हाथ-पैरों में 13-13 अंगुलियां, शाम होते ही दिखाई देना बंद, इस अनोखी बीमारी से जूझ रहे उत्तराखंड के तीन भाई

उत्तराखंड के नैनीताल जिले में तीन भाई ‘लॉरेंस मून बेडिल सिंड्रोम’ जैसी दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी से जूझ रहे हैं, जिनकी रात में दृष्टि चली जाती है और हाथ-पैरों में अतिरिक्त उंगलियां हैं.

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Kuldeep Sharma

नैनीताल के धारी गांव में तीन सगे भाई बालम, गौरव और कपिल का जीवन सूरज की रोशनी के अनुसार चलता है. शाम ढलते ही उनकी आंखें अंधेरे में काम नहीं करतीं. 

इस दुर्लभ बीमारी के चलते उनके हाथ-पैरों में अतिरिक्त उंगलियां हैं और वे अत्यधिक भूख से जूझते हैं. बचपन में दिल की समस्या का इलाज होने के बावजूद परिवार आर्थिक और सामाजिक संघर्ष में है. स्थानीय समाज और स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस मामले को गंभीर मानते हैं और परिवार को मदद की जरूरत बताते हैं.

हाथ-पैरों में 13-13 अंगुलियां

बालम के दोनों हाथों में 13 और पैरों में 12 अंगुलियां हैं, गौरव के हाथ-पैरों में 13-13 और कपिल के 12-12 अंगुलियां हैं. इनकी तेज भूख के कारण दैनिक भोजन का खर्च बढ़ रहा है. दिहाड़ी मजदूरी करने वाले परिवार के लिए रोजमर्रा की जिंदगी कठिन हो रही है. तीनों भाई रात होने पर अकेले कोई काम नहीं कर पाते, जिससे उनकी जीवनशैली और आर्थिक स्थिति पर गंभीर असर पड़ा है.

क्या है लॉरेंस मून बेडिल सिंड्रोम

मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी के प्राचार्य डॉ. जीएस तितियाल के अनुसार, लॉरेंस मून बेडिल सिंड्रोम एक दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी है जिसमें आंखों की रॉड कोशिकाएं काम नहीं करतीं. इसके कारण अंधेरा होने पर दिखाई नहीं देता. साथ ही इसमें अतिरिक्त उंगलियां, हार्मोनल असंतुलन, मोटापा और त्वचा संबंधी परेशानियां भी होती हैं. इस बीमारी का कोई स्थायी इलाज नहीं है, केवल लक्षणों का प्रबंधन किया जा सकता है.

दिल की समस्याएं और परिवार की मुश्किलें

मां सावित्री के अनुसार, तीनों भाइयों का बचपन में दिल का इलाज कराया गया था. बालम के दिल में 8 मिमी का छेद था. इसी तरह अन्य भाइयों में भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं थीं. परिवार के पिता की दो वर्ष पहले मृत्यु हो गई और एक छोटी दिव्यांग पेंशन 1,500 रुपये प्रति माह से परिवार के खर्चे पूरे नहीं हो पा रहे हैं. आर्थिक बोझ और चिंता ने परिवार की स्थिति और कठिन बना दी है.

तीनों भाई का संघर्ष और काम

सबसे बड़े भाई बालम बकरियां चराने का काम करते हैं. गौरव एक निजी स्टोन क्रशर में दिहाड़ी मजदूर हैं, जबकि कपिल छोटे होटल में काम करता है. रात होने पर वे कोई काम अकेले नहीं कर सकते. उनकी सीमित स्वतंत्रता और आर्थिक दबाव जीवन को और चुनौतीपूर्ण बना रहे हैं. स्थानीय समाज से मदद की उम्मीद भी परिवार को बनी हुई है.

विशेषज्ञों की राय और सामाजिक समर्थन

सीएचसी गरमपानी के डॉ. गौरव कैड़ा ने बताया कि यह अनुवांशिक बीमारी अत्यंत दुर्लभ है. इसमें आंखों की रोशनी का नुकसान, अतिरिक्त उंगलियां, मोटापा और हार्मोनल समस्याएं आम हैं. विशेषज्ञ परिवार को चिकित्सकीय सलाह और सामाजिक समर्थन की आवश्यकता बताते हैं. गांव और जिला प्रशासन से भी अनुरोध है कि इस तरह के मामलों में सहायता और जागरूकता बढ़ाई जाए.