यापन करना जरूरी है.

उद्यापन में आवश्यक सामग्री

पूजा के लिए शिव-पार्वती की मूर्ति या तस्वीर, लाल कपड़ा, लकड़ी की चौकी, पंचामृत, फल, सफेद मिठाई, आम व केले के पत्ते, पान, फूल, माला, दीपक, धूप, चंदन, रोली, अक्षत, सुपारी, छोटी इलायची और लौंग की आवश्यकता होगी। ये सभी सामग्री पहले से घर में एकत्र कर लें.

उद्यापन की विधि

4 अगस्त की सुबह स्नान कर साफ वस्त्र पहनें. पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर वहां चौकी रखें और उस पर लाल कपड़ा बिछाकर शिव-पार्वती को विराजमान करें. फिर हाथ में जल लेकर संकल्प मंत्र का उच्चारण करें और जल को अपने ऊपर छिड़कें. दीपक और धूप जलाएं, शिवजी को चंदन और अक्षत अर्पित करें, माता पार्वती को रोली लगाएं. पंचामृत, फल, फूल और मिठाई चढ़ाकर भोग लगाएं.

इन मंत्रों का करें जाप

इसके बाद शिव चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र और पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें. अंत में आरती कर व्रत का समापन करें. उद्यापन के बाद सामर्थ्य अनुसार गरीबों को अन्न, वस्त्र या दक्षिणा का दान करें. यह संपूर्ण प्रक्रिया व्रत को पूर्णता देती है और भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद दिलाती है.