Uttarakhand Panchayat Election 2025: उत्तराखंड में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर एक महत्वपूर्ण अपडेट सामने आया है. उत्तराखंड राज्य निर्वाचन आयोग ने नैनीताल उच्च न्यायालय के आदेश का पालन करते हुए पंचायत चुनाव की नामांकन प्रक्रिया सहित सभी संबंधित गतिविधियों को अगले आदेश तक स्थगित कर दिया है. इस निर्णय ने राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में चल रही चुनावी हलचल को अस्थायी रूप से विराम दे दिया है.
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पंचायत चुनावों पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार को आरक्षण प्रक्रिया को विधिसम्मत और पारदर्शी ढंग से दोबारा लागू करने का निर्देश दिया है. अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक आरक्षण प्रक्रिया पूरी तरह से नियमानुसार पूरी नहीं हो जाती, तब तक चुनाव प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती. इस फैसले ने राज्य में ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत चुनावों की तैयारियों पर असर डाला है.
पंचायत चुनावों का प्रस्तावित कार्यक्रम
राज्य निर्वाचन आयोग ने हाल ही में पंचायत चुनावों को दो चरणों में आयोजित करने की योजना बनाई थी. इस चुनाव के माध्यम से उत्तराखंड में 74,499 ग्राम प्रधान, 55,600 ग्राम पंचायत सदस्य, 2,974 क्षेत्र पंचायत सदस्य और 358 जिला पंचायत सदस्यों का चयन होना था. मूल कार्यक्रम के अनुसार, 23 जून को जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा विस्तृत अधिसूचना जारी की जानी थी. नामांकन प्रक्रिया 25 जून से 28 जून तक निर्धारित थी, जबकि 29 जून से 1 जुलाई तक नामांकन पत्रों की जांच होनी थी. नाम वापसी की अंतिम तिथि 2 जुलाई थी. पहले चरण में 3 जुलाई को चिन्ह आवंटन और 10 जुलाई को मतदान प्रस्तावित था, जबकि दूसरे चरण में 8 जुलाई को चिन्ह वितरण और 15 जुलाई को मतदान होना था. दोनों चरणों की मतगणना 18 जुलाई को निर्धारित थी.
चुनावी तैयारियां और आचार संहिता
पंचायत चुनावों की घोषणा के बाद राज्य में तैयारियां जोरों पर थीं. आचार संहिता लागू कर दी गई थी और सभी जिलों को निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए थे. ग्रामीण क्षेत्रों में राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई थीं, और उम्मीदवारों ने प्रचार के साथ-साथ रणनीति बनाना शुरू कर दिया था. गांवों में चुनावी उत्साह चरम पर था.
हाईकोर्ट के फैसले का प्रभाव
हाईकोर्ट के इस हस्तक्षेप ने पंचायत चुनावों के कार्यक्रम में बड़े बदलाव की संभावना को जन्म दिया है. अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि "जब तक आरक्षण प्रक्रिया को सही तरीके से दोबारा पूरा नहीं किया जाता, तब तक चुनाव नहीं कराए जा सकते." इस आदेश के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि पंचायत चुनावों की तारीखों में बदलाव अनिवार्य है. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में उम्मीदवारों और मतदाताओं के बीच अनिश्चितता की स्थिति बन गई है.