Dhanteras Special 2025: भारत में दीपावली का त्योहार पांच दिनों तक चलने वाला प्रकाश और समृद्धि का पर्व है, जिसकी शुरुआत धनतेरस से होती है. आज धनतेरस है. इस दिन लोग सोना-चांदी, बर्तन, झाड़ू और नए कपड़े खरीदकर मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा करते हैं. लेकिन इन सबके बीच एक ऐसी परंपरा भी है, जो इस दिन को और पवित्र बना देती है-घर के बाहर ‘यम दीपक’ जलाने की. यह दीपक केवल एक ज्योति नहीं, बल्कि परिवार की सुरक्षा और दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है.
धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर, आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि और मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. वहीं, ‘यम दीपक’ जलाने की परंपरा एक ऐसी कथा से जुड़ी है, जिसने इस दिन को जीवन और मृत्यु के बीच उम्मीद की ज्योति से जोड़ दिया.
पुराणों में एक कथा मिलती है जिसमें एक राजा के पुत्र की कुंडली में अल्पायु का योग था. विवाह के चौथे दिन ही उसकी मृत्यु निश्चित थी. जब यमराज उसे लेने आए, तो उसकी पत्नी ने अपने पति को सुलाकर चारों ओर दीपक जलाए और रातभर भक्ति गीत गाती रही. उसकी श्रद्धा और समर्पण से प्रसन्न होकर यमराज ने युवक के प्राण नहीं लिए और वापस लौट गए. तभी से हर वर्ष धनतेरस की रात ‘यम दीपक’ जलाने की परंपरा शुरू हुई, ताकि परिवार पर अकाल मृत्यु का साया न मंडराए.
‘यम दीपक’ केवल पूजा का हिस्सा नहीं बल्कि जीवन की निरंतरता और सुरक्षा का प्रतीक है. मान्यता है कि यह दीपक मृत्यु के देवता यमराज को प्रसन्न करता है, जिससे परिवार के सदस्यों की अकाल मृत्यु से रक्षा होती है. यह दीपक घर के मुख्य द्वार पर जलाया जाता है ताकि यम देवता प्रवेश न करें और परिवार में सुख, शांति और आयु बनी रहे.
धनतेरस की शाम सूर्यास्त के बाद एक मिट्टी का दीपक लें और उसे सरसों के तेल से भरें. उसमें सूती बाती लगाकर जलाएं और दीपक को घर के मुख्य द्वार के बाहर दक्षिण दिशा की ओर रखें. दीपक के पास कुछ काले तिल रखें और यह मंत्र बोलें –
'मृत्युनां दण्डपालाय कालेन सह भारत.
त्रयोदश्यां दीपदानं, अकालमृत्युं हरतु मे॥'
इस मंत्र के साथ दीपक जलाने से माना जाता है कि घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और परिवार का हर सदस्य सुरक्षित रहता है.
धनतेरस की रात जलाया गया यम दीपक सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि यह विश्वास का प्रतीक है कि जीवन में चाहे कितनी भी अंधकारमय स्थितियाँ क्यों न हों, आशा की एक लौ हमेशा मार्ग दिखाती है. यही दीपक दीपावली के असली अर्थ -अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा - को साकार करता है.
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