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Ramesh Babu success story: कभी दो वक्त की रोटी के लिए थे मुहताज, आज सैकड़ों कारों का मालिक है ये करोड़पति नाई

Ramesh Babu success story: पिता के जाने के बाद उनकी मां ने लोगों के घरों में नौकरानी का काम करके उनको पाला. कभी-कभी उनके घर में दो वक्त की रोटी भी नहीं हुआ करती थी.

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Gyanendra Tiwari
Ramesh Babu success story: कभी दो वक्त की रोटी के लिए थे मुहताज, आज सैकड़ों कारों का मालिक है ये करोड़पति नाई

 Ramesh Babu success story : जीवन में इंसान को सफल होने के लिए अनेकों ठोकर खानी पड़ती है. अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें अनगिनत कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है. आज जो ऐशो आराम की जिंदगी जी रहा है. कभी न कभी वह सड़क पर धक्के खाए होंगे. आज जो 56 भोग का स्वाद चख रहा है कभी दो वक्त की रोटी के लिए भी तरसा होगा. कुछ ऐसी ही कहानी है रमेश बाबू की. आज वो जिस मुकाम पर हैं शायद ही कोई नाई उस मुकाम पर हो. एक समय पैदल चलने वाले रमेश बाबू के पास आज सैकड़ों लग्जरी कारें हैं. आइए उनके बारे में जानते हैं.


मां ने घरों में करके पाला

बेंगलुरु के रहने वाले रमेश बाबू का बचपन बहुत ही गरीबी में बीती. छोटी उम्र में ही उनके पिता का निधन हो गया था. परिवार का पालन पोषण करने के लिए  उनके पिता एक सैलून चलाया करते थे. पिता के जाने के बाद उनकी मां ने लोगों के घरों में नौकरानी का काम करके उनको पाला. कभी-कभी उनके घर में दो वक्त की रोटी भी नहीं हुआ करती थी. कठिनाइयों के साथ उनकी मां ने उन्हें पाला. उनके पिता का सैलून उनके चाचा चला रहे थे. उससे ज्यादा कमाई नहीं हो रही थी. 13 साल की उम्र में रमेश बाबू सड़क पर अखबार बेचा करते थे. इसके साथ ही साथ वो पढ़ाई भी कर रहे थे.

चलने लगे सैलून

जब रमेश बाबू 18 साल के थे उन्होंने अपने पिता का सैलून संभाल लिया था. चाचा से दुकान लेने के बाद उन्होंने उसे रेनोवेट कराया. दुकान में दो कारीग रखकर उसे चलाने लगे. कारीगर समय पर नहीं आया करते थे. एक दिन उन्हें खुद कैंची उठानी पड़ गई. जब उन्होंने एक ग्राहक के बाल काटे तब जाकर उन्हे अपनी काबिलियत का पता चला. इसके बाद उन्होंने अपनी बाल काटने की स्किल्स को और इंप्रूव किया और आगे बढ़ते गए.


खरीदी कार

सैलून का काम अच्छा चल रहा था. कमाई हो रही थी. रमेश के पास कुछ पैसे जमा हो गए थे तो उन्होंने 1993 में किस्त पर एक कार ले ली. हालांकि, वो उस कार की किस्त नहीं भर पाए और कार चली गई. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें. इस दौरान उनकी मां जिस कंपनी में काम करती थी उसकी मालकिन ने रमेश को किराए पर कार लेकर चलाने की सलाह दी. रमेश बाबू को बात समझ मे आ गई उन्होंने किराए पर कार ली और चलाने लगे.

कुछ महीने कार चलाने के बाद उन्हें समझ आया कि बेंगलुरु में रेटंर कार का बिजनेस चल सकता है. वो किराए की कार चलाते रहे और मेहनत करते रहे. जीवन में उन्हें कुछ अलग करना था. शायद इसीलिए वो किराए की कार चला रहे थे.

शुरू किया टूर एंड ट्रैवल का बिजनेस

कार का धंधा उन्हें समझ आ रहा था. बेंगलुरु में उन्होंने टूर एंड ट्रैवल का बिजनेस शुरू कर दिया. धीरे-धीरे करके उन्होंने कारों की संख्या बढ़ाई और बढ़ाते-बढ़ाते संख्या को 400 के पार कर दिया. उन्होंने अपनी कंपनी का नाम रखा रमेश टूर एंड ट्रैवल एजेंसी. आज उनकी कंपनी सैकड़ों लोगों को रोजाना सर्विस दे रही है.

रमेश बाबू के काफिले में रॉल्स रॉयस घोस्ट से लेकर मर्सिडीज, मेबैक जैसी लग्जरी कारें शामिल हैं. उनकी कंपनी  लग्जरी बस, SUV, वैन और स्पोर्ट्स कार भी किराए पर मुहैया कराती  है.

नहीं छोड़ी अपना नाई वाला काम

आपको लग रहा होगा कि रमेश बाबू ने टूर एंड ट्रैवल की इतनी बड़ी कंपनी खोल ली कि उन्होंने अपनी नाई की दुकान बंद कर दी होगा. लेकिन ऐसा नहीं है आज भी रमेश भाई अपनी नाई की दुकान चलाते हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो कितने जमीन से जुड़े हुए इंसान हैं.

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