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खाली गांव, विदेश से बहुएं ... उत्तराखंड में SIR की बढ़ी सिरदर्दी, इन मुद्दों को लेकर हुए परेशान

उत्तराखंड में स्पेशल समरी रिवीजन से पहले शुरू हो रहे प्री-एसआईआर अभियान के सामने सबसे बड़ी चुनौती पलायन है। पहाड़ों और मैदानी क्षेत्रों से लोगों के बाहर बस जाने से कई गांव खाली हो गए हैं, जिससे हर मतदाता तक पहुंचकर BLO द्वारा उनका वेरिफिकेशन करना बेहद कठिन हो जाएगा.

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Edited By: Princy Sharma
SIR India Daily
Courtesy: Pinterest

उत्तराखंड: उत्तराखंड में इस बार होने जा रही स्पेशल समरी रिवीजन से पहले निर्वाचन आयोग एक प्री-एसआईआर अभियान शुरू कर रहा है. लेकिन इस प्रक्रिया में राज्य को सबसे बड़ी चुनौती बनी जो है पलायन से खाली होते गांव और बदलती जनसंख्याय. हजारों लोग पहाड़ों और मैदानी क्षेत्रों से रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों या शहरों में बस चुके हैं. ऐसे में हर मतदाता के वेरिफिकेशन तक BLO की पहुंच बनाना भारी काम साबित होने वाला है.

प्री-एसआईआर के दौरान BLO को हर मतदाता से संपर्क कर उनके दस्तावेज और मौजूदगी की पुष्टि करनी होगी. पर पहाड़ों के खाली गांवों में घर-घर जाकर सत्यापन करना लगभग नामुमकिन जैसा है. वहीं जो लोग उत्तराखंड छोड़कर यूपी, दिल्ली या अन्य राज्यों में रह रहे हैं, उनसे संपर्क कर उनकी पहचान और मतदाता स्टेटस की पुष्टि करना भी बड़ा सिरदर्द होगा. 

फाइनल वोटर लिस्ट 

मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने बताया कि यूपी और दिल्ली में SIR पहले से चल रहा है और ये दोनों ही राज्य उत्तराखंड से पलायन का बड़ा केंद्र हैं. इसलिए उन राज्यों की फाइनल वोटर लिस्ट आने के बाद उत्तराखंड में वेरिफिकेशन और मुश्किल हो सकता है.

मतदाताओं की संख्या बढ़ी

मैदानी क्षेत्रों की कई सीटों पर पिछले 10 वर्षों में मतदाताओं की संख्या 72% तक बढ़ गई है. इनमें धर्मपुर, डोईवाला, ऋषिकेश, रुद्रपुर और काशीपुर जैसे क्षेत्र शामिल हैं. यहां बढ़े हुए वोटरों का 2003 की मतदाता सूची से मिलान होगा. दूसरी ओर, सल्ट, रानीखेत, चौबट्टाखाल और पौड़ी जैसे पहाड़ी इलाकों में मतदाताओं की संख्या लगातार घट रही है, जो पलायन का सबसे बड़ा सबूत है.

शादीशुदा महिलाओ के लिए दिक्कत

एसआईआर में शादीशुदा महिलाओं के सत्यापन की प्रक्रिया भी चुनौतीपूर्ण है. जिन महिलाओं का 2003 की वोटर लिस्ट में ससुराल में नाम दर्ज नहीं था, उन्हें अपने मायके से अपने दस्तावेज साबित करने होंगे. अगर मायके में भी नाम नहीं था, तो उन्हें माता-पिता या दादा-दादी के रिकॉर्ड के आधार पर पहचान साबित करनी होगी.

वेरिफिकेशन का विषय

सबसे जटिल मामला उन महिलाओं का है जिनका मायका नेपाल में है. यह मामला नागरिकता और दस्तावेज दोनों से जुड़ जाता है. हालांकि आयोग का कहना है कि यह केवल वेरिफिकेशन का विषय है और सभी कदम निर्वाचन आयोग की गाइडलाइन के अनुसार ही उठाए जाएंगे.

एसआईआर के दौरान, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पुराने मतदाता अपने गांव लौटकर फिर से वोटर बनते हैं या बाहर रहकर भी अपनी पहचान बनाए रखते हैं. उत्तराखंड की राजनीति और जनसंख्या संतुलन पर इस प्रक्रिया का बड़ा असर पड़ेगा.
 

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