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Krishna Janmashtami 2025: क्यों भगवान कृष्ण को करना पड़ा एक पुरुष से विवाह? जानें महाभारत का अनसुना रहस्य

महाभारत का यह अनसुना प्रसंग दिखाता है कि भगवान कृष्ण केवल युद्धनीति और राजनीति के माहिर ही नहीं थे, बल्कि वे हर परिस्थिति में दूसरों की भावनाओं का सम्मान करने वाले करुणामयी देवता थे.

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Edited By: Reepu Kumari
Krishna Janmashtami 2025
Courtesy: Pinterest

Krishna Janmashtami 2025: कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं, करुणा और अद्वितीय व्यक्तित्व की याद दिलाता है. उनके जीवन में ऐसे कई प्रसंग हैं जो भक्तों को चकित कर देते हैं और गहरे आध्यात्मिक संदेश भी देते हैं. इन्हीं में से एक कम चर्चित लेकिन बेहद रोचक कथा महाभारत युद्ध से जुड़ी है, जब भगवान कृष्ण को एक पुरुष से विवाह करना पड़ा था. यह प्रसंग न केवल अद्भुत है बल्कि इसमें त्याग, वचन निभाने और संवेदनशीलता का अनमोल उदाहरण मिलता है.

महाभारत के अनुसार, यह पुरुष अर्जुन और नागकन्या उलूपी के पुत्र इरावन थे. युद्ध के दौरान माता काली को प्रसन्न करने और पांडवों की विजय सुनिश्चित करने के लिए किसी प्रभावशाली राजकुमार का बलिदान जरूरी था. इरावन ने स्वयं बलिदान देने की इच्छा जताई, लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी कि प्राण त्यागने से पहले वे विवाह करना चाहते हैं. यही इच्छा भगवान कृष्ण के जीवन के इस अनोखे प्रसंग का कारण बनी.

इरावन की अंतिम इच्छा और चुनौती

इरावन ने मृत्यु से पहले विवाह की इच्छा जताई, लेकिन कोई भी राजकुमारी ऐसे व्यक्ति से विवाह करने को तैयार नहीं हुई जिसकी मृत्यु अगले दिन निश्चित थी. यह स्थिति युद्धभूमि में एक बड़ी चुनौती बन गई.

कृष्ण का मोहिनी रूप

इरावन की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान कृष्ण ने मोहिनी रूप धारण किया. इस रूप में उन्होंने इरावन से विवाह किया और उसकी अंतिम इच्छा पूरी की. यह विवाह केवल एक दिन के लिए था, लेकिन इसमें करुणा और वचनबद्धता की अद्वितीय मिसाल देखने को मिली.

बलिदान और विधवा का विलाप

युद्ध के आठवें दिन इरावन ने वीरगति प्राप्त की. इसके बाद कृष्ण ने मोहिनी रूप में पूरे दिन विधवा की तरह इरावन के लिए विलाप किया, जिससे उनके संवेदनशील और मानवीय पक्ष का दर्शन हुआ.

किन्नर समाज के आराध्य बने कृष्ण

इस घटना के बाद से किन्नर समुदाय भगवान कृष्ण को अपना पति और आराध्य मानता है. दक्षिण भारत के तमिलनाडु में ‘कोवगम उत्सव’ के दौरान किन्नर समुदाय इस प्रसंग की स्मृति में प्रतीकात्मक विवाह करता है और कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करता है.

महाभारत का यह अनसुना प्रसंग दिखाता है कि भगवान कृष्ण केवल युद्धनीति और राजनीति के माहिर ही नहीं थे, बल्कि वे हर परिस्थिति में दूसरों की भावनाओं का सम्मान करने वाले करुणामयी देवता थे. कृष्ण जन्माष्टमी पर यह कथा हमें त्याग, वचन और प्रेम के महत्व का बोध कराती है.

Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं पौराणिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इंडिया डेली इनकी पुष्टि नहीं करता है.