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भगवान कृष्ण के ‘पति’ से किन्नर एक दिन के लिए करते हैं शादी, अगले दिन विलाप, सिर के साथ निभाते हैं अनोखी रस्म

कूवगम महोत्सव की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी इसे उसी श्रद्धा और उत्साह के साथ निभाया जाता है. यह महोत्सव न केवल किन्नर समुदाय के लिए, बल्कि सभी के लिए प्रेम और सम्मान का संदेश लेकर आता है.

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Edited By: Reepu Kumari
Krishna Janmashtami 2025
Courtesy: Pinterest

Krishna Janmashtami 2025: महाभारत की कथा में भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ा एक ऐसा अद्भुत प्रसंग मिलता है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं. इस घटना के कारण किन्नर समुदाय आज भी भगवान कृष्ण के पति को अपना ‘पति’ मानकर हर साल एक विशेष परंपरा निभाता है. इसमें वे एक दिन के लिए शादी करते हैं और अगले दिन विलाप करते हैं. इसके साथ ही वे एक अनोखी रस्म भी निभाते हैं, जिसमें सिर को प्रतीक के रूप में शामिल किया जाता है. यह परंपरा तमिलनाडु के विलुपुरम जिले में ‘कोवगम उत्सव’ के दौरान देखने को मिलती है.

कथाओं के अनुसार, महाभारत युद्ध में पांडवों की विजय के लिए माता काली को किसी प्रभावशाली योद्धा का बलिदान देना आवश्यक था. अर्जुन के पुत्र इरावन ने स्वेच्छा से अपने प्राण न्योछावर करने का निर्णय लिया, लेकिन उन्होंने अंतिम इच्छा जताई कि मृत्यु से पहले विवाह करना चाहते हैं. कोई भी राजकुमारी ऐसे दूल्हे से विवाह करने को तैयार नहीं थी जिसकी मृत्यु अगले दिन तय हो. तब भगवान कृष्ण ने मोहिनी रूप धारण किया और इरावन से विवाह किया. अगले दिन युद्ध में इरावन वीरगति को प्राप्त हुए.

ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए विशेष

तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित कूवगम गांव हर साल एक अनोखे और धार्मिक महत्व वाले महोत्सव के लिए प्रसिद्ध है. यहां मनाया जाने वाला कूवगम महोत्सव ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है. यह 18 दिनों तक चलने वाला त्योहार मार्च या अप्रैल के महीने में होता है और इसका केंद्र है कूथंडावर मंदिर, जो अर्जुन और नागकन्या उलूपी के पुत्र इरावन को समर्पित है.

एक दिन का पवित्र विवाह

कूवगम महोत्सव में किन्नर समुदाय मंदिर में इरावन की मूर्ति को साक्षात इरावन मानकर एक दिन के लिए विवाह करते हैं. मंदिर के पुजारी विवाह संपन्न कराते हैं और मंगलसूत्र धारण करवाते हैं.

अगले दिन का विलाप

विवाह के अगले दिन इरावन के बलिदान की स्मृति में किन्नर विधवा के रूप में शोक मनाते हैं. इस दौरान इरावन के सिर का प्रतीक नगर में भ्रमण करवाया जाता है और सभी समुदायजन विलाप करते हैं.

महोत्सव का धार्मिक महत्व

यह त्योहार केवल पौराणिक कथा का स्मरण ही नहीं, बल्कि प्रेम, त्याग और वचनबद्धता का प्रतीक भी है. किन्नर समुदाय के लिए यह सबसे पवित्र अवसरों में से एक माना जाता है.

भक्ति और सामाजिक पहचान

कूवगम महोत्सव किन्नरों की धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक पहचान को सशक्त बनाता है. यह आयोजन समाज में उनके स्थान को मान्यता देता है और भगवान कृष्ण के मोहिनी रूप से उनके आध्यात्मिक संबंध को उजागर करता है.

कूवगम महोत्सव की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी इसे उसी श्रद्धा और उत्साह के साथ निभाया जाता है. यह महोत्सव न केवल किन्नर समुदाय के लिए, बल्कि सभी के लिए प्रेम और सम्मान का संदेश लेकर आता है.

Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं पौराणिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इंडिया डेली इनकी पुष्टि नहीं करता है.